यह व्रत माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है।
भक्तों नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। जीवित्पुत्रिका व्रत हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस व्रत को जिउतिया, जितिया या ज्युतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। ये व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, समृद्धि और सुखी जीवन के लिए रखती हैं, जोकि चौबीस घंटे तक निर्जल रहकर किया जाता है। आपको बता दें कि जीवित्पुत्रिका व्रत में एक गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।
जीवित्पुत्रिका व्रत हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस व्रत को जिउतिया, जितिया या ज्युतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। ये व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, समृद्धि और सुखी जीवन के लिए रखती हैं, जोकि चौबीस घंटे तक निर्जल रहकर किया जाता है। आपको बता दें कि जीवित्पुत्रिका व्रत में एक गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:10 ए एम से 04:57 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:34 ए एम से 05:43 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | 11:29 ए एम से 12:18 पी एम |
विजय मुहूर्त | 01:57 पी एम से 02:46 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 06:03 पी एम से 06:26 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 06:03 पी एम से 07:13 पी एम |
अमृत काल | 11:09 पी एम से 12:40 ए एम, सितम्बर 15 |
निशिता मुहूर्त | 11:30 पी एम से 12:17 ए एम, सितम्बर 15 |
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो स्त्रियां जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं, उनकी संतान की रक्षा स्वयं भगवान कृष्ण करते हैं। यह व्रत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में विशेष रूप से किया जाता है। आपको बता दें कि संतान की रक्षा के साथ-साथ संतान प्राप्ति की कामना के लिए भी जीवित्पुत्रिका व्रत का अनुष्ठान बहुत फलदाई माना जाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया, ज्युतिया या जिउतिया व्रत भी कहते हैं, अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माताओं द्वारा किया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में अत्यधिक श्रद्धा से मनाया जाता है। इस व्रत में माताएं चौबीस घंटे निर्जल उपवास रखकर अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं।
संतान की रक्षा – इस व्रत से बच्चे जीवनभर स्वस्थ और सुरक्षित रहते हैं।
दीर्घायु की प्राप्ति – यह व्रत संतान की लंबी उम्र के लिए विशेष फलदायी माना जाता है।
मातृ-भक्ति का प्रतीक – यह व्रत माताओं के अपने बच्चों के प्रति त्याग, समर्पण और स्नेह को दर्शाता है।
धार्मिक महत्व – इसमें गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा की जाती है, जिनके परोपकारी और त्यागमयी जीवन से प्रेरणा मिलती है।
संकट-निवारण – मान्यता है कि यह व्रत बच्चों को अकाल मृत्यु और असामयिक विपत्तियों से बचाता है।
हर माँ का सपना होता है कि उसकी संतान दीर्घायु, स्वस्थ और सुरक्षित रहे। इसी मंगलकामना के साथ माताएं जितिया व्रत (जीवित्पुत्रिका व्रत) का पालन करती हैं। यह व्रत पूरी निष्ठा और विधिपूर्वक किया जाए तो संतान के जीवन में सुख, समृद्धि और सुरक्षा बनी रहती है। यह पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है – सप्तमी (नहाय-खाय), अष्टमी (निर्जला उपवास और पूजन), तथा नवमी (पारण)।
इस दिन 24 घंटे निर्जल व्रत का पालन किया जाता है।
इस तरह जीवित्पुत्रिका व्रत पूरी श्रद्धा और विधि से करने पर संतान को दीर्घायु और सुखमय जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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