बलि प्रतिपदा 2025 कब है? जानें इसकी तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कैसे पाएं भगवान विष्णु का आशीर्वाद इस विशेष दिन पर।
बलि पूजा को बलि प्रतिपदा के नाम से भी जाना जाता है, यह पूजा कार्तिक प्रतिपदा के दिन की जाती है जो कि दीपावली पूजा के अगले दिन होती है। बलि पूजा और गोवर्धन पूजा एक ही दिन आते हैं। जहां गोवर्धन पूजा गिरिराज पर्वत और भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है, तो वहीं बलि पूजा दानवों के राजा बलि का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये की जाती है।
राजा बलि को भगवान विष्णु से अमरत्व का वरदान प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि उनकी पूजा करने से जीवन में खुशहाली और समृद्धि आती है, साथ ही सभी कार्यों में सफलता मिलती है। राजा बलि की पूजा मुख्य रूप से दक्षिण भारत में ओणम के अवसर पर की जाती है। वहीं, उत्तर भारत में कार्तिक महीने की प्रतिपदा तिथि पर राजा बलि की पूजा करने का विशेष विधान है, जिसे बलि प्रतिपदा के नाम से जाना जाता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:19 ए एम से 05:10 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:44 ए एम से 06:00 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | कोई नहीं |
विजय मुहूर्त | 01:36 पी एम से 02:22 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 05:25 पी एम से 05:50 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 05:25 पी एम से 06:40 पी एम |
अमृत काल | 04:00 पी एम से 05:48 पी एम |
निशिता मुहूर्त | 11:17 पी एम से 12:08 ए एम, अक्टूबर 23 |
माना जाता है श्री विष्णु भगवान द्वारा दिये गये वरदान के कारण, दीपावली के दौरान दानव राजा बलि की भी पूजा की जाती है। श्री विष्णु भगवान के वामन अवतार से जुड़ी पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने दानव राजा बलि को पाताल लोक में धकेल दिया था। परन्तु, राजा बलि की उदारता के कारण, भगवान विष्णु ने उन्हें भूलोक (अर्थात पृथ्वी लोक) की यात्रा करने के लिये तीन दिन की अनुमति प्रदान की थी। ऐसी मान्यता है कि राजा बलि तीन दिनों तक पृथ्वी पर निवास करते हैं और इस अवसर पर राजा बलि अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार राजा बलि की छवि भवन या निवास स्थान के मध्य में उनकी पत्नी विन्ध्यावली के साथ बनानी चाहिये। छवि को पाँच अलग-अलग रँगों से विभूषित करना चाहिये। बलि पूजा के दौरान पाँच रंगों से विभूषित छवि की पूजा करनी चाहिये। दक्षिण भारत में, ओणम उत्सव के दौरान राजा बलि की पूजा की जाती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि ओणम की अवधारणा उत्तर भारत में बलि पूजा के समान ही है।
बलि प्रतिपदा के दिन दैत्यराज बलि की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बलि एक महान दानवीर थे जिन्होंने भगवान विष्णु को तीनों लोकों का दान कर दिया था। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उन्हें वैकुण्ठ में स्थान दिया और उन्हें देवताओं के समान पूजने का आशीर्वाद दिया।
बलि प्रतिपदा दान का महत्व सिखाती है। बलि के दान का गुणगान पूरे धर्मग्रंथों में किया गया है। इस दिन दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। भारत के कई हिस्सों में बलि प्रतिपदा को नव वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन नए साल की शुरुआत मानी जाती है और लोग नए काम की शुरुआत करते हैं।
बलि प्रतिपदा पूरे भारत में विभिन्न रूपों में मनाई जाती है —
बलि प्रतिपदा पूजा के लिए निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है — मुख्य पूजन सामग्री:
दान और करुणा की प्राप्ति
समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि
नए आरंभ के लिए शुभ दिन
नकारात्मक शक्तियों से रक्षा
पारिवारिक सुख और एकता
इस दिन मुख्य रूप से निम्न देवताओं की पूजा की जाती है —
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