पिठोरी अमावस्या 2025 कब है? जानें इस विशेष व्रत की तिथि, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा, जो माताएं संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं।
पिठोरी अमावस्या भाद्रपद मास की अमावस्या को मनाई जाती है। इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए पिठौरियों (छोटे आटे के पुतलों) की पूजा करती हैं। व्रत, कथा और विशेष भोजन का आयोजन होता है।
भाद्रपद मास में पड़ने वाली अमावस्या को पिठोरी अमावस्या कहा जाता है। इस अमावस्या पर स्नान-दान का विशेष महत्व होता है, साथ ही भक्त इस दिन धर्म स्थलों के दर्शन लिए भी जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धापूर्वक किये गये व्रत एवं पूजन से अंखंड सौभाग्य, संतानसुख व संकटरहित जीवन की प्राप्ति होती है।
पिठोरी अमावस्या भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाने वाला एक विशेष व्रत है, जो मुख्य रूप से मातृत्व और संतान सुख से जुड़ा हुआ है। इस दिन महिलाएं विशेष रूप से मां दुर्गा और 64 योगिनियों की पूजा करती हैं। व्रती स्त्रियां आटे से देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाकर विधिपूर्वक पूजन करती हैं, इसी कारण इस पर्व को 'पिठोरी अमावस्या' कहा जाता है — 'पिठो' शब्द का अर्थ होता है आटा।
पिठोरी अमावस्या का व्रत स्त्रियां अपने बच्चों की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य की कामना से करती हैं। वहीं जो महिलाएं संतान प्राप्ति की इच्छुक होती हैं, वे भी इस दिन व्रत रखकर माता दुर्गा और भगवान शिव की आराधना करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान संबंधी सभी कष्ट दूर होते हैं और मातृत्व सुख प्राप्त होता है।
इसके अतिरिक्त इस दिन घर में धार्मिक कार्यों के लिए पवित्र कुशा एकत्र करने की परंपरा भी है, इसलिए यह तिथि कुशोत्पाटिनी अमावस्या या कुशग्रहणी अमावस्या के नाम से भी प्रसिद्ध है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार पिठोरी व्रत का माहात्म्य स्वयं माता पार्वती ने बताया था, और सर्वप्रथम इस व्रत को इंद्राणी (देवराज इंद्र की पत्नी) देवी शची ने किया था। इस व्रत के प्रभाव से उन्हें न केवल संतान सुख प्राप्त हुआ, बल्कि सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य का भी वरदान मिला। इस व्रत के माध्यम से स्त्रियां न केवल अपनी संतान की रक्षा के लिए देवी शक्ति का आह्वान करती हैं, बल्कि अपने जीवन में आध्यात्मिक और मानसिक संतुलन भी प्राप्त करती हैं। यह दिन मातृत्व के सम्मान और संतान के कल्याण हेतु समर्पित होता है।
पिठोरी अमावस्या देश भर में किसी न किसी रुप में मनायी जाती रही है। उत्तरी भारत में ये पर्व भाद्रपद अमावस्या या कुशाग्रहणी अमावस्या के नाम से मनाया जाता है। वहीं आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक एवं तमिलनाडु में पिठोरी अमावस्या को पोलाला अमावस्या कहा जाता है। इस दिन दक्षिण भारत में देवी पोलेरम्मा की उपासना की जाती है। देवी पोलेरम्मा को माता पार्वती का एक ही रूप माना जाता है। इसके अलावा इस दिन सप्तमातृकाओं के पूजन की भी परंपरा है। विशेष रूप से ये पूजा दक्षिण भारत में प्रचलित है। सात देवियों, ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, इन्द्राणी, कौमारी, वाराही, चामुण्डा अथवा नारसिंही को 'मातृका' कहा जाता है।
स्नान व संकल्प: प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें – संतान सुख, रक्षा व ऐश्वर्य की कामना के साथ।
आटे से मूर्तियां बनाएं: पूजा से पूर्व गेंहू के आटे से मां दुर्गा, भगवान शिव और 64 योगिनियों की छोटी-छोटी मूर्तियाँ बनाएं। इन्हें चौकी पर पीले वस्त्र बिछाकर स्थापित करें।
कलश स्थापना: एक पवित्र कलश में जल भरकर आम या अशोक के पत्ते रखें और नारियल स्थापित करें।
पूजन आरंभ करें: सबसे पहले गणेशजी का स्मरण करें। फिर 64 योगिनियों के साथ मां दुर्गा और भगवान शिव की पूजा करें। उन्हें जल, अक्षत, फूल, रोली, हल्दी, मिठाई, धूप-दीप आदि समर्पित करें।
व्रत कथा श्रवण करें: पिठोरी अमावस्या व्रत कथा अवश्य पढ़ें या सुनें। इस कथा में देवी शची और माता पार्वती द्वारा व्रत का उल्लेख होता है।
आरती करें और प्रार्थना करें: अंत में दीप जलाकर आरती करें और परिवार की रक्षा, संतान की लंबी उम्र व सुखद भविष्य की प्रार्थना करें।
प्रतिमाओं का विसर्जन: पूजा के बाद आटे से बनी मूर्तियों का विसर्जन किसी पवित्र स्थान या नदी में करें या उन्हें गऊ माता को अर्पित करें।
संतान सुख की प्राप्ति: इस व्रत से उन दंपत्तियों को विशेष लाभ मिलता है जो संतान प्राप्ति की कामना रखते हैं।
संतान की रक्षा और दीर्घायु: माताएं यह व्रत अपने बच्चों की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुखद जीवन के लिए करती हैं।
पारिवारिक सुख-शांति: इस दिन देवी-देवताओं की पूजा से घर में समृद्धि, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
कर्ज़ और संकटों से मुक्ति: पिठोरी अमावस्या पर की गई पूजा व्यक्ति को पूर्व जन्मों के पापों और वर्तमान जीवन की बाधाओं से राहत दिला सकती है।
मनोकामनाओं की पूर्ति: यह व्रत श्रद्धा और नियमपूर्वक किया जाए तो मनचाही इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
तो यह थी पिठोरी अमावस्या व्रत की संपूर्ण जानकारी। हमारी कामना है कि आपका ये व्रत व पूजा-अर्चना सफल हो, और माता दुर्गा की कृपा आप पर सदैव बनी रहे। व्रत, त्यौहारों व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' के इस धार्मिक मंच पर।
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