अन्नकूट पूजा 2025 कब है? जानें शुभ मुहूर्त, विधि और भगवान को अर्पित करें विशेष भोग। इस पर्व पर पाएं उनके आशीर्वाद!
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को, यानि दीपावली के अगले दिन अन्नकूट पर्व मनाया जाता है। अन्नकूट/ गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारंभ हुई। ये त्यौहार ब्रजवासियों के लिए विशेष महत्व रखता है। अन्नकूट के अवसर पर भगवान कृष्ण को छप्पन तरह के पकवानों का भोग लगाया जाता है, साथ ही इस दिन सामूहिक भोज भी आयोजित किया जाता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:19 ए एम से 05:10 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:44 ए एम से 06:00 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | कोई नहीं |
विजय मुहूर्त | 01:36 पी एम से 02:22 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 05:25 पी एम से 05:50 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 05:25 पी एम से 06:40 पी एम |
अमृत काल | 04:00 पी एम से 05:48 पी एम |
निशिता मुहूर्त | 11:17 पी एम से 12:08 ए एम, अक्टूबर 23 |
अन्नकूट पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो दीपावली के अगले दिन, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करते हुए उन्हें छप्पन प्रकार के व्यंजन (छप्पन भोग) का भोग लगाया जाता है। यह पर्व गोवर्धन पूजा के नाम से भी प्रसिद्ध है और विशेष रूप से ब्रज क्षेत्र में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मंदिरों और घरों में विविध प्रकार के अन्न, मिठाइयाँ और पकवान बनाकर भगवान को अर्पित किए जाते हैं।
अन्नकूट पूजा के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है। द्वापर युग में जब व्रजवासी प्रतिवर्ष इंद्र देव की पूजा किया करते थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का उपदेश दिया। भगवान कृष्ण ने कहा कि गोवर्धन पर्वत ही हमें अन्न, जल और आश्रय प्रदान करता है। जब व्रजवासियों ने इंद्र के स्थान पर गोवर्धन पूजा की, तो इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने प्रचंड वर्षा आरंभ कर दी। उस समय श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठिका (छोटी उंगली) पर गोवर्धन पर्वत को सात दिनों तक उठाकर पूरे ब्रज की रक्षा की। इसके बाद व्रजवासियों ने भगवान श्रीकृष्ण को धन्यवाद स्वरूप अन्नकूट पर्व मनाया और छप्पन प्रकार के पकवानों का भोग लगाया। तभी से यह परंपरा हर वर्ष इस दिन निभाई जाती है।
अन्नकूट पूजा का धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक तीनों ही स्तरों पर विशेष महत्व है...
कृष्ण भक्ति और गोवर्धन पूजन का प्रतीक – यह दिन भक्त और भगवान के प्रेम तथा उनकी रक्षा भावना का प्रतीक है। कृतज्ञता का पर्व – इस दिन अन्न, प्रकृति, पशु और पर्वत के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है, जो जीवन के आधार हैं। समृद्धि और अन्न की वृद्धि का प्रतीक – अन्नकूट पर्व पर घर में तैयार किए गए अन्न से पूजा करने से परिवार में सुख, संपन्नता और अन्न-धन की वृद्धि होती है। सामूहिक एकता का संदेश – इस दिन समाज में सामूहिक भोज और दान की परंपरा भी निभाई जाती है, जिससे भाईचारे और सहयोग की भावना बढ़ती है। आध्यात्मिक अर्थ – “अन्नकूट” का अर्थ है ‘अन्न का पहाड़’। यह भगवान के प्रति भक्ति और समर्पण का प्रतीक है — जहाँ भक्त अपने संपूर्ण प्रेम से भगवान को अर्पण करता है।
इस प्रकार, अन्नकूट पूजा हमें यह सिखाती है कि जीवन में प्रकृति, अन्न, पशु और भगवान के प्रति सम्मान और कृतज्ञता रखना अत्यंत आवश्यक है।
अन्नकूट पूजा के दिन मुख्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है। साथ ही गौमाता (गाय), गोप-ग्वाल बाल, और प्रकृति की भी आराधना की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करने से व्यक्ति को भगवान श्रीकृष्ण का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। पूजा के दौरान मिट्टी या गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उसकी पूजा की जाती है।
पूजा में निम्न देवताओं का पूजन किया जाता है
भगवान श्रीकृष्ण – गोवर्धन पूजा के मुख्य देवता गोवर्धन पर्वत – जीवन और प्रकृति के आधार का प्रतीक गौमाता – पवित्रता, समृद्धि और धर्म की प्रतीक इंद्र देव – वर्षा और कृषि समृद्धि के प्रतीक, जिन्हें अप्रत्यक्ष रूप से प्रसन्न किया जाता है प्रकृति माता – अन्न और अन्नदाता तत्वों की कृपा प्राप्त करने के लिए
अन्नकूट पूजा के लिए कुछ विशेष सामग्रियाँ आवश्यक मानी जाती हैं। इन्हें श्रद्धा और भक्ति भाव से एकत्र कर पूजन किया जाना चाहिए —
पूजन के बाद गोवर्धन पर्वत की सात या ग्यारह परिक्रमा करने की परंपरा भी होती है।
अन्नकूट में विभिन्न प्रकार की मौसमी सब्जियां डाली जाती हैं, जिनमें प्रमुख हैं —
अन्नकूट पूजा (गोवर्धन पूजा) भगवान श्रीकृष्ण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है। इस दिन घर और मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। आइए जानें इस पूजा की संपूर्ण विधि
पूजा के बाद गोवर्धन पर्वत (गोबर से बनी आकृति) की परिक्रमा करें और परिवार सहित भगवान श्रीकृष्ण की आरती करें।
पूजा के दौरान निम्न मंत्रों का जाप करने से भगवान श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न होते हैं —
अन्नकूट से जुड़ी पौराणिक कथाओं के अनुसार, वृंदावन में देवराज इंद्र की पूजा करने की परंपरा थी। किंतु एक बार भगवान श्री कृष्ण ने सभी व्रजवासियों को देवराज इंद्र के स्थान पर गोवर्धन पूजा करने के लिये कहा। इस प्रकार उस वर्ष वृंदावन में इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की गयी। उधर, जब इंद्रदेव को इस बात की जानकारी हुई, तो वे बड़े क्रोधित हुए, और वृंदावन को नष्ट करने के लिये मूसलाधार वर्षा आरंभ कर दी। इंद्रदेव के इस प्रकोप से सभी व्रजवासी भयभीत हो गये, और श्री कृष्ण से कहने लगे- हे कांधा! हमने आपके कहने पर इस बार इंद्र भगवान की पूजा नहीं की, अब हम सब इस प्रलय से कैसे बचेंगे!?
इस पर भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका उंगली पर उठाकर संपूर्ण ब्रज को उसके नीचे सुरक्षित किया दिया था। लगभग सात दिन तक व्रजवासी उसी पर्वत के नीचे बैठे रहे। अंत में देवराज इंद्र ने हार मान ली, और जब इस बात का आभास हुआ कि ये तो भगवान की माया है, तब उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। इस प्रकार सात दिन के उपरांत भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को पुनः पृथ्वी पर रखा। तभी से ही हर वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पर्वत की पूजा कर अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है।
जैसा कि आपने जाना कि देवराज इंद्र के प्रकोप से व्रजवासियों की रक्षा करने के लिये श्रीकृष्ण ने लगातार सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाए रखा था। इस दौरान उन्होंने अन्न जल आदि ग्रहण नहीं किया था। सात दिनों के उपरांत एक दिन के आठ पहर के अनुसार माता यशोदा और व्रजवासियों ने उनके लिए छप्पन प्रकार के पकवान बनाये, तभी से छप्पन भोग की परंपरा चली आ रही है। वहीं इस परंपरा से जुड़ी एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु के आसन कमल की पंखुड़ियों की संख्या छप्पन होती है, इसलिये भी भगवान को छप्पन भोग लगाया जाता है।
अन्नकूट महोत्सव के अवसर पर मंदिरों में अनेक प्रकार पकवान बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है। इसके अलावा इस दिन बलि पूजा, मार्गपाली आदि उत्सव भी मनाने की परंपरा है।
इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर उन्हें माला पहनाई जाती है, और धूप-चंदन आदि से उनकी पूजा की जाती है। अन्नकूट पर गौमाता को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारने का विशेष महत्व है।
इस दिन गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसके समीप भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति, गाय तथा ग्वाल-बालों की प्रतिमा स्थापित करके उनकी पूजा की जाती है। इस पूजा में रोली, चावल, फूल, जल, मौली, दही तेल का दीप प्रज्वलन आदि सम्मिलित हैं। पूजा के अंत में परिक्रमा करने का विधान है।
तो ये थी अन्नकूट पूजा से जुड़ी विशेष जानकारी। हमारी कामना है कि इस दिन आपके द्वारा किए गए सभी धार्मिक कार्य सफल हों, और भगवान श्री कृष्ण की कृपा से आपका घर धन धान्य से परिपूर्ण रहे। व्रत त्योहारों से जुड़ी धार्मिक जानकारियों के लिये जुड़े रहिये 'श्री मंदिर' के इस धार्मिक मंच पर।
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