जानिए बुद्ध पूर्णिमा 2025 की तारीख, भगवान बुद्ध की जीवन गाथा, इस दिन का विशेष धार्मिक महत्व और पूजन के नियम।
हमारे देश में माने जाने वाले विभिन्न धर्मों में से एक है बौद्ध धर्म! भगवान गौतम बुद्ध को बौद्ध धर्म के संस्थापक और प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है। चूँकि कुछ ही दिनों बाद बुद्ध पूर्णिमा देश भर के बौद्ध अनुयायियों द्वारा मनाई जाएगी। तो आइये इस लेख में हम बात करते हैं बुद्ध पूर्णिमा और भगवान बुद्ध के बारे में
हमारे ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को तथागत गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। इसके अनुसार इस वर्ष बुद्ध पूर्णिमा 12 मई 2025, सोमवार को मनाई जाएगी। पुरातन मान्यताओं और इतिहास में चिन्हित कैलेंडर को देखें तो यह गौतम बुद्ध की 2587वीं जयन्ती होगी।
गौतम बुद्ध की 2587वाँ जयन्ती
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:04 ए एम से 04:46 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:25 ए एम से 05:28 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:46 ए एम से 12:40 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:28 पी एम से 03:22 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:57 पी एम से 07:18 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:58 पी एम से 08:01 पी एम तक |
अमृत काल | 11:18 पी एम से 01:05 ए एम, तक (13 मई) |
निशिता मुहूर्त | 11:52 पी एम से 12:34 ए एम, तक (13 मई) |
रवि योग | 05:28 ए एम से 06:17 ए एम तक |
यह बात आज से लगभग 2600 साल पहले की है। इक्ष्वाकु वंश के शाक्य कुल में एक क्षत्रिय राजा थे, जिनका नाम शुद्धोधन था। उनकी दो रानियां थी, रानी महामाया और रानी गौतमी। राजा शुद्धोधन को एक यशस्वी पुत्र की इच्छा थी, जो उनके राजपाठ और वंश की परम्पराओं को संभालें। विवाह के कई वर्षों के बाद जब रानी महामाया गर्भवती हुई तो राजा शुद्धोधन को अपनी इच्छा पूरी होती हुई दिखाई दी।
पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि रानी महामाया को अपनी गर्भावस्था के दौरान स्वपन में एक सफेद ऐरावत हाथी अपनी सूंड में कमल का फूल लिए हुए दिखाई देता था। राजा शुद्धोधन को उनकी महासभा के ज्योतिषी और महापंडितों ने बताया था कि यह स्वपन बहुत शुभ है, और रानी के गर्भ में जो बालक है, वह अवश्य ही दिव्य है। एक दिन जब रानी महामाया अपनी दासियों के साथ लुम्बिनी के वनों में सैर कर रही थी, तब उन्होंने एक बालक को जन्म दिया। यह वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा थी। चन्द्रमा की रौशनी में वह शिशु अद्भुत प्रतीत हो रहा था। राजा शुद्धोधन ने अपने पुत्र को नाम दिया सिद्धार्थ! पूरी प्रजा युवराज के जन्म से बहुत प्रसन्न थी परन्तु सिद्धार्थ के जन्म के कुछ ही दिनों के बाद रानी महामाया का निधन हो गया। इसके बाद रानी गौतमी ने सिद्धार्थ का लालन-पालन किया।
शिशु सिद्धार्थ के नामकरण संस्कार में राजा ने जिन भी ज्योतिषी-पंडितों को बालक का भविष्य बताने और आशीष देने के लिए बुलाया उन सभी ने एक ही भविष्यवाणी की कि “ यह बालक या तो एक सर्वश्रेष्ठ महान राजा बनेगा, या एक सर्वश्रेष्ठ सन्यासी बनेगा और लोगों को धर्म का मार्ग दिखाएगा। इस भविष्यवाणी से राजा शुद्धोधन इतना भयभीत हुए कि उन्होंने अपने राज्य के सभी रोगी, वृद्ध और दुखी लोगों को रानी से निष्कासित कर कहीं दूर बसने का आदेश दिया, ताकि युवराज सिद्धार्थ का सामना कभी भी दुःख, जरा, रोग, मृत्यु आदि से न हो, और वह कभी भी सन्यास लेने के बारे में न सोचें।
आगे चलकर युवराज सिद्धार्थ ने कई महान गुरुओं की छत्रछाया में शिक्षा ली। युद्ध से लेकर हर तरह के कौशल में निपुण हुए। युवावस्था में उन्होंने अपनी बचपन की सखी और कोलीय वंश की राजकुमारी यशोधरा से विवाह किया। रानी यशोधरा और महाराज सिद्धार्थ का एक पुत्र हुआ जिसका नाम उन्होंने रखा राहुल! कपिलवस्तु के साथ अपने राज्य को बहुत अच्छे से संभालते हुए सिद्धार्थ का गृहस्थ जीवन भी सुखद बीत रहा था, कि एक दिन उनका सामना जीवन के दुखद सत्य से हुआ। नगर भ्रमण पर निकले सिद्धार्थ ने एक रोगी, एक वृद्ध और एक मृत व्यक्ति को देखा। यह उनके जीवन का पहला अनुभव था, जिसने उनका अपने राजपाठ और गृहस्थी से मोहभंग किया। इसके बाद सिद्धार्थ कई दिनों तक विचलित रहे। आखिरकार एक दिन वे अपनी पत्नी और शिशु को सोता हुआ छोड़कर, गृह-राज्य त्यागकर वन को चले गए।
सिद्धार्थ ने जीवन के सत्य की खोज के लिए कई सन्यासियों से भेंट की। जिसने भी मोक्ष पाने के जो भी रास्ते या तरीके बताए, उन सबको अपनाकर देखा। लेकिन संतुष्ट नहीं हुए। अंत में अपने ही ज्ञान और अनुभव को समाहित करके कई वर्षों की ध्यान और तपस्या के बाद सिद्धार्थ को गया नामक स्थान पर ज्ञान की प्राप्ति हुई। ज्ञान प्राप्ति के बाद वे गौतम बुद्ध कहलाये। कहा जाता है कि बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति भी पूर्णिमा तिथि के दिन ही हुई थी।
ज्ञान प्राप्ति के बाद तथागत गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की। बौद्ध धर्म के प्रवर्तन के लिए उन्होंने कई वर्षों तक विभिन्न द्वीपों में भ्रमण किया। ज्ञान-उपदेश देते हुए बुद्ध ने उस समय विश्व में फैले कई मिथ्या आडंबरों और रूढ़ियों को भंग किया। अपने ज्ञान को हर जगह फ़ैलाने के लिए बुद्ध ने अपने कई शिष्यों को ज्ञान प्रदान किया और अंत में बौद्ध धर्म के प्रवर्तन का दायित्व अपने शिष्यों को सौंप दिया। उन्होंने कुशीनगर नामक स्थान पर 483 ईसा पूर्व में 80 वर्ष की आयु में 'महापरिनिर्वाण' प्राप्त किया।
तो यह थी बुद्ध पूर्णिमा की जानकारी। ऐसी ही अन्य जयंती और प्रमुख दिवसों की जानकारी के लिए जुड़े रहिये श्रीमंदिर के साथ।
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