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जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत

यह व्रत माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है।

जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत के बारे में

भक्तों नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। जीवित्पुत्रिका व्रत हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस व्रत को जिउतिया, जितिया या ज्युतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। ये व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, समृद्धि और सुखी जीवन के लिए रखती हैं, जोकि चौबीस घंटे तक निर्जल रहकर किया जाता है। आपको बता दें कि जीवित्पुत्रिका व्रत में एक गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।

1.जीवित्पुत्रिका व्रत तिथि और मुहूर्त 2.चलिए अब जानते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत के अन्य शुभ मुहूर्त3.क्या है जीवित्पुत्रिका व्रत (जितिया व्रत)?4.क्यों रखते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत? 5.जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व6.जीवित्पुत्रिका (जितिया) व्रत के दिन किसकी पूजा करें?7.कौन लोग रख सकते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत?8.जीवित्पुत्रिका व्रत (जितिया) की पूजा सामग्री सूची9.जीवित्पुत्रिका (जितिया) व्रत की संपूर्ण पूजा विधि10.प्रथम दिन (सप्तमी) – नहाय-खाय11.द्वितीय दिन (अष्टमी) – निर्जला उपवास और मुख्य पूजन12.तृतीय दिन (नवमी) – व्रत पारण 13.विशेष ध्यान देने योग्य बातें14.जीवित्पुत्रिका व्रत रखने के लाभ15.जितिया धागे का महत्व16.जितिया व्रत का पारण17.जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन क्या करें? 18.जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन क्या न करें?

जीवित्पुत्रिका व्रत तिथि और मुहूर्त

जीवित्पुत्रिका व्रत हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस व्रत को जिउतिया, जितिया या ज्युतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। ये व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, समृद्धि और सुखी जीवन के लिए रखती हैं, जोकि चौबीस घंटे तक निर्जल रहकर किया जाता है। आपको बता दें कि जीवित्पुत्रिका व्रत में एक गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।

चलिए अब जानते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत के अन्य शुभ मुहूर्त

मुहूर्त 

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:10 ए एम से 04:57 ए एम

प्रातः सन्ध्या

04:34 ए एम से 05:43 ए एम

अभिजित मुहूर्त

11:29 ए एम से 12:18 पी एम

विजय मुहूर्त

01:57 पी एम से 02:46 पी एम

गोधूलि मुहूर्त

06:03 पी एम से 06:26 पी एम

सायाह्न सन्ध्या

06:03 पी एम से 07:13 पी एम

अमृत काल

11:09 पी एम से 12:40 ए एम, सितम्बर 15

निशिता मुहूर्त

11:30 पी एम से 12:17 ए एम, सितम्बर 15

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो स्त्रियां जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं, उनकी संतान की रक्षा स्वयं भगवान कृष्ण करते हैं। यह व्रत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में विशेष रूप से किया जाता है। आपको बता दें कि संतान की रक्षा के साथ-साथ संतान प्राप्ति की कामना के लिए भी जीवित्पुत्रिका व्रत का अनुष्ठान बहुत फलदाई माना जाता है।

क्या है जीवित्पुत्रिका व्रत (जितिया व्रत)?

जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया, ज्युतिया या जिउतिया व्रत भी कहते हैं, अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माताओं द्वारा किया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में अत्यधिक श्रद्धा से मनाया जाता है। इस व्रत में माताएं चौबीस घंटे निर्जल उपवास रखकर अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं।

क्यों रखते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत?

  • यह व्रत मुख्य रूप से संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए रखा जाता है।
  • मान्यता है कि जीवित्पुत्रिका व्रत करने से माता जीमूतवाहन के आशीर्वाद से बच्चे हर प्रकार के संकट से सुरक्षित रहते हैं।
  • इस दिन माताएं अपने बच्चों के सुखी, स्वस्थ और समृद्ध जीवन के लिए कठोर निर्जल व्रत करती हैं।

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व

संतान की रक्षा – इस व्रत से बच्चे जीवनभर स्वस्थ और सुरक्षित रहते हैं।

दीर्घायु की प्राप्ति – यह व्रत संतान की लंबी उम्र के लिए विशेष फलदायी माना जाता है।

मातृ-भक्ति का प्रतीक – यह व्रत माताओं के अपने बच्चों के प्रति त्याग, समर्पण और स्नेह को दर्शाता है।

धार्मिक महत्व – इसमें गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा की जाती है, जिनके परोपकारी और त्यागमयी जीवन से प्रेरणा मिलती है।

संकट-निवारण – मान्यता है कि यह व्रत बच्चों को अकाल मृत्यु और असामयिक विपत्तियों से बचाता है।

जीवित्पुत्रिका (जितिया) व्रत के दिन किसकी पूजा करें?

  • जीवित्पुत्रिका व्रत में गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। उनके साथ ही प्रतीकात्मक रूप से भगवान गणेश जी (विघ्नहर्ता)
  • सियारिन (लोमड़ी) और चील (माता के स्वरूप माने जाते हैं) की पूजा की जाती है।
  • इस दिन माताएं जीमूतवाहन जी की कथा सुनती हैं और अपने बच्चों की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं।

कौन लोग रख सकते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत?

  • यह व्रत मुख्य रूप से संतानवती माताएं रखती हैं।
  • विशेषकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में यह व्रत परंपरा से पीढ़ी-दर-पीढ़ी माताओं द्वारा रखा जाता है।
  • कुछ स्थानों पर परिवार की बड़ी महिलाएं भी संतान की सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं।
  • पुरुषों के लिए यह व्रत अनिवार्य नहीं है, लेकिन वे पूजा में शामिल होकर आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

जीवित्पुत्रिका व्रत (जितिया) की पूजा सामग्री सूची

  • कलश व नारियल (गंगाजल, सुपारी, हल्दी, सिक्का, अक्षत सहित)
  • लाल कपड़ा
  • जनेऊ
  • मौली (कलावा)
  • रोली, सिंदूर, कुमकुम, चंदन, हल्दी, अक्षत
  • धूप, दीपक, घी, कर्पूर, अगरबत्ती
  • दूध, शुद्ध जल, गंगाजल
  • फूल व माला: सफेद फूल (जीमूतवाहन जी के लिए) लाल/पीले फूल (गणेश जी के लिए)
  • बांस की डलिया (सूप/डलिया)
  • गन्ना
  • तोरई/नेनुआ के पत्ते (न मिलने पर पान या आम के पत्ते)
  • मिट्टी या गोबर से बनी सियारिन माता और चील की प्रतिमा
  • जीमूतवाहन जी की प्रतिमा (कुशा, मिट्टी, धातु या चांदी की)
  • जितिया धागा (लाल रंग का, गांठों वाला धागा)
  • फल व प्रसाद – केला, सेब, मौसमी फल, भीगे चने, बताशे
  • पारंपरिक पकवान – ठेकुआ, पूड़ी, हलवा, पुए, नोनी का साग (पारण के लिए)
  • सुगंधित सामग्री – अष्टगंध, अगरबत्ती श्रृंगार सामग्री – चूड़ी, बिंदी, सिंदूर (विशेषकर सियारिन माता के लिए) खिलौने (संतान सुख के प्रतीक स्वरूप अर्पित) पान, सुपारी, दक्षिणा

जीवित्पुत्रिका (जितिया) व्रत की संपूर्ण पूजा विधि

हर माँ का सपना होता है कि उसकी संतान दीर्घायु, स्वस्थ और सुरक्षित रहे। इसी मंगलकामना के साथ माताएं जितिया व्रत (जीवित्पुत्रिका व्रत) का पालन करती हैं। यह व्रत पूरी निष्ठा और विधिपूर्वक किया जाए तो संतान के जीवन में सुख, समृद्धि और सुरक्षा बनी रहती है। यह पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है – सप्तमी (नहाय-खाय), अष्टमी (निर्जला उपवास और पूजन), तथा नवमी (पारण)।

प्रथम दिन (सप्तमी) – नहाय-खाय

  • प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें (संभव हो तो नदी में, अन्यथा घर पर गंगाजल मिलाकर)।
  • व्रत का संकल्प लें और सात्विक भोजन ग्रहण करें।
  • इस दिन नमक और तामसिक भोजन वर्जित होता है।
  • संध्या को पूड़ी व तोरई/नेनुआ की सब्जी तथा अन्य पकवान बनाकर रखें।
  • भोर में इन्हें दही-चूड़ा के साथ छत पर सियारिन और चील को अर्पित करें।

द्वितीय दिन (अष्टमी) – निर्जला उपवास और मुख्य पूजन

इस दिन 24 घंटे निर्जल व्रत का पालन किया जाता है।

पूजा की तैयारी

  • पूजा स्थल को शुद्ध करें और चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं।
  • अक्षत से अष्टदल (आठ पंखुड़ियों वाला कमल) बनाएं।
  • उस पर कलश स्थापित करें।
  • कलश में जल, गंगाजल, सुपारी, सिक्का, हल्दी डालें।
  • मुख पर आम के पत्ते रखें और ऊपर नारियल रखें।
  • मौली से नारियल को बांधें और स्वास्तिक का चिन्ह अंकित करें।
  • तोरई/नेनुआ के पत्तों पर गणेश जी, चील, सियारिन और जीमूतवाहन जी की प्रतिमाओं की स्थापना करें।
  • प्रतिमाओं को वस्त्र (मौली) चढ़ाएं।

पूजन विधि

  • गणेश जी, चील, सियारिन और जीमूतवाहन जी को जल से स्नान कराएं।
  • धूप-दीप प्रज्वलित करें।
  • प्रतिमाओं को सिंदूर, रोली, कुमकुम, चंदन, हल्दी और अक्षत अर्पित करें।
  • फूल, माला और वस्त्र अर्पित करें।
  • गणपति जी को लाल/पीले फूल,
  • जीमूतवाहन जी को सफेद फूल।
  • प्रसाद अर्पित करें – फल, ठेकुआ, पूड़ी, हलवा, पुए।
  • सियारिन माता को श्रृंगार सामग्री चढ़ाएं।
  • बच्चों के खिलौने भगवान के समक्ष रखें (संतान सुख का प्रतीक)।
  • जितिया धागा (लाल, गांठों वाला) चील और सियारिन को अर्पित करें।
  • संतानों की संख्या अनुसार जितिया अर्पित करना शुभ माना जाता है।
  • अपनी श्रद्धा अनुसार दक्षिणा अर्पित करें।
  • जितिया व्रत कथा का श्रवण/पाठ करें।
  • अंत में भगवान जी की आरती करें और त्रुटि क्षमा प्रार्थना करें।

तृतीय दिन (नवमी) – व्रत पारण

  • नवमी के दिन सूर्यास्त से पूर्व व्रत का पारण किया जाता है।
  • पारण से पहले ब्राह्मण को भोजन कराएं या अनाज का दान करें।
  • नोनी (नोनी का साग), पूड़ी और पारंपरिक भोजन ग्रहण करें।
  • इसी दिन माताएं जितिया धागा धारण करती हैं।

विशेष ध्यान देने योग्य बातें

  • व्रत के दौरान झूठ, क्रोध, अपशब्द और तामसिक आचरण से बचें।
  • पूजा में बच्चों की भलाई के लिए पूर्ण निष्ठा और मनोभाव रखना ही सबसे महत्वपूर्ण है।
  • व्रत कथा सुनना और संतान के नाम से मंगलकामना करना अनिवार्य है।

जीवित्पुत्रिका व्रत रखने के लाभ

  • इस व्रत को करने से संतान की आयु लंबी होती है और वह निरोगी रहती है।
  • संतान के जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता आती है।
  • माता-पिता और संतान के बीच प्रेम और विश्वास का बंधन और मजबूत होता है।
  • जीवन में आने वाले संकटों और बाधाओं से संतान की रक्षा होती है।
  • धार्मिक दृष्टि से यह व्रत करने वाली स्त्री को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है।

जितिया धागे का महत्व

  • जितिया व्रत में जितिया धागे का विशेष महत्व है।
  • यह धागा लाल रंग का होता है और इसमें कई गांठें लगाई जाती हैं।
  • पूजा में चील और सियारिन को यह धागा अर्पित करना अनिवार्य है।
  • परंपरा के अनुसार, संतानों की संख्या के बराबर जितिया धागे चढ़ाए जाते हैं।
  • कई माताएँ अपनी सामर्थ्य अनुसार सोने या चांदी के लॉकेट सहित जितिया अर्पित करती हैं।
  • नवमी के दिन पारण के समय माताएँ इस धागे को धारण कर लेती हैं।

जितिया व्रत का पारण

  • पारण नवमी तिथि को सूर्यास्त से पहले किया जाता है।
  • पारण से पहले किसी ब्राह्मण को भोजन कराना या अन्न का दान करना शुभ माना जाता है।
  • पारंपरिक पकवानों में ठेकुआ, पूड़ी, हलवा, पुए और विशेष रूप से नोनी का साग का सेवन किया जाता है।
  • इस दिन ही माताएँ जितिया धागा भी धारण करती हैं।
  • पारण करते समय भगवान जीमूतवाहन को श्रद्धाभाव से प्रणाम कर आशीर्वाद लिया जाता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन क्या करें?

  • सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें।
  • व्रत के दौरान माता निर्जल (बिना जल पिए) रहती हैं।
  • व्रत कथा और जीमूतवाहन की पूजा विधिपूर्वक करें।
  • चील और सियारिन माता की प्रतिमाएँ स्थापित करके उनकी पूजा करें।
  • फूल, फल, प्रसाद, खिलौने और श्रृंगार सामग्री अर्पित करें।
  • संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए मनोकामना करें।
  • पूजा के अंत में भगवान जी को दक्षिणा अर्पित करें और आरती करें।

जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन क्या न करें?

  • इस दिन व्रती महिलाएँ अन्न, जल या फल का सेवन नहीं करतीं।
  • व्रत की अवधि में झगड़ा, क्रोध, कटु वचन और नकारात्मक विचारों से बचना चाहिए।
  • पूजा सामग्री या प्रसाद का अपमान न करें।
  • व्रत कथा सुने बिना या पूजा पूरी किए बिना व्रत को अधूरा न छोड़ें।
  • पारण से पहले किसी भी तरह का भोजन करना अशुभ माना जाता है।

इस तरह जीवित्पुत्रिका व्रत पूरी श्रद्धा और विधि से करने पर संतान को दीर्घायु और सुखमय जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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Published by Sri Mandir·September 3, 2025

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