पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा पढ़ें और जानें कैसे इस व्रत से संतान सुख प्राप्त होता है। यह लेख व्रत की महिमा को स्पष्ट करता है।
पुत्रदा एकादशी की कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में राजा सुकेतुमान ने संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत किया था। भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह व्रत संतान सुख हेतु किया जाता है। आइये जानते हैं इस कथा के बारे में...
इस लेख में हम लोग श्रावण पुत्रदा एकादशी से संबंधित पौराणिक कथा के बारे में जानेंगे। इस कथा के बिना पुत्रदा एकादशी का व्रत अधूरा है, इसलिए इस कहानी को अंत तक ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़ें-
प्राचीन काल में भद्रावती नगर में सुकेतु नाम का एक राजा हुआ करता था। उनकी पत्नी का नाम शैव्या था। उन दोनों के जीवन में किसी भी प्रकार की कमी नहीं थी, फिर भी संतान न होने का दुख उन्हें हमेशा कचोटता रहता था।
एक दिन दुखी मन से राजा और रानी अपने मंत्री को सारा राजपाठ सौंपकर वन में चले गए। इस दौरान उनके मन में आत्महत्या करने का विचार भी आने लगा लेकिन, तभी राजा को यह एहसास हुआ कि आत्महत्या से बढ़कर इस दुनिया में कोई और पाप नहीं होता है। तभी अचानक उन्हें वेद पाठ के स्वर सुनाई देने लगे और फिर राजा रानी उसी दिशा में बढ़ते चले गए जिधर से उन्हें वेद पाठ का स्वर आ रहा था।
कुछ आगे चलते हुए उनकी भेंट एक साधु से हुई। साधु के पास पहुंचने पर राजा रानी ने पूछा कि आप लोग किस की पूजा कर रहे हैं तो साधु ने बताया कि हम पुत्रदा एकादशी का व्रत कर रहे हैं। इसके बाद साधु ने राजा और रानी को विस्तार से पुत्रदा एकादशी का महत्व बताया। यह सुनकर दोनों ने अगली पुत्रदा एकादशी का व्रत करने का निश्चय किया। व्रत के प्रभाव और भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें आखिरकार संतान की प्राप्ति हुई। मान्यताओं के अनुसार, लोग इसके बाद पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति की कामना के साथ करने लगे।
बताया जाता है कि, इसके बाद से ही पुत्रदा एकादशी का महत्व माना जाने लगा। ऐसे में जो कोई भी निसंतान दंपत्ति इस दिन श्रद्धापूर्वक और विधि विधान से इस दिन का व्रत पूजन उपवास करते है उन्हें संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है।
लोगों की इस व्रत में असीम आस्था निहित है, हम भी आशा करते हैं इस व्रत का शुभ फल आपको मिले।
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