जानिए भुवनेश्वरी जयंती 2025 की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि। माता भुवनेश्वरी की आराधना से जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
भुवनेश्वरी जयंती देवी भुवनेश्वरी का जन्मोत्सव है, जो भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। देवी भुवनेश्वरी जगत जननी और शक्ति स्वरूपा मानी जाती हैं। इस दिन भक्तजन उपवास रखते हैं, विशेष पूजा-अर्चना, मंत्र-जप और स्तोत्र पाठ करते हैं।
भुवनेश्वरी जयंती भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। दस महाविद्याओं में से एक भुवनेश्वरी देवी को चौथे स्थान पर रखा गया है। ये देवी आदि शक्ति का ही एक स्वरूप हैं, जो अपार शक्ति का आधार मानी जाती हैं। इन्हें ओम शक्ति के नाम से जाता है। भुवनेश्वरी देवी को प्रकृति की माता माना जाता है, क्योंकि पौराणिक मान्यता के अनुसार माता भुवनेश्वरी ही सभी प्रकृति की देखभाल करती हैं।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:08 ए एम से 04:54 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:31 ए एम से 05:40 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | 11:32 ए एम से 12:22 पी एम |
विजय मुहूर्त | 02:02 पी एम से 02:53 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 06:14 पी एम से 06:37 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 06:14 पी एम से 07:22 पी एम |
अमृत काल | 05:10 पी एम से 06:49 पी एम |
निशिता मुहूर्त | 11:34 पी एम से 12:20 ए एम, सितम्बर 05 |
कहा जाता है कि भुवनेश्वरी जयंती के दिन देवी स्वयं धरती पर आती हैं। भुवनेश्वरी का अर्थ है पूरे ब्रह्मांड की रानी। उनके बीज मंत्र से सृष्टि की रचना हुई। उन्हें राजेश्वरी परम्बा के नाम से भी जाना जाता है। भुवनेश्वरी देवी बहुत ही सौम्य स्वभाव की हैं, जो अपने हर एक भक्त के प्रति सहानुभूति रखती हैं। यह अपने भक्तों को ज्ञान और ज्ञान देता है, साथ ही उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में मदद करता है।
भुवनेश्वरी देवी का एक मुख, 3 आंखें और चार हाथ हैं। जिसमें से दो हाथ वरद मुद्रा और अंकुश मुद्रा में भक्तों की रक्षा करते हैं और आशीर्वाद देते हैं, जबकि अन्य दो हाथ पाश मुद्रा और अभय मुद्रा में दुष्टों के संहार को दर्शाते हैं। माता भुवनेश्वरी का वर्ण श्यामल है, उन्होंने चंद्रमा को मुकुट के रूप में धारण किया है। इस तरह देवी भुवनेश्वरी अपने भक्तों को अभयदान देने वाली और आसुरी शक्तियों का विनाश करने वाली मानी जाती हैं।
भुनेश्वरी जयंती के दिन, ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि करने के बाद, साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद, एक साफ चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर, उस पर मां भुवनेश्वरी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। मूर्ति या तस्वीर स्थापित करने के बाद, मां भुवनेश्वरी को लाल रंग के पुष्प, वस्त्र, श्रृंगार, कुमकुम, अक्षत, चंदन और रूद्राक्ष की माला अर्पित करें। इसके बाद, मां भुवनेश्वरी की विधिवत पूजा करें और मां भुवनेश्वरी के मंत्रों का जाप करें। मंत्र जाप करने के बाद, मां भुवनेश्वरी की कथा पढ़े या सुनें और फिर, माँ को मावे का भोग लगाएं। इसके पश्चात् आरती कर, पूजा का समापन करें।
भुवनेश्वरी देवी की पूजा विशेष रूप से ग्रहण, होली, दिवाली, महाशिवरात्रि, कृष्ण पक्ष और अष्टमी के दिनों में की जाती है। भुवनेश्वरी जयंती के दिन कई भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
इन कार्यक्रमों में जो अनुष्ठान किये जाते हैं, वो हैं,
इस दिन जातक घर में पूजा समय देवी भुवनेश्वरी को लाल फूल, चावल, चंदन और रुद्राक्ष की अर्पित करते हैं। इस दिन कन्या भोज करने का भी विधान है।
छोटी कन्याओं को माता भुवनेश्वरी का रूप माना जाता है। इन कन्याओं के पैर धोकर पूजा की जाती है, फिर उन्हें भोजन कराया जाता है। इसके बाद उन्हें वस्त्र, उपहार व दान दक्षिणा देकर विदा किया जाता है।
माँ भुवनेश्वरी, पूरी दुनिया पर राज करने वाली देवी हैं। देवताओं और योगियों द्वारा भी उनकी पूजा की जाती है। देवी भुवनेश्वरी की पूजा करने से, अनेकों प्रकार के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं-
तो भक्तों, ये थी भुवनेश्वरी जयंती की संपूर्ण जानकारी। हमारी कामना है कि आपका व्रत सफल हो, माता गौरी आपकी मनोकामना बहुत जल्द पूर्ण करें, और अपनी कृपा सदैव आप पर बनाए रखें। व्रत, त्यौहार आदि से जुड़ी जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर।
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