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भीष्म पंचक 2025

जानें भीष्म पंचक व्रत कथा, महत्व और पूजा विधि। इन पाँच दिनों में व्रत कर पाएं भगवान विष्णु और भीष्म पितामह का आशीर्वाद।

भीष्म पंचक के बारे में

यह व्रत महाभारत के भीष्म पितामह से जुड़ा हुआ है। भीष्म पंचक हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के अंतिम पांच दिनों में मनाया जाता है, जो कि देव उठनी एकादशी से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा के साथ सम्पूर्ण होता है। इस प्रकार हरि प्रबोधिनी एकादशी को भीष्म पंचक के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है। इस व्रत का पालन पांच दिनों तक किया जाता है। माना जाता है कि कार्तिक एकादशी व्रत पितामह भीष्म को स्मरण करने से प्रारम्भ होता है और पूर्णिमा के दिन सम्पूर्ण होता है। इसे पन्चभीका भी कहते हैं, साथ ही भीष्म पंचक को विष्णु पंचक के रूप में भी जाना जाता है।

2025 में कब है भीष्म पञ्चक?

भीष्म पंचक का व्रत सभी पापों का नाश करने वाला तथा अक्षय फलदायक माना जाता है। भीष्म पंचक कार्तिक शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होता है और कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को समाप्त होता है।

  • भीष्म पञ्चक प्रारम्भ
  • 01 नवम्बर 2025, शनिवार
  • कार्तिक, शुक्ल एकादशी

भीष्म पञ्चक प्रारंभ 2025 का शुभ मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:23 ए एम से 05:14 ए एम

प्रातः सन्ध्या

04:49 ए एम से 06:06 ए एम

अभिजित मुहूर्त

11:19 ए एम से 12:04 पी एम

विजय मुहूर्त

01:33 पी एम से 02:18 पी एम

गोधूलि मुहूर्त

05:17 पी एम से 05:43 पी एम

सायाह्न सन्ध्या

05:17 पी एम से 06:34 पी एम

अमृत काल

11:17 ए एम से 12:51 पी एम

निशिता मुहूर्त

11:16 पी एम से 12:07 ए एम, नवम्बर 02

क्या है भीष्म पंचक प्रारंभ?

भीष्म पंचक व्रत की शुरुआत देवोत्थान एकादशी के दिन होती है, जो भगवान विष्णु के चार महीने के योगनिद्रा से जागरण का दिन होता है। यह व्रत पितामह भीष्म को समर्पित है, जिन्होंने महाभारत युद्ध के बाद सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते हुए पाँच दिनों तक भगवान श्रीकृष्ण से धर्म, नीति और मोक्ष का उपदेश दिया था।

क्यों मनाते हैं भीष्म पंचक?

  • भीष्म पंचक व्रत को मनाने के पीछे महाभारत से जुड़ी गहरी कथा है।
  • कुरुक्षेत्र युद्ध के उपरांत पाण्डवों की विजय के बाद, श्रीकृष्ण पाण्डवों को भीष्म पितामह के पास लेकर गए। मृत्यु शैया पर लेटे पितामह भीष्म ने पाँच दिनों तक राजधर्म, मोक्षधर्म और वर्णधर्म पर उपदेश दिया।
  • भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि ये पाँच दिन अत्यंत पवित्र होंगे और आने वाले समय में इन्हें भीष्म पंचक के नाम से जाना जाएगा

भीष्म पंचक का महत्व

  • भीष्म पंचक का व्रत पापों के नाश, मोक्ष की प्राप्ति और अक्षय फल देने वाला माना गया है।
  • पद्म पुराण और गरुड़ पुराण में भी इस व्रत की महिमा का वर्णन किया गया है।
  • माना जाता है कि कार्तिक मास के अंतिम पाँच दिन भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं।
  • इन दिनों में व्रत, स्नान, दान और पूजा करने से मनुष्य को अनेक जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और परमधाम की प्राप्ति होती है।

भीष्म पंचक के दिन पूजा कैसे करें?

  • प्रातःकाल स्नान कर पीले या सफेद वस्त्र धारण करें।
  • भगवान श्रीविष्णु या श्रीकृष्ण की प्रतिमा के सामने दीप जलाएं।
  • तुलसी दल, पुष्प, धूप और मिष्ठान अर्पित करें।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करें।
  • पंचामृत से अभिषेक करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  • दिनभर सात्त्विक आहार ग्रहण करें और रात्रि में भक्ति गीत गाएं।

भीष्म पंचक पूजा मंत्र

  • “ॐ भीष्माय नमः।”
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।”
  • “ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।”

इन मंत्रों के जप से पितामह भीष्म और भगवान विष्णु दोनों की कृपा प्राप्त होती है।

भीष्म पंचक के धार्मिक उपाय

  • तुलसी के पौधे में दीप जलाएं, इससे घर में नकारात्मकता दूर होती है।
  • भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं।
  • जरूरतमंदों को वस्त्र, अन्न या दीपदान करें।
  • पाँच दिनों तक उपवास या आंशिक व्रत रखकर विष्णु नाम का जाप करें।
  • पितरों की स्मृति में जल अर्पण करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।

भीष्म पंचक प्रारंभ के दिन क्या करना चाहिए?

  • प्रातःकाल गंगाजल या तीर्थ स्नान करें।
  • विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  • घर में तुलसी पूजन करें।
  • दिनभर संयम, दान और ध्यान में समय बिताएं।
  • मांस, मदिरा, लहसुन-प्याज आदि का सेवन न करें।

आरम्भ से लेकर समाप्ति तक भीष्म पंचक का पर्व

(भीष्म पंचक पर्व का महाभारत से संबंध)

माना जाता है कि प्राचीन काल में जब महाभारत का युद्ध हुआ तब पाण्डवों की विजय हुई। माना जाता है कि पाण्डवों की जीत के उपरांत श्रीकृष्ण पाण्डवों को लेकर भीष्म पितामह के पास गए ताकि पितामह उन्हें कुछ ज्ञान दे सकें। श्रीकृष्ण के अनुरोध करने पर सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में मृत्यु शैय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह ने पाण्डवों को ज्ञान प्रदान किया था। जिसमें पितामह भीष्म ने पाण्डवों को वर्ण धर्म, मोक्ष धर्म और राज धर्म के बारे में उपदेश दिया था। भीष्म ने यह ज्ञान पाण्डवों को पाँच दिनों तक दिया था। ज्ञान देने के पश्चात श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह से कहा कि ‘भीष्म पंचक के यह पाँच दिन लोगों के लिए अत्यंत मंगलकारी होंगे और आने वाले समय में इन्हें भीष्म पंचक के नाम से जाना जाएगा। ये पाँच दिन भीष्म पंचक के ही है जो एकादशी से पूर्णिमा तक मनाये जाते हैं।

भीष्म पंचक के दिनों में अवश्य करें ये 5 शुभ कार्य, होगा समस्त दुखों का नाश

  • मोक्ष प्राप्ति के लिए और अपने पापों के निवारण के लिए भक्त इन पांच दिनों के दौरान उपवास करते हैं।
  • माना जाता है कि यह व्रत अपने बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी फलदायी होता है।
  • भीष्म पंचक व्रत की महानता पद्म पुराण में वर्णित है। जिसके अनुसार कार्तिक माह भगवान श्री हरि को बहुत प्रिय है और इस महीने के दौरान भीष्म पंचक की सुबह जल्दी स्नान करने से भक्तों को सभी तीर्थ स्थानों में स्नान करने का लाभ मिलता है।
  • प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथ गरुड़ पुराण में बताया गया है कि भीष्म पंचक के दौरान भगवान को विशेष प्रसाद अर्पित करना अत्यंत शुभ होता है।
  • ऐसा माना जाता है कि भीष्म पंचक में व्रत और पूजा विधि का पालन करने से मनुष्य मोक्ष का मार्ग पा सकता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने भीष्म को भीष्म पंचक व्रत का महत्व बताया था, जिन्होंने महाभारत में कुरुक्षेत्र युद्ध के समापन के बाद, स्वर्ग में निवास के लिए अपने भौतिक शरीर को छोड़ने से पहले इन पांच दिनों तक इस व्रत का पालन किया था। भक्तजनों द्वारा - अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष के लिए भीष्म पंचक व्रत का पालन किया जाता हैं।

भीष्म पंचक से जुड़ी कथा

प्राचीन काल में जब महाभारत का युद्ध हुआ तब पाण्डवों की विजय हुई थी। माना जाता है कि पाण्डवों की जीत के उपरांत श्रीकृष्ण पाण्डवों को लेकर भीष्म पितामह के पास गए, ताकि पितामह उन्हें कुछ ज्ञान दे सकें। श्रीकृष्ण के अनुरोध करने पर सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में मृत्यु शैय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह ने पाण्डवों को ज्ञान प्रदान किया था। जिसमें पितामह भीष्म ने पाण्डवों को वर्ण धर्म, मोक्ष धर्म और राज धर्म के बारे में उपदेश दिया था। भीष्म ने यह ज्ञान पाण्डवों को पाँच दिनों तक दिया था। ज्ञान देने के पश्चात श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह से कहा कि ‘यह पाँच दिन लोगों के लिए अत्यंत मंगलकारी होंगे और आने वाले समय में इन्हें भीष्म पंचक के नाम से जाना जाएगा। ये पाँच दिन भीष्म पंचक के ही है जो एकादशी से पूर्णिमा तक मनाये जाते हैं।

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Published by Sri Mandir·October 27, 2025

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