क्या आप जानते हैं कि देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं? जानिए 2025 में देवशयनी एकादशी कब है, इसकी पूजा विधि, व्रत कथा और आध्यात्मिक रहस्य।
देवशयनी एकादशी आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इसे हरि शयनी एकादशी या पद्मा एकादशी भी कहते हैं। इस दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिसे चातुर्मास का प्रारंभ माना जाता है। भक्त इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और श्रीहरि से जीवन में सुख-शांति और मोक्ष की कामना करते हैं।
भक्तों नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी के दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए शयन के लिए चले जाते हैं। इस एकादशी का व्रत रखने से जातक को मनोवांछित फल मिलता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:50 ए एम से 04:32 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:11 ए एम से 05:13 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:35 ए एम से 12:30 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:19 पी एम से 03:14 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:51 पी एम से 07:12 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:52 पी एम से 07:55 पी एम तक |
अमृत काल | 12:51 पी एम से 02:38 पी एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:42 पी एम से 12:24 ए एम, जुलाई 07 तक |
त्रिपुष्कर योग | 09:14 पी एम से 10:42 पी एम तक |
रवि योग | 05:56 ए एम से 10:42 पी एम तक |
तो यह थी देवशयनी एकादशी व्रत के शुभ मुहूर्त और तिथि से जुड़ी पूरी जानकारी, जिसे हम पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं।
देवशयनी एकादशी, जिसे आषाढ़ी एकादशी, हरिशयनी एकादशी या पद्मनाभ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह दिन आध्यात्मिक रूप से अत्यंत विशेष है क्योंकि इसी दिन से भगवान श्री विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और चातुर्मास का आरंभ होता है।
देवशयनी एकादशी मनाने के पीछे धार्मिक और पौराणिक दोनों ही दृष्टिकोण हैं:
दान इस दिन विशेष पुण्य का कारक होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन दान देने से सौ यज्ञों के बराबर फल मिलता है।
इस एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा के लिए सबसे उत्तम माना गया है। विशेष रूप से शालिग्राम शिला की पूजा अत्यधिक पुण्यदायी मानी जाती है।
सनातन व्रतों में एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन संपूर्ण विधि और उचित सामग्री के साथ पूजा करना अत्यंत फलदायक होता है। एकादशी पर की जाने वाली पूजा की सामग्री कुछ इस प्रकार है -
नोट - गणेश जी की प्रतिमा के स्थान पर आप एक सुपारी पर मौली लपेटकर इसे गणेशजी के रूप में पूजा में विराजित कर सकते हैं।
इस सामग्री के द्वारा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है, यह पूजा सेवा आपके लिए श्री मंदिर पर उपलब्ध है। आप इसका लाभ अवश्य उठायें।
हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस लेख में आप एकादशी की पूजा की तैयारी एवं विधि जानेंगे।
इस तरह आपकी एकादशी की पूजा संपन्न होगी। इस पूजा को करने से आपको भगवान विष्णु की कृपा निश्चित रूप से प्राप्त होगी।
भक्तों, भगवान विष्णु के एकादशी व्रत की महिमा इतनी दिव्य है, कि इसके प्रभाव से मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाता है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का भी विशेष महत्व है। हमारी पौराणिक मान्यताएं भी कहती हैं कि एकादशी व्रत से अद्भुत पुण्यफल प्राप्त होता है।
एकादशी का यह पावन व्रत आपके जीवन को और अधिक सार्थक बनाने में सहयोगी सिद्ध होगा। इसी विश्वास के साथ हम आपके लिए इस व्रत और पूजन से मिलने वाले 5 लाभों की जानकारी लेकर आए हैं। आइये, शुरू करते हैं-
ये एकादशी व्रत एवं पूजन आपके सभी शुभ कार्यों एवं लक्ष्य की सिद्धि करेगा। इस व्रत के प्रभाव से आपके जीवन में सकारात्मकता का संचार होगा, जो आपके विचारों के साथ आपके कर्म को भी प्रभावित करेगा।
इस एकादशी का व्रत और पूजन आर्थिक समृद्धि में भी सहायक है। यह आपके आय के साधन को स्थायी बनाने के साथ उसमें बढ़ोत्तरी देगा। अतः इस दिन विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी का पूजन अवश्य करें।
इस एकादशी पर नारायण की भक्ति करने से आपको मानसिक सुख शांति के साथ ही परिवार में होने वाले वाद-विवादों से भी मुक्ति मिलेगी।
एकादशी तिथि के अधिदेवता भगवान विष्णु हैं। एकादशी पर उनकी पूजा अर्चना करने से आपको भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलेगा तथा उनकी कृपा से भूलवश किये गए पापों से भी मुक्ति मिलेगी।
श्री हरि को समर्पित इस तिथि पर व्रत अनुष्ठान करने से आपको मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम में स्थान प्राप्त होगा। इस व्रत का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है, इसीलिए जब आप यह व्रत करेंगे, तो इसके फलस्वरूप आपको आपके कर्मों का पुण्य फल अवश्य प्राप्त होगा, जो आपको मोक्ष की ओर ले जाएगा।
तो यह थे एकादशी के व्रत से होने वाले लाभ, आशा है आपका एकादशी का यह व्रत अवश्य सफल होगा और आपको इस व्रत के सम्पूर्ण फल की प्राप्ति होगी।
इस एकादशी पर की जाने वाली पूजा विधि और अन्य महत्वपूर्ण बातें जानने के लिए जुड़े रहिये श्री मंदिर के साथ।
हिन्दू धर्म में एक वर्ष में आने वाली लगभग चौबीस एकादशी तिथियां होती हैं। हर एकादशी जितनी पुण्य फलदायक होती है, उतना ही इसे कठिनतम व्रतों में से एक माना जाता है। एकादशी के दिन जाने-अनजाने में की गई भूल-चूक से आपका व्रत और पूजन पूरी तरह से निष्फल हो सकता है, इसलिए हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी सावधानियों के बारे में जो आपको इस विशेष दिन पर बरतनी चाहिए। यहाँ देखें कि एकादशी के दिन क्या करना चाहिए?
एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें, सूर्योदय के काफी समय बाद तक न सोएं। एकादशी के दिन देर तक सोने से आपके घर में दरिद्रता का आगमन हो सकता है। इस दिन देर तक सोने से जो सफलता आप पाना चाहते हैं, उसमें आप पिछड़ सकते हैं। यदि किसी कारण से व्रत नहीं भी रख पा रहे हैं, तो भी जल्दी उठकर दैनिक कार्य शुरू करें।
यदि आप पूरे दिन का व्रत छोड़कर एकासना व्रत अर्थात एक समय भोजन करने वाला व्रत कर रहे हैं, तो ध्यान रहें, इसमें चावल या चावल से बनी कोई भी खाद्य वस्तु न हो। कई किंवदंतियां बताती हैं कि एकादशी पर चावल खाने से यह अति फलदायी व्रत निष्फल हो जाता है। आप इस दिन दूध, फल, कंद, कुट्टू के आटे से बने खाद्य आप इस दिन खा सकते हैं।
इस दिन किसी की बुराई, अपमान या झूठ बोलना अशुभ फल देता है। देवशयनी एकादशी का पुण्य केवल व्रत से नहीं, बल्कि विचारों की पवित्रता से प्राप्त होता है। वैसे तो परनिंदा करना किसी पाप से कम नहीं है, और रोज ही आपको ऐसा करने से बचना चाहिए, लेकिन एकादशी के दिन यह कार्य भूलकर भी न करें। किसी का दिल न दुखाएं और झूठ न बोलें। भगवान विष्णु को दीनबंधु कहा जाता है, और वे हर कण में विद्यमान हैं। इसीलिए इस शुभ दिन पर कम बोलें लेकिन अच्छा ही बोलें। मन, वाणी और कर्म – तीनों को पवित्र रखना आवश्यक है।
अगर उपवास नहीं कर रहे हैं, तो भी केवल अपने हाथों से बना सात्त्विक भोजन ही ग्रहण करें। दूसरों के बनाए भोजन से व्रत की ऊर्जा और मानसिक शुद्धता पर असर पड़ता है।
तामसिक भोजन इस दिन निषेध माना गया है। सात्त्विक भोजन ही आध्यात्मिक वातावरण बनाए रखता है। यह दिन आत्म-संयम और शरीर-मन की शुद्धि का प्रतीक है। एकादशी के पूरे दिन आप तामसिक भोजन जैसे कि लहसुन-प्याज आदि से बना मसालेदार खाना, मांस, मदिरा, रात का बचा जूठा भोजन आदि का सेवन न करें। ऐसा करने से आप इस व्रत और आपके द्वारा किये जा रहे पूजन-अनुष्ठान का पूरा लाभ नहीं प्राप्त कर पाएंगे। इस दिन तामसिक भोजन का सेवन आपकी पाचन क्रिया को भी प्रभावित कर सकता है, इसलिए इससे सावधान रहें। साथ ही कोशिश करें कि आपके घर में भी किसी अन्य सदस्य द्वारा मांस-मदिरा का सेवन न किया जाए।
देवशयनी एकादशी से शुरू होने वाला चातुर्मास ब्रह्मचारी, तपस्वी और गृहस्थ – सभी के लिए संयम का काल है। इस दौरान शादी-ब्याह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कर्म वर्जित माने जाते हैं।
यह समय प्रभु की आराधना और आत्मनिरीक्षण का है। किसी से कटु वचन, अपशब्द या झगड़ा न करें — ये सभी पुण्य की हानि कर सकते हैं।
एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाएं और नाख़ून काटने से भी बचें। यह दोनों ही काम आपके घर में सुख-संपन्नता को बाधित करते हैं, और ऐसा करने से आपके घर में क्लेश हो सकता है। साथ ही आप अपने शरीर की स्वच्छता का ध्यान रखें, स्नान करें लेकिन बाल नहीं धोएं। यदि यह बाल और नाख़ून आपके भोग और भोजन में मिल जाए तो उसे दूषित कर सकते हैं।
एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। इस व्रत के पालन में बहुत सावधानी बरतें। मन में कोई भी व्याभिचार नहीं आने दें। भगवान विष्णु बहुत दयालु हैं, लेकिन आपका यह कृत्य आपको भगवान विष्णु के कोप का भागी बना सकता है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करने से आपको इस व्रत का सम्पूर्ण लाभ तो मिलेगा ही, साथ ही आपके मन और विचार भी शुद्ध होंगे।
देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं, और तब से लेकर देवउठनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल पक्ष) तक का समय चातुर्मास कहलाता है। यह काल केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सृष्टि की ऊर्जा व्यवस्था के संचालन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
योगनिद्रा कोई सामान्य निद्रा नहीं, बल्कि ईश्वर की एक विशेष स्थिति है, जिसमें वे दृश्य रूप में कार्य नहीं करते, परंतु अपनी सूक्ष्म, आध्यात्मिक उपस्थिति से समस्त ब्रह्मांडीय शक्तियों को सक्रिय बनाए रखते हैं। यह अवधि साधना, तप और भक्ति के लिए उपयुक्त मानी जाती है, और इसमें कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह आदि निषिद्ध होते हैं।
भगवान विष्णु भले ही योगनिद्रा में हों, परंतु उनकी शेषनाग पर शयन करती हुई दिव्य चेतना सृष्टि का सूक्ष्म रूप से संचालन करती रहती है। शेषनाग को “कालस्वरूप” भी कहा गया है। वह समय की गति और संतुलन बनाए रखने में समर्थ है।
शालिग्राम शिला, जो भगवान विष्णु का प्रतीक रूप है, उसमें उनकी सूक्ष्म उपस्थिति बनी रहती है। इसीलिए चातुर्मास में शालिग्राम की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।
भगवान विष्णु के साथ सदा विराजमान रहने वाली माता लक्ष्मी इस काल में भौतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का संतुलन बनाए रखती हैं। चातुर्मास में लक्ष्मी माता की पूजा से धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की रक्षा होती है।
वे जगत के स्थूल संचालन (अर्थव्यवस्था, संतुलन, संपन्नता) का रूप हैं।
शास्त्रों में कहा गया है – जहां विष्णु हैं, वहां लक्ष्मी हैं और जहां लक्ष्मी हैं, वहां दिव्यता और धर्म का वास है।
यह समय केवल ईश्वर के विश्राम का नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की सूक्ष्म शक्तियों के जागरण का होता है। इस काल में तप, व्रत, जप, ध्यान, दान और संयम से मनुष्य अपने भीतर दिव्यता का विकास कर सकता है।
तो यह थी देवशयनी एकादशी व्रत से जुड़ी पूरी जानकारी, जिसे हम पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं।
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