समुद्र के देवता को नारियल अर्पित करने का दिन है नारली पूर्णिमा। जानिए 2025 में यह पर्व कब है, पूजा की सही विधि और क्यों है यह मछुआरा समुदाय के लिए बेहद खास।
नारली पूर्णिमा हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यह विशेष रूप से पश्चिमी तटीय क्षेत्रों (महाराष्ट्र, गोवा, कोंकण आदि) में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक त्योहार है। आइये जानते हैं इसके बारे में...
नारली पूर्णिमा पर्व मुख्यतः दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में मनाया जाता है, जो समुद्र के देवता भगवान वरुण को समर्पित होता है। इस पर्व को अन्य त्योहारों जैसे श्रावणी पूर्णिमा, रक्षा बंधन और कजरी पूर्णिमा की तरह ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आपको बता दें नारली शब्द का अर्थ नारियल होता है, और पूर्णिमा का अर्थ पूर्ण चंद्रमा वाली रात से है। अतः नाम के अनुसार इस दिन नारियल अर्पण का विशेष महत्व है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:22 ए एम से 05:04 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:43 ए एम से 05:47 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 12:00 पी एम से 12:53 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:40 पी एम से 03:33 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 07:06 पी एम से 07:27 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 07:06 पी एम से 08:10 पी एम तक |
अमृत काल | 03:42 ए एम, अगस्त 10 से 05:16 ए एम, अगस्त 10 तक |
निशिता मुहूर्त | 12:05 ए एम, अगस्त 10 से 12:48 ए एम, अगस्त 10 तक |
सर्वार्थ सिद्धि योग | 05:47 ए एम से 02:23 पी एम तक |
नारली पूर्णिमा, हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाला एक विशेष पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। ‘नारली’ शब्द संस्कृत शब्द "नारिकेल" से निकला है, जिसका अर्थ है नारियल, और ‘पूर्णिमा’ का अर्थ है पूर्ण चंद्रमा की रात्रि। इसलिए इस दिन नारियल अर्पण की परंपरा विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है।
नारली पूर्णिमा मुख्यतः समुद्र के देवता भगवान वरुण को प्रसन्न करने हेतु मनाई जाती है। यह तटीय क्षेत्रों में मछुआरों और समुद्र से जुड़े लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है।
मान्यता है कि इस दिन समुद्र में नारियल अर्पित करने से समुद्री यात्रा सुरक्षित होती है, समुद्र शांत रहता है और जीविका में समृद्धि आती है। यह दिन भगवान वरुण को जल का स्वामी मानकर उन्हें धन्यवाद अर्पित करने का दिन भी होता है।
नारली पूर्णिमा का दिन भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। इस दिन भक्तगण समुद्र के देवता भगवान वरुण की पूजा करते हैं और समुद्र के किनारे नारियल अर्पित करते हैं। यह मान्यता है कि नारली पूर्णिमा के दिन भगवान वरुण की पूजा करने से समुद्र में होने वाले सभी खतरों से रक्षा होती है। विशेष रूप से, यह पर्व उन मछुआरों के लिए महत्वपूर्ण होता है जो समुद्र में जीवनयापन करते हैं। वे इस दिन भगवान वरुण से सुरक्षित और समृद्ध भविष्य की कामना करते हैं।
इसके अलावा, इस दिन भगवान शिव का भी पूजन किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि नारियल की तीन आंखें त्रिनेत्रधारी शिव का प्रतीक हैं। श्रावण मास भगवान शिव का प्रिय मास माना जाता है, इसलिए मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा विशेष फलदायी होती है।
भगवान वरुण की आराधना: समुद्र के अधिपति भगवान वरुण को नारियल अर्पित कर शांत समुद्र और रक्षक कृपा की कामना की जाती है। पवित्रता का प्रतीक: नारियल को हिन्दू धर्म में शुद्धता और समर्पण का प्रतीक माना गया है। इसलिए इस दिन उसका अर्पण अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। श्रावण पूर्णिमा का विशेष संयोग: नारली पूर्णिमा वही तिथि है जब रक्षा बंधन और कजरी पूर्णिमा जैसे पर्व भी मनाए जाते हैं। यह संयोग इस दिन को और भी धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बना देता है। कुछ स्थानों पर यह दिन ऋषि तर्पण और पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष अवसर होता है।
दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में नारली पूर्णिमा का त्यौहार समाज के हर वर्ग द्वारा अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है। हालांकि, नारली पूर्णिमा मुख्यतः दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों, जैसे महाराष्ट्र, गोवा, केरल और कर्नाटक के कोली समुदाय, मछुआरे समुदाय और समुद्री व्यापारियों द्वारा बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। मछुआरे इसे अपने आने वाले वर्ष की खुशहाली, समृद्धि और आनंद के प्रतीक के रूप में मानते हैं। इस दिन वे समुद्र में नाव लेकर जाते हैं और नारियल अर्पित करते हैं, जिससे समुद्र के देवता की कृपा उन पर बनी रहे।
नारली पूर्णिमा की पूजा विधि इस प्रकार है:
नारली पूर्णिमा के दिन कुछ खास अनुष्ठानों का पालन किया जाता है। इनमें से प्रमुख अनुष्ठान इस प्रकार हैं:
नारली पूर्णिमा का पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्व रखता है। ये पर्व भारतीय संस्कृति की विविधता और उसकी समृद्धि को दर्शाता है, और हमें अपनी परंपराओं से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है।
समुद्र या नदी किनारे जाकर नारियल अर्पित करें – इससे जीवन में आने वाले संकट शांत होते हैं और समुद्री यात्रा या व्यापार में सफलता मिलती है।
पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाकर वरुण मंत्र का जप करें – मंत्र: ॐ वरुणाय नमः यह उपाय नकारात्मकता को दूर करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है। इस दिन जल स्रोतों की सफाई या जल संरक्षण का संकल्प लें – यह पापनाशक माना जाता है और देव कृपा प्राप्त होती है। नारियल को लाल कपड़े में बांधकर घर की तिजोरी में रखें – इससे आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और दरिद्रता दूर होती है।
नारली पूर्णिमा, प्रकृति और समुद्र देवता के प्रति आभार प्रकट करने का शुभ अवसर है। इस दिन किए गए व्रत और उपाय जीवन में सुख, शांति और धन-धान्य की वृद्धि करते हैं। ऐसी ही और धार्मिक जानकारी के लिए जुड़े रहें श्री मंदिर के साथ।
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