क्या आप जानते हैं गोवत्स द्वादशी 2024 की सही तिथि और शुभ मुहूर्त? जानें पूजा विधि और कथा के बारे में यहाँ!
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गौमाता को समर्पित है इसलिए इसे गोवत्स द्वादशी के नाम से जाता है। कई क्षेत्रों में यह वसु बारस या नंदिनी व्रत के नाम से भी मनाई जाती है। आज इस लेख में हम आपको गोवत्स द्वादशी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराएँगे।
माताएं इस व्रत को अपनी संतान की लम्बी आयु और उनके संरक्षण के लिए रखती हैं। जो महिलाएं संतान-प्राप्ति का सुख को भोगना चाहती हैं, वे इस दिन गोमाता और बछड़े की पूजा करती हैं, और इस दिन विधिपूर्वक व्रत का पालन करती हैं। इस व्रत और पूजन करने से अज्ञानतावश गाय पर किए अत्याचारों के पाप से भी मुक्ति मिलती है।
हिन्दू संस्कृति में गौ अर्थात गाय कि महत्ता को इस बात से समझा जा सकता है, कि गाय में हर देवी-देवताओं का वास माना जाता है, इसीलिए गाय पूजनीय होती है। इस तरह गोवत्स द्वादशी गोमाता से मिलने वाले अनेक लाभों के लिए उनको आभार व्यक्त करने का शुभ अवसर है।
किसी समय में एक राजा हुआ करता था, जिसकी दो रानियां थी - सीता और गीता। उस राजा के पास एक भैंस और एक गाय थी। रानी सीता को भैंस अतिप्रिय थी, जबकि रानी गीता गाय को बहुत दुलार करती थी। कुछ समय बाद गाय को एक बछड़ा हुआ। एक दिन ईर्ष्यावश भैंस ने रानी सीता को गाय और उसके बछड़े के विरुद्ध कुछ बातें कही, जिनपर रानी ने विश्वास कर लिया और क्रोध में आकर बछड़े को मार दिया और उसे गेहूं के खेत में दबा दिया।
संध्या समय जब राजा भोजन करने बैठा तो उसे अपने महल में चारों ओर केवल मांस और खून दिखाई देने लगा। राजा को परोसा हुआ भोजन भी मलीन हो गया और पूरे राज्य में खून की वर्षा होने लगी। राजा कुछ समझ पाते, उससे पहले ही एक आकाशवाणी हुई, जिससे राजा को रानी सीता की करतूत का पता चला।
राजा ने दुखी मन से उस आकाशवाणी से इस समस्या का हल पूछा। आकाशवाणी से आवाज आई कि कल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से और गाय और बछड़े की पूजा करने से वह मृत बछड़ा जीवित हो जाएगा और आपको इस पाप से भी मुक्ति मिले जाएगी।
राजा ने ऐसा ही किया, जिससे वह बछड़ा जीवित हो गया। इसके बाद राजा ने पूरे राज्य में हर वर्ष गोवत्स द्वादशी का व्रत और पूजन करने की घोषणा की। मान्यताओं के अनुसार तब से यह पूजा और व्रत किया जा रहा है।
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