
दक्षिण सरस्वती पूजा की तिथि, समय, पूजा विधि की पूरी जानकारी।
दक्षिण में सरस्वती पूजा नवरात्रि उत्सव के नौवें दिन मनाई जाती है। इसका पालन केरल और तमिलनाडु में आयुध पूजा के समान दिन किया जाता है। उत्तरी और पश्चिमी भारत के कुछ क्षेत्रों में नवरात्रि के दौरान आखिरी चार दिनों तक देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। पूजा की शुरुआत सरस्वती आवाहन से होती है। जिसका अर्थ है, मां सरस्वती का आहान करना। इसके बाद सरस्वती पूजा, सरस्वती बलिदान और सरस्वती विसर्जन होता है।
दक्षिण में सरस्वती पूजा नवरात्रि उत्सव के नौवें दिन मनाई जाती है। इसका पालन केरल और तमिलनाडु में आयुध पूजा के समान दिन किया जाता है। उत्तरी और पश्चिमी भारत के कुछ क्षेत्रों में नवरात्रि के दौरान आखिरी चार दिनों तक देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। पूजा की शुरुआत सरस्वती आवाहन से होती है। जिसका अर्थ है, मां सरस्वती का आहान करना। इसके बाद सरस्वती पूजा, सरस्वती बलिदान और सरस्वती विसर्जन होता है।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार दक्षिण सरस्वती पूजा आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष के नवरात्रि के दौरान मनाई जाती है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:13 ए एम से 05:02 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:38 ए एम से 05:50 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | कोई नहीं |
विजय मुहूर्त | 01:46 पी एम से 02:34 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 05:45 पी एम से 06:09 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 05:45 पी एम से 06:57 पी एम |
अमृत काल | 02:31 ए एम, अक्टूबर 02 से 04:12 ए एम, अक्टूबर 02 |
निशिता मुहूर्त | 11:23 पी एम से 12:12 ए एम, अक्टूबर 02 |
तमिलनाडु और केरल में सरस्वती पूजा नवरात्रि उत्सव के नौवें दिन मनाई जाती है। जबकि कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में यह दशहरा के दिन मनाई जाती है। इस दिन भक्ति ज्ञान प्राप्त करने के लिए ज्ञान और बुद्धि की देवी सरस्वती की पूजा विधि विधान के साथ करते है।
दक्षिण भारत में होने वाली आयुध पूजा को ही दक्षिण सरस्वती पूजा कहा जाता है। इस दिन लोग अपने ज्ञान और जीवन-निर्वाह के साधनों की पूजा करते हैं। विद्यार्थी अपनी पुस्तकों की, योद्धा अपने शस्त्रों की, शिल्पकार अपने औज़ारों की और कामकाजी लोग अपने उपकरणों की आराधना करते हैं। यह पूजा इस भावना के साथ की जाती है कि हमारे जीवन में प्रयोग होने वाले सभी साधन पवित्र हैं और उनका सम्मान करना चाहिए।
दक्षिण सरस्वती पूजा करने का मुख्य उद्देश्य है विद्या, बुद्धि और कौशल की देवी मां सरस्वती का आशीर्वाद पाना। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन देवी सरस्वती ने राक्षसों का नाश करने के लिए शस्त्रों को दिव्य शक्ति प्रदान की थी। तभी से यह परंपरा शुरू हुई कि इस दिन शस्त्र, औज़ार, यंत्र और पुस्तकें पूजित की जाती हैं ताकि उनमें सकारात्मक ऊर्जा और शक्ति बनी रहे।
दक्षिण सरस्वती पूजा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि कृतज्ञता व्यक्त करने का प्रतीक है। यह हमें यह सिखाती है कि जीवन में विद्या और साधनों का कितना महत्व है। पूजा के दौरान शस्त्र और औज़ारों को भगवान का रूप मानकर उनका सम्मान करना, हमारे कर्म में निष्ठा और कार्य में सफलता लाता है।
पूजा में प्रायः यह सामग्री उपयोग की जाती है:
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