जानें परिवर्तनी एकादशी 2025 की सही तिथि, पूजा का महत्व, शुभ मुहूर्त और व्रत विधि। इस व्रत का पालन कर भक्त विष्णु भगवान की असीम कृपा और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करते हैं।
परिवर्तनी एकादशी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में आती है। इस दिन भगवान विष्णु शयनावस्था से करवट बदलते हैं। व्रत करने से पापों का नाश होता है और सौभाग्य, स्वास्थ्य तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसे देवउठनी एकादशी की पूर्व संध्या माना जाता है।
भक्तों नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। भगवान विष्णु के उपासकों के लिए इस एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु अपनी शयन मुद्रा में करवट बदलते हैं। करवट बदलने के कारण ही इस एकादशी को 'परिवर्तिनी एकादशी' कहा गया है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:10 AM से 04:57 AM तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:34 AM से 05:44 AM तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:29 AM से 12:18 PM तक |
विजय मुहूर्त | 01:56 PM से 02:46 PM तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:03 PM से 06:26 PM तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:03 PM से 07:13 PM तक |
अमृत काल | 02:25 PM से 03:57 PM तक |
सर्वार्थ सिद्धि योग- 14 सितंबर, 08:32 PM से 15 सितंबर, 05:44 AM तक रवि योग- 14 सितंबर, 05:44 AM से 08:32 AM तक
पौराणिक मान्यता के अनुसार 'परिवर्तिनी एकादशी' का व्रत करने से व्रती को वाजपेय यज्ञ के समान फल मिलता है। इस एकादशी के दिन विष्णु जी के वामन स्वरूप की भी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान वामन की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
परिवर्तिनी एकादशी के महात्म्य की व्याख्या सृष्टि के पालनहार श्रीकृष्ण ने की थी और आज हम वही कथा आपके लिए लेकर आए हैं। साथ ही हम आपको इस लेख में इस पर्व की तिथि और इससे जुड़ी हुई महत्वपूर्ण जानकारी देंगे। आप इस लेख को अंत तक ज़रूर पढ़ें-
एक समय की बात है, युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि, “हे प्रभु, आप तो ब्राम्हण के पालनकर्ता हैं, सर्वज्ञानी हैं, आप कृपा करके मुझे भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी और इसके महात्म्य के बारे में विस्तार से बताएं।”
भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर देते हुए कहा कि भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी या पार्श्व एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह एकादशी पुण्य प्रदान करने वाली और भौतिक बंधन से मुक्त करने वाली होती है।
उन्होंने आगे बताया कि यह एकादशी इतनी पवित्र होती है कि इसके महात्म्य का श्रवण करने मात्र से व्यक्ति अपने पिछले जन्म के पाप कर्मों से मुक्त हो जाता है और जो व्यक्ति निष्ठापूर्वक इस व्रत का पालन करता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य मिलता है।
इसलिए इस भौतिक संसार से मुक्त होने की कामना रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को परिवर्तिनी एकादशी का पालन करना चाहिए। युधिष्टिर महाराज की जिज्ञासा को शांत करने के लिए आगे कहते हैं कि हे राजन, इस एकादशी का पालन करने हेतु व्यक्ति को वामन देव की आराधना करनी चाहिए। ऐसा करने से वह ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की पूजा का फल प्राप्त कर लेता है और मृत्यु के बाद श्रीहरि के धाम को जाता है।
यह वही दिन है जब चातुर्मास के दौरान, योग निद्रा में शयन करते हुए भगवान विष्णु करवट बदलते हैं और इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने परिवर्तिनी एकादशी का महात्म्य युधिष्ठिर जी को बताया।
एकादशी के व्रत से एक दिन पूर्व जौं, गेहूं, मूंग की दाल आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा इस दिन किसी अन्य व्यक्ति के घर का अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस दिन किसी का अपमान भूल से भी न करें।
तो यह थी परिवर्तिनी एकादशी के महात्म्य की कथा, हम आशा करते हैं आपको भी इस एकादशी का शुभ फल प्राप्त हो।
सनातन व्रतों में एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन संपूर्ण विधि और उचित सामग्री के साथ पूजा करना अत्यंत फलदायक होता है। एकादशी पर की जाने वाली पूजा की सामग्री कुछ इस प्रकार है -
नोट - गणेश जी की प्रतिमा के स्थान पर आप एक सुपारी पर मौली लपेटकर इसे गणेशजी के रूप में पूजा में विराजित कर सकते हैं।
इस सामग्री के द्वारा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है, यह पूजा सेवा आपके लिए श्री मंदिर पर उपलब्ध है। आप इसका लाभ अवश्य उठायें।
हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस लेख में आप एकादशी की पूजा की तैयारी एवं विधि जानेंगे।
भक्तों, भगवान विष्णु के एकादशी व्रत की महिमा इतनी दिव्य है, कि इसके प्रभाव से मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाता है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का भी विशेष महत्व है। हमारी पौराणिक मान्यताएं भी कहती हैं कि एकादशी व्रत से अद्भुत पुण्यफल प्राप्त होता है।
एकादशी का यह पावन व्रत आपके जीवन को और अधिक सार्थक बनाने में सहयोगी सिद्ध होगा। इसी विश्वास के साथ हम आपके लिए इस व्रत और पूजन से मिलने वाले 5 लाभों की जानकारी लेकर आए हैं। आइये, शुरू करते हैं-
ये एकादशी व्रत एवं पूजन आपके सभी शुभ कार्यों एवं लक्ष्य की सिद्धि करेगा। इस व्रत के प्रभाव से आपके जीवन में सकारात्मकता का संचार होगा, जो आपके विचारों के साथ आपके कर्म को भी प्रभावित करेगा।
इस एकादशी का व्रत और पूजन आर्थिक समृद्धि में भी सहायक है। यह आपके आय के साधन को स्थायी बनाने के साथ उसमें बढ़ोत्तरी देगा। अतः इस दिन विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी का पूजन अवश्य करें।
इस एकादशी पर नारायण की भक्ति करने से आपको मानसिक सुख शांति के साथ ही परिवार में होने वाले वाद-विवादों से भी मुक्ति मिलेगी।
एकादशी तिथि के अधिदेवता भगवान विष्णु हैं। एकादशी पर उनकी पूजा अर्चना करने से आपको भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलेगा तथा उनकी कृपा से भूलवश किये गए पापों से भी मुक्ति मिलेगी।
श्री हरि को समर्पित इस तिथि पर व्रत अनुष्ठान करने से आपको मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम में स्थान प्राप्त होगा। इस व्रत का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है, इसीलिए जब आप यह व्रत करेंगे, तो इसके फलस्वरूप आपको आपके कर्मों का पुण्य फल अवश्य प्राप्त होगा, जो आपको मोक्ष की ओर ले जाएगा।
तो यह थे एकादशी के व्रत से होने वाले लाभ, आशा है आपका एकादशी का यह व्रत अवश्य सफल होगा और आपको इस व्रत के सम्पूर्ण फल की प्राप्ति होगी।
इस एकादशी पर की जाने वाली पूजा विधि और अन्य महत्वपूर्ण बातें जानने के लिए जुड़े रहिये श्री मंदिर के साथ।
एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित महत्वपूर्ण तिथि है, और इस दिन किये गए व्रत और पूजा से प्रसन्न होकर श्री हरि आपकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। परन्तु कुछ भक्तगण ऐसे भी हैं जो कि व्रत करने में सक्षम नहीं है। इसीलिए आज के हमारे इस विशेष लेख में हम आपको बताने वाले हैं कि एकादशी पर जो भक्तजन व्रत का पालन नहीं कर पा रहे हैं, वे भगवान विष्णु को कैसे प्रसन्न करें -
परिवर्तिनी एकादशी व्रत का पालन केवल उपवास और पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि इस दिन कुछ विशेष धार्मिक उपाय करने से भी जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। विशेषकर संतान सुख, वैवाहिक जीवन की स्थिरता और मानसिक शांति के लिए इस दिन किए गए उपाय अत्यंत प्रभावकारी माने जाते हैं।
दान-पुण्य का विशेष महत्व एकादशी तिथि में बताया गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि एकादशी पर किया गया दान कई गुना फल देता है और व्यक्ति के पापों का नाश करता है।
1. प्रातःकाल उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर पवित्र स्नान करें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
2. भगवान विष्णु की पूजा करें भगवान श्रीविष्णु की पीले फूलों, पीले वस्त्र, तुलसीदल, धूप, दीप और नैवेद्य से पूजा करें। मंत्र: "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"
3. तुलसी पूजा अवश्य करें तुलसी का पौधा भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इस दिन तुलसी के पास दीपक जलाकर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
4. उपवास रखें संभव हो तो निर्जल या फलाहारी उपवास रखें। व्रत में सात्विक आहार लें — जैसे फल, दूध, सूखे मेवे आदि।
5. धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें श्रीमद्भगवद्गीता, विष्णु सहस्त्रनाम या नारायण स्तोत्र का पाठ इस दिन अत्यंत शुभ माना गया है।
6. ज़रूरतमंदों को दान करें अनाज, वस्त्र, दक्षिणा, तुलसी, गाय को चारा, या धार्मिक पुस्तकें दान करना पुण्यदायी होता है।
7. रात में जागरण करें या विष्णु नामस्मरण करें रात्रि में संभव हो तो जागरण करें या भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करें। इससे विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
1. चावल का सेवन न करें हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है क्योंकि यह पापफल देने वाला माना जाता है।
2. तामसिक भोजन न करें प्याज, लहसुन, मांस-मदिरा और अन्य तामसिक वस्तुओं का सेवन इस दिन पूरी तरह निषेध है।
3. झूठ न बोलें, क्रोध न करें इस दिन सत्य बोलना, संयमित व्यवहार रखना और मन, वाणी, कर्म को शुद्ध रखना आवश्यक है।
4. परनिंदा व व्यर्थ बातें न करें व्रत के दिन किसी की बुराई, आलोचना या बेकार की चर्चाएं करने से पुण्य का ह्रास होता है।
5. अनावश्यक नींद और आलस्य न करें इस दिन ज़्यादा सोना और आलस्य करना व्रत के प्रभाव को कम कर सकता है। दिन का अधिकांश समय प्रभु स्मरण और सेवा में लगाएं।
6. तुलसी पत्ता न तोड़ें एकादशी तिथि में तुलसी पत्ता तोड़ना वर्जित होता है। अगर पूजा में तुलसी का उपयोग करना हो तो उसे एक दिन पूर्व तोड़कर रख लें। परिवर्तिनी एकादशी केवल एक उपवास नहीं, बल्कि मन, वाणी और कर्म की पवित्रता का पर्व है। इस दिन किए गए छोटे-छोटे पुण्यकर्म भी जीवन में बड़ी कृपा और संतति सुख के द्वार खोलते हैं।
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