Pratipada Shradh (प्रतिपदा श्राद्ध) Kya hai, Date, Time, Kaise Kare

प्रतिपदा श्राद्ध

पूर्वजों की आत्मा को शांति देने के लिए यह पूजा कैसे करें, जानिए


प्रतिपदा श्राद्ध क्या होता है | Pratipada Shraddha Kya Hai?

भाद्रपद पूर्णिमा से पितृपक्ष की शुरुआत होती है, ऐसे में आश्विन मास की प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक विधि विधान से पितरों के निमित्त श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण करने का विधान है। बता दें की प्रतिपदा श्राद्ध या पड़वा श्राद्ध उन पितरों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि पर हुई हो। इसके अलावा पितृपक्ष की प्रतिपदा तिथि को नाना-नानी का श्राद्ध कर्म करने के लिए भी उपयुक्त माना गया है।

प्रतिपदा श्राद्ध कब है| Pratipada Shraddha Date & Time

  • प्रतिपदा श्राद्ध 18 सितंबर 2024, बुधवार को किया जाएगा।
  • प्रतिपदा तिथि 18 सितंबर को प्रातः 08 बजकर 04 मिनट पर प्रारंभ होगी।
  • प्रतिपदा तिथि का समापन 19 सितंबर को प्रातः 04 बजकर 19 मिनट पर होगा।
  • कुतुप मुहूर्त दिन में 11 बजकर 27 मिनट से दोपहर 12 बजकर 16 मिनट तक रहेगा।
  • रौहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 16 मिनट से 01 बजकर 05 मिनट तक रहेगा।
  • अपराह्न मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 05 मिनट से 03 बजकर 32 मिनट तक रहेगा।

प्रतिपदा श्राद्ध कैसे करें | Pratipada Shraddha Kaise Kare

  • प्रतिपदा श्राद्ध के लिए सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • इसके बाद देवस्थान व पितृ स्थान को गोबर से लीप कर या गंगाजल छिड़क कर शुद्ध कर लें।
  • इस दिन घर की स्त्रियां अपने मन में पितरों के लिए आदर भाव रख कर भोजन बनाएं।
  • श्राद्ध के दिन किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण, दामाद या भतीजे को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित करें। मान्यता है कि उनके भोजन करने से पितृ विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं।
  • इस दिन श्राद्ध करने वाले जातक को घर आए अतिथि या ब्राह्मण का पैर स्वयं धोना चाहिए।
  • ब्राह्मण के निर्देश के अनुसार पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान, पंचबली आदि अनुष्ठान संपन्न करें, और पितरों की आत्मा की शांति की प्रार्थना करें।
  • इस अवसर पर यदि ब्राह्मण स्वस्ति वाचन व वैदिक मंत्रों का जाप करते हैं, तो पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
  • अब ब्राह्मण या घर आए अतिथि को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा देकर आदरपूर्वक विदा करें।
  • शास्त्रों में पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध कर्ता को दिन में तीन बार स्नान और एक बार भोजन करने का विधान बताया गया है।

प्रतिपदा श्राद्ध का महत्व | Pratipada Shraddha Ka Mahatav

शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि यदि पितरों की आत्मा प्रसन्न रहती है, तो वे अपने वंशजों पर कोई भी विपत्ति नहीं आने देते हैं, और उन्हें सुखी जीवन जीने का आशीर्वाद देते हैं। वहीं यदि पितृ आपसे नाराज हों, तो आपके जीवन में कई तरह के संकट आ सकते हैं। पितृपक्ष पितरों को समर्पित एक ऐसी अवधि है जिसमें उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण किया जाता है।

ऐसे में जिन जातकों को अपने नाना-नानी का श्राद्ध करना है, उनके लिए पितृपक्ष में आने वाली प्रतिपदा तिथि विशेष महत्वपूर्ण है। इसके अलावा जिनकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि पर हुई है, उन पूर्वजों के निमित्त भी इस दिन श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि जिस घर में पितरों का श्राद्ध, पिंडदान आदि होता है, उस कुल में कभी भी यश, कीर्ति, धन, सम्मान पारिवारिक सुख व संतान की कमी नहीं होती है।

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