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देवशयनी एकादशी कब है?

क्या आप जानते हैं कि देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं? जानिए 2025 में देवशयनी एकादशी कब है, इसकी पूजा विधि, व्रत कथा और आध्यात्मिक रहस्य।

देवशयनी एकादशी के बारे में

देवशयनी एकादशी आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इसे हरि शयनी एकादशी या पद्मा एकादशी भी कहते हैं। इस दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिसे चातुर्मास का प्रारंभ माना जाता है। भक्त इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और श्रीहरि से जीवन में सुख-शांति और मोक्ष की कामना करते हैं।

देवशयनी एकादशी 2025

भक्तों नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी के दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए शयन के लिए चले जाते हैं। इस एकादशी का व्रत रखने से जातक को मनोवांछित फल मिलता है।

देवशयनी एकादशी कब है?

  • देवशयनी एकादशी रविवार, जुलाई 6, 2025 को (आषाढ़ शुक्ल एकादशी)
  • 7 जुलाई को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 05:13 ए एम से 07:57 ए एम
  • पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - 11:10 पी एम
  • एकादशी तिथि प्रारम्भ - जुलाई 05, 2025 को 06:58 पी एम बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त - जुलाई 06, 2025 को 09:14 पी एम बजे

इस्कॉन शयन एकादशी

  • इस्कॉन शयन एकादशी रविवार, जुलाई 6, 2025 को
  • 7 जुलाई को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 05:13 ए एम से 09:46 ए एम
  • एकादशी तिथि प्रारम्भ - जुलाई 05, 2025 को 06:58 पी एम बजे से
  • एकादशी तिथि समाप्त - जुलाई 06, 2025 को 09:14 पी एम बजे तक

देवशयनी एकादशी व्रत पारण का समय

  • 7वाँ जुलाई को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 05:13 ए एम से 07:57 ए एम
  • पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - 11:10 पी एम
  • इस्कॉन शयन एकादशी पारण समय - 7वाँ जुलाई को- 05:13 ए एम से 09:46 ए एम

देवशयनी एकादशी 2025 का शुभ मुहूर्त

मुहूर्तसमय
ब्रह्म मुहूर्त 03:50 ए एम से 04:32 ए एम तक
प्रातः सन्ध्या 04:11 ए एम से 05:13 ए एम तक
अभिजित मुहूर्त 11:35 ए एम से 12:30 पी एम तक
विजय मुहूर्त 02:19 पी एम से 03:14 पी एम तक
गोधूलि मुहूर्त 06:51 पी एम से 07:12 पी एम तक
सायाह्न सन्ध्या 06:52 पी एम से 07:55 पी एम तक
अमृत काल 12:51 पी एम से 02:38 पी एम तक
निशिता मुहूर्त 11:42 पी एम से 12:24 ए एम, जुलाई 07 तक
त्रिपुष्कर योग 09:14 पी एम से 10:42 पी एम तक
रवि योग  05:56 ए एम से 10:42 पी एम तक

तो यह थी देवशयनी एकादशी व्रत के शुभ मुहूर्त और तिथि से जुड़ी पूरी जानकारी, जिसे हम पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं।

देवशयनी एकादशी महत्व

देवशयनी एकादशी, जिसे आषाढ़ी एकादशी, हरिशयनी एकादशी या पद्मनाभ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह दिन आध्यात्मिक रूप से अत्यंत विशेष है क्योंकि इसी दिन से भगवान श्री विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और चातुर्मास का आरंभ होता है।

  • देवशयनी एकादशी हिन्दू धर्म में पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और श्रीहरि की उपासना करने से व्यक्ति को जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
  • यह दिन आध्यात्मिक रूप से ‘स्नान, ध्यान और दान’ के लिए सबसे शुभ माना गया है।
  • पुण्य का चार गुना फल इसी दिन किए गए व्रत और भक्ति से मिलता है
  • इस एकादशी से चातुर्मास आरंभ होता है, जो चार महीनों तक चलता है और इस दौरान भगवान श्रीविष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में रहते हैं।

क्यों मनाई जाती है देवशयनी एकादशी?

देवशयनी एकादशी मनाने के पीछे धार्मिक और पौराणिक दोनों ही दृष्टिकोण हैं:

  • पौराणिक मान्यता: श्रीहरि विष्णु का एक स्वरूप पाताल लोक में निवास करता है और एक स्वरूप क्षीर सागर में विश्राम करता है। इस एकादशी को उनके विश्राम में जाने का दिन माना जाता है।
  • आध्यात्मिक प्रतीक: यह समय आत्मनिरीक्षण, संयम, और साधना का होता है। इस दिन से लेकर देवउठनी एकादशी तक (कार्तिक माह) कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि नहीं किए जाते।
  • ब्रज भूमि की महत्ता: चातुर्मास के दौरान सभी देवता ब्रज भूमि में वास करते हैं, इसलिए ब्रज यात्रा अत्यंत पुण्यदायी मानी जाती है।
  • चातुर्मास के दौरान ब्रज नगर की यात्रा करना शुभ माना गया है। मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास में सभी देवता ब्रज में निवास करते हैं। देवशयनी एकादशी पर शालिग्राम की पूजा करने को भी लाभकारी माना गया है। इसके अतिरिक्त इस दिन दान-दक्षिणा देने से पुण्य की प्राप्ति होती है। देवशयनी एकादशी पर किसी दूसरे व्यक्ति का दिया हुआ अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस दिन किसी की निंदा,अपमान और आलोचना भी भूलकर नहीं करनी चाहिए।

देवशयनी एकादशी पर दान का महत्व

दान इस दिन विशेष पुण्य का कारक होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन दान देने से सौ यज्ञों के बराबर फल मिलता है।

किन चीजों का दान करें?

  • अन्न, वस्त्र, जल, शहद, तिल, गुड़, शंख और दक्षिणा का दान शुभ माना गया है।
  • शालिग्राम भगवान या तुलसी माता की मूर्ति, गीता, और पूजा सामग्री भी दान की जा सकती है।

क्या न करें?

  • इस दिन दूसरों का दिया हुआ अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।
  • निंदा, अपमान या छल जैसे व्यवहार से दूर रहना चाहिए।
  • मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से पूर्ण रूप से परहेज करें।

देवशयनी एकादशी पर किसकी पूजा करें?

इस एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा के लिए सबसे उत्तम माना गया है। विशेष रूप से शालिग्राम शिला की पूजा अत्यधिक पुण्यदायी मानी जाती है।

एकादशी की पूजा सामग्री

सनातन व्रतों में एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन संपूर्ण विधि और उचित सामग्री के साथ पूजा करना अत्यंत फलदायक होता है। एकादशी पर की जाने वाली पूजा की सामग्री कुछ इस प्रकार है -

  • चौकी
  • पीला वस्त्र
  • गंगाजल
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा
  • गणेश जी की प्रतिमा
  • अक्षत
  • जल का पात्र
  • पुष्प
  • माला
  • मौली या कलावा
  • जनेऊ
  • धूप
  • दीप
  • हल्दी
  • कुमकुम
  • चन्दन
  • अगरबत्ती
  • तुलसीदल
  • पञ्चामृत का सामान (दूध, घी, दही, शहद और मिश्री)
  • मिष्ठान्न
  • ऋतुफल
  • घर में बनाया गया नैवेद्य

नोट - गणेश जी की प्रतिमा के स्थान पर आप एक सुपारी पर मौली लपेटकर इसे गणेशजी के रूप में पूजा में विराजित कर सकते हैं।

इस सामग्री के द्वारा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है, यह पूजा सेवा आपके लिए श्री मंदिर पर उपलब्ध है। आप इसका लाभ अवश्य उठायें।

देवशयनी एकादशी की पूजा विधि

एकादशी पर ऐसे करें भगवान विष्णु की पूजा

हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस लेख में आप एकादशी की पूजा की तैयारी एवं विधि जानेंगे।

पूजा की तैयारी

  • एकादशी के दिन व्रत करने वाले जातक दशमी तिथि की शाम में व्रत और पूजन का संकल्प लें।
  • दशमी में रात्रि के भोजन के बाद से कुछ भी अन्न या एकादशी व्रत में निषेध चीजों का सेवन न करें।
  • एकादशी के दिन प्रातःकाल उठें, और किसी पेड़ की टहनी से दातुन करें।
  • इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें। स्नान करते समय पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
  • स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। स्वयं को चन्दन का तिलक करें।
  • अब भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य दें और नमस्कार करते हुए, आपके व्रत और पूजा को सफल बनाने की प्रार्थना करें।
  • अब पूजा करने के लिए सभी सामग्री इकट्ठा करें और पूजा शुरू करें।

एकादशी की पूजा विधि

  • सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करके इस स्थान पर एक चौकी स्थापित करें, और इसे गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें।
  • इसके बाद चौकी पर एक पीला वस्त्र बिछाएं। इस चौकी के दायीं ओर एक दीप प्रज्वलित करें।
  • (सबसे पहले दीप प्रज्वलित इसीलिए किया जाता है, ताकि अग्निदेव आपकी पूजा के साक्षी बनें)
  • चौकी के सामने एक साफ आसन बिछाकर बैठ जाएं। जलपात्र से अपने बाएं हाथ से दाएं हाथ में जल लेकर दोनों हाथों को शुद्ध करें। अब स्वयं को तिलक करें।
  • अब चौकी पर अक्षत के कुछ दानें आसन के रूप में डालें और इस पर गणेश जी को विराजित करें।
  • इसके बाद चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें।
  • अब स्नान के रूप में एक जलपात्र से पुष्प की सहायता से जल लेकर भगवान गणेश और विष्णु जी पर छिड़कें।
  • भगवान गणेश को हल्दी-कुमकुम-अक्षत और चन्दन से तिलक करें।
  • इसके बाद वस्त्र के रूप में उन्हें जनेऊ अर्पित करें। इसके बाद पुष्प अर्पित करके गणपति जी को नमस्कार करें।
  • भगवान विष्णु को रोली-चन्दन का तिलक करें। कुमकुम, हल्दी और अक्षत भी चढ़ाएं।
  • अब ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करते हुए श्रीहरि को पुष्प, जनेऊ और माला अर्पित करें।
  • भगवान विष्णु को पंचामृत में तुलसीदल डालकर अर्पित करें। चूँकि भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है इसीलिए भगवान के भोग में तुलसी को अवश्य शामिल करें। (ध्यान दें गणेश जी को तुलसी अर्पित न करें)
  • इसके बाद भोग में मिष्ठान्न और ऋतुफल अर्पित करें।
  • विष्णु सहस्त्रनाम या श्री हरि स्त्रोतम का पाठ करें, इसे आप श्री मंदिर के माध्यम से सुन भी सकते हैं।
  • अंत में भगवान विष्णु की आरती करें। अब सभी लोगों में भगवान को चढ़ाया गया भोग प्रसाद के रूप में वितरित करें।

इस तरह आपकी एकादशी की पूजा संपन्न होगी। इस पूजा को करने से आपको भगवान विष्णु की कृपा निश्चित रूप से प्राप्त होगी।

एकादशी व्रत से मिलने वाले 5 लाभ

भक्तों, भगवान विष्णु के एकादशी व्रत की महिमा इतनी दिव्य है, कि इसके प्रभाव से मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाता है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का भी विशेष महत्व है। हमारी पौराणिक मान्यताएं भी कहती हैं कि एकादशी व्रत से अद्भुत पुण्यफल प्राप्त होता है।

एकादशी का यह पावन व्रत आपके जीवन को और अधिक सार्थक बनाने में सहयोगी सिद्ध होगा। इसी विश्वास के साथ हम आपके लिए इस व्रत और पूजन से मिलने वाले 5 लाभों की जानकारी लेकर आए हैं। आइये, शुरू करते हैं-

पहला लाभ- कठिन लक्ष्य एवं कार्यों की सिद्धि

ये एकादशी व्रत एवं पूजन आपके सभी शुभ कार्यों एवं लक्ष्य की सिद्धि करेगा। इस व्रत के प्रभाव से आपके जीवन में सकारात्मकता का संचार होगा, जो आपके विचारों के साथ आपके कर्म को भी प्रभावित करेगा।

दूसरा लाभ- आर्थिक प्रगति एवं कर्ज से मुक्ति

इस एकादशी का व्रत और पूजन आर्थिक समृद्धि में भी सहायक है। यह आपके आय के साधन को स्थायी बनाने के साथ उसमें बढ़ोत्तरी देगा। अतः इस दिन विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी का पूजन अवश्य करें।

तीसरा लाभ- मानसिक शांति की प्राप्ति

इस एकादशी पर नारायण की भक्ति करने से आपको मानसिक सुख शांति के साथ ही परिवार में होने वाले वाद-विवादों से भी मुक्ति मिलेगी।

चौथा लाभ- पापकर्मों से मुक्ति

एकादशी तिथि के अधिदेवता भगवान विष्णु हैं। एकादशी पर उनकी पूजा अर्चना करने से आपको भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलेगा तथा उनकी कृपा से भूलवश किये गए पापों से भी मुक्ति मिलेगी।

पांचवा लाभ- मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति

श्री हरि को समर्पित इस तिथि पर व्रत अनुष्ठान करने से आपको मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम में स्थान प्राप्त होगा। इस व्रत का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है, इसीलिए जब आप यह व्रत करेंगे, तो इसके फलस्वरूप आपको आपके कर्मों का पुण्य फल अवश्य प्राप्त होगा, जो आपको मोक्ष की ओर ले जाएगा।

तो यह थे एकादशी के व्रत से होने वाले लाभ, आशा है आपका एकादशी का यह व्रत अवश्य सफल होगा और आपको इस व्रत के सम्पूर्ण फल की प्राप्ति होगी।

इस एकादशी पर की जाने वाली पूजा विधि और अन्य महत्वपूर्ण बातें जानने के लिए जुड़े रहिये श्री मंदिर के साथ।

देवशयनी एकादशी के धार्मिक उपाय

  • शालिग्राम शिला की पूजा करें
  • जल, गंगाजल, पंचामृत और तुलसी पत्र से शालिग्राम का अभिषेक करें।
  • इससे श्रीविष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • 108 तुलसी पत्रों पर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” लिखकर अर्पण करें
  • मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यह उपाय अचूक माना जाता है।
  • पीपल वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं
  • पीपल में विष्णु का वास माना गया है। इस दिन दीपदान से पितृ दोष भी शांत होते हैं।
  • विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें
  • मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत फलदायी है।
  • गरीबों को भोजन व वस्त्र दान करें
  • यह दिन दान के लिए सर्वश्रेष्ठ है — विशेषकर अन्न, जल, और पीले वस्त्र।

देवशयनी एकादशी के दिन क्या करना चाहिए?

हिन्दू धर्म में एक वर्ष में आने वाली लगभग चौबीस एकादशी तिथियां होती हैं। हर एकादशी जितनी पुण्य फलदायक होती है, उतना ही इसे कठिनतम व्रतों में से एक माना जाता है। एकादशी के दिन जाने-अनजाने में की गई भूल-चूक से आपका व्रत और पूजन पूरी तरह से निष्फल हो सकता है, इसलिए हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी सावधानियों के बारे में जो आपको इस विशेष दिन पर बरतनी चाहिए। यहाँ देखें कि एकादशी के दिन क्या करना चाहिए?

सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें

एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें, सूर्योदय के काफी समय बाद तक न सोएं। एकादशी के दिन देर तक सोने से आपके घर में दरिद्रता का आगमन हो सकता है। इस दिन देर तक सोने से जो सफलता आप पाना चाहते हैं, उसमें आप पिछड़ सकते हैं। यदि किसी कारण से व्रत नहीं भी रख पा रहे हैं, तो भी जल्दी उठकर दैनिक कार्य शुरू करें।

संपूर्ण दिन व्रत रखें

  • निर्जल व्रत सर्वोत्तम है, परंतु शरीर की क्षमता अनुसार फलाहार लिया जा सकता है।
  • दूध, फल, कंद, कुट्टू के आटे से बने खाद्य आप इस दिन खा सकते हैं।

यदि आप पूरे दिन का व्रत छोड़कर एकासना व्रत अर्थात एक समय भोजन करने वाला व्रत कर रहे हैं, तो ध्यान रहें, इसमें चावल या चावल से बनी कोई भी खाद्य वस्तु न हो। कई किंवदंतियां बताती हैं कि एकादशी पर चावल खाने से यह अति फलदायी व्रत निष्फल हो जाता है। आप इस दिन दूध, फल, कंद, कुट्टू के आटे से बने खाद्य आप इस दिन खा सकते हैं।

भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा करें

  • पीले फूल, तिल, गुड़, पंचामृत और तुलसी का प्रयोग करें।
  • तुलसी पौधे की 7 बार परिक्रमा करें और जल चढ़ाएं
  • तुलसी माता विष्णु जी को अत्यंत प्रिय हैं।
  • ध्यान, जप और भजन करें
  • “ॐ विष्णवे नमः” या “ॐ नमो नारायणाय” का जाप अत्यंत फलदायी है।

देवशयनी एकादशी के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

निंदा, झूठ और क्रोध से दूर रहें

इस दिन किसी की बुराई, अपमान या झूठ बोलना अशुभ फल देता है। देवशयनी एकादशी का पुण्य केवल व्रत से नहीं, बल्कि विचारों की पवित्रता से प्राप्त होता है। वैसे तो परनिंदा करना किसी पाप से कम नहीं है, और रोज ही आपको ऐसा करने से बचना चाहिए, लेकिन एकादशी के दिन यह कार्य भूलकर भी न करें। किसी का दिल न दुखाएं और झूठ न बोलें। भगवान विष्णु को दीनबंधु कहा जाता है, और वे हर कण में विद्यमान हैं। इसीलिए इस शुभ दिन पर कम बोलें लेकिन अच्छा ही बोलें। मन, वाणी और कर्म – तीनों को पवित्र रखना आवश्यक है।

दूसरों का अन्न ग्रहण न करें

अगर उपवास नहीं कर रहे हैं, तो भी केवल अपने हाथों से बना सात्त्विक भोजन ही ग्रहण करें। दूसरों के बनाए भोजन से व्रत की ऊर्जा और मानसिक शुद्धता पर असर पड़ता है।

तामसिक भोजन को त्यागें

तामसिक भोजन इस दिन निषेध माना गया है। सात्त्विक भोजन ही आध्यात्मिक वातावरण बनाए रखता है। यह दिन आत्म-संयम और शरीर-मन की शुद्धि का प्रतीक है। एकादशी के पूरे दिन आप तामसिक भोजन जैसे कि लहसुन-प्याज आदि से बना मसालेदार खाना, मांस, मदिरा, रात का बचा जूठा भोजन आदि का सेवन न करें। ऐसा करने से आप इस व्रत और आपके द्वारा किये जा रहे पूजन-अनुष्ठान का पूरा लाभ नहीं प्राप्त कर पाएंगे। इस दिन तामसिक भोजन का सेवन आपकी पाचन क्रिया को भी प्रभावित कर सकता है, इसलिए इससे सावधान रहें। साथ ही कोशिश करें कि आपके घर में भी किसी अन्य सदस्य द्वारा मांस-मदिरा का सेवन न किया जाए।

मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश से बचें

देवशयनी एकादशी से शुरू होने वाला चातुर्मास ब्रह्मचारी, तपस्वी और गृहस्थ – सभी के लिए संयम का काल है। इस दौरान शादी-ब्याह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कर्म वर्जित माने जाते हैं।

विवाद, अपशब्द और कटु व्यवहार से बचें

यह समय प्रभु की आराधना और आत्मनिरीक्षण का है। किसी से कटु वचन, अपशब्द या झगड़ा न करें — ये सभी पुण्य की हानि कर सकते हैं।

बाल और नाख़ून न काटें

एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाएं और नाख़ून काटने से भी बचें। यह दोनों ही काम आपके घर में सुख-संपन्नता को बाधित करते हैं, और ऐसा करने से आपके घर में क्लेश हो सकता है। साथ ही आप अपने शरीर की स्वच्छता का ध्यान रखें, स्नान करें लेकिन बाल नहीं धोएं। यदि यह बाल और नाख़ून आपके भोग और भोजन में मिल जाए तो उसे दूषित कर सकते हैं।

एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य न तोड़ें

एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। इस व्रत के पालन में बहुत सावधानी बरतें। मन में कोई भी व्याभिचार नहीं आने दें। भगवान विष्णु बहुत दयालु हैं, लेकिन आपका यह कृत्य आपको भगवान विष्णु के कोप का भागी बना सकता है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करने से आपको इस व्रत का सम्पूर्ण लाभ तो मिलेगा ही, साथ ही आपके मन और विचार भी शुद्ध होंगे।

विष्णु जी के योगनिद्रा में जाने के बाद कौन संभालता है सृष्टि की ज़िम्मेदारी?

देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं, और तब से लेकर देवउठनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल पक्ष) तक का समय चातुर्मास कहलाता है। यह काल केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सृष्टि की ऊर्जा व्यवस्था के संचालन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

योगनिद्रा का अर्थ क्या है?

योगनिद्रा कोई सामान्य निद्रा नहीं, बल्कि ईश्वर की एक विशेष स्थिति है, जिसमें वे दृश्य रूप में कार्य नहीं करते, परंतु अपनी सूक्ष्म, आध्यात्मिक उपस्थिति से समस्त ब्रह्मांडीय शक्तियों को सक्रिय बनाए रखते हैं। यह अवधि साधना, तप और भक्ति के लिए उपयुक्त मानी जाती है, और इसमें कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह आदि निषिद्ध होते हैं।

इस काल में सृष्टि की ज़िम्मेदारी कौन निभाता है?

1. भगवान शिव – पालन और संहार के उत्तरदायी

  • भगवान विष्णु के योगनिद्रा में होने के दौरान भगवान शिव, सृष्टि के संतुलन, संरक्षण और संहार की भूमिका को अधिक सक्रिय रूप से निभाते हैं।
  • शिव तत्त्व ही प्रकृति और चेतना के मध्य संतुलन बनाकर चलाता है।
  • भगवान शिव के माध्यम से ही कालचक्र, कर्मफल और जीवन-मरण की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है।
  • शिव पुराण के अनुसार, जब विष्णु ध्यान में लीन होते हैं, तब शिवजी ही संपूर्ण विश्व की चेतना का नियमन करते हैं।

2. ब्रह्मा जी – सृष्टि के रचनाकार

  • जहाँ विष्णु पालनकर्ता और शिव संहारक हैं, वहीं ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता हैं।
  • चातुर्मास में जब विष्णु विश्रामरत होते हैं, उस समय ब्रह्मा जी की भूमिका सृष्टि निर्माण में बढ़ जाती है।
  • वे मनुष्यों, जीवों और लोकों के संतुलन में योगदान करते हैं ताकि संसार चक्र निरंतर चलता रहे।
  • वेदों के अनुसार, ब्रह्मा जी की रचना-शक्ति “सृष्टि की बीजशक्ति” कहलाती है।

3. शेषनाग एवं शालिग्राम रूप में विष्णु का सूक्ष्म संचालन

भगवान विष्णु भले ही योगनिद्रा में हों, परंतु उनकी शेषनाग पर शयन करती हुई दिव्य चेतना सृष्टि का सूक्ष्म रूप से संचालन करती रहती है। शेषनाग को “कालस्वरूप” भी कहा गया है। वह समय की गति और संतुलन बनाए रखने में समर्थ है।

शालिग्राम शिला, जो भगवान विष्णु का प्रतीक रूप है, उसमें उनकी सूक्ष्म उपस्थिति बनी रहती है। इसीलिए चातुर्मास में शालिग्राम की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।

4. माता लक्ष्मी – स्थूल लोकों की दैवी ऊर्जा

भगवान विष्णु के साथ सदा विराजमान रहने वाली माता लक्ष्मी इस काल में भौतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का संतुलन बनाए रखती हैं। चातुर्मास में लक्ष्मी माता की पूजा से धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की रक्षा होती है।

वे जगत के स्थूल संचालन (अर्थव्यवस्था, संतुलन, संपन्नता) का रूप हैं।

शास्त्रों में कहा गया है – जहां विष्णु हैं, वहां लक्ष्मी हैं और जहां लक्ष्मी हैं, वहां दिव्यता और धर्म का वास है।

5. चातुर्मास: एक गहन ब्रह्मांडीय संतुलन का समय

यह समय केवल ईश्वर के विश्राम का नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की सूक्ष्म शक्तियों के जागरण का होता है। इस काल में तप, व्रत, जप, ध्यान, दान और संयम से मनुष्य अपने भीतर दिव्यता का विकास कर सकता है।

तो यह थी देवशयनी एकादशी व्रत से जुड़ी पूरी जानकारी, जिसे हम पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं।

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Published by Sri Mandir·July 1, 2025

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