पढ़ें मासिक दुर्गाष्टमी की व्रत कथा

पढ़ें मासिक दुर्गाष्टमी की व्रत कथा

सभी पापों को होगा नष्ट


मासिक दुर्गाष्टमी की व्रत कथा (Masik Durga Ashtmi Vrat Katha)

पौराणिक मान्यताओं अनुसार,प्राचीन काल में असुर दंभ को महिषासुर नाम के एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी, जिसके भीतर बचपन से ही अमर होने की प्रबल इच्छा थीं।अपनी इसी इच्छा की पूर्ति के लिए उसने अमर होने का वरदान हासिल करने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या आरंभ की।महिषासुर द्वारा की गई इस कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा, ऐसे में महिषासुर, जो सिर्फ अमर होना चाहता था, उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगते हुए खुद को अमर करने के लिए उन्हें बाध्य कर दिया।

परन्तु ब्रह्मा जी ने महिषासुर को अमरता का वरदान देने की बात ये कहते हुए टाल दी कि जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म निश्चित है, इसलिए अमरता जैसी किसी बात का कोई अस्तित्व नहीं है। जिसके बाद ब्रह्मा जी की बात सुनकर महिषासुर ने उनसे एक अन्य वरदान मांगने की इच्छा जताई और कहा- कि ठीक है स्वामी, यदि मृत्यु होना तय है तो मुझे ऐसा वरदान दे दीजिए कि मेरी मृत्यु किसी स्त्री के हाथ से ही हो, इसके अलावा अन्य कोई दैत्य, मानव या देवता, कोई भी मेरा वध ना कर पाए।

जिसके बाद ब्रह्मा जी ने महिषासुर को दूसरा वरदान दे दिया। ब्रह्मा जी द्वारा वरदान प्राप्त करते ही महिषासुर अहंकार से अंधा हो गया और इसके साथ ही बढ़ गया उसका अन्याय। मौत के भय से मुक्त होकर उसने अपनी सेना के साथ पृथ्वी लोक पर आक्रमण कर दिया, इससे धरती पर चारों तरफ से तबाही मच गई। उसके बल के आगे समस्त जीवों और प्राणियों को नतमस्तक होना ही पड़ा। जिसके बाद पृथ्वी और पाताल को अपने अधीन करने के बाद अहंकारी महिषासुर ने इन्द्रलोक पर भी आक्रमण कर दिया, जिसमें उन्होंने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर भी कब्ज़ा कर लिया।

महिषासुर से परेशान होकर सभी देवी-देवता त्रिदेवों अर्थात महादेव, ब्रह्मा और विष्णु के पास सहायता मांगने पहुंचे। इस पर विष्णु जी ने उसके अंत के लिए देवी शक्ति के निर्माण की सलाह दी।जिसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर देवी शक्ति को सहायता के लिए पुकारा और इस पुकार को सुनकर सभी देवताओं के शरीर में से निकले तेज ने एक अत्यंत खूबसूरत सुंदरी का निर्माण किया। उसी तेज से निकली मॉं आदिशक्ति जिसके रूप और तेज से सभी देवता भी आश्चर्यचकित हो गए।

त्रिदेवों की मदद से निर्मित हुई देवी दुर्गा को हिमवान ने सवारी के लिए सिंह दिया और इसी प्रकार वहां मौजूद सभी देवताओं ने भी मॉं को अपने एक-एक अस्त्र-शस्त्र सौंपे और इस तरह स्वर्ग में देवी दुर्गा को इस समस्या हेतु तैयार किया गया।माना जाता है कि देवी का अत्यंत सुन्दर रूप देखकर महिषासुर उनके प्रति बहुत आकर्षित होने लगा और उसने अपने एक दूत के जरिए देवी मॉं के पास विवाह का प्रस्ताव तक पहुंचाया। अहंकारी महिषासुर की इस ओच्छी हरकत ने देवी भगवती को अत्याधिक क्रोधित कर दिया, जिसके बाद ही मॉं ने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा।

मॉं दुर्गा से युद्ध की ललकार सुनकर ब्रह्मा जी से मिले वरदान के अहंकार में अंधे हो चुके महिषासुर उनसें युद्ध करने के लिए तैयार भी हो गया। इस युद्ध में एक-एक करके महिषासुर की संपूर्ण सेना का मॉं दुर्गा ने सर्वनाश कर दिया।इस दौरान माना ये भी जाता है कि ये युद्ध पूरे नौ दिनों तक चला। जिस दौरान असुरों के सम्राट महिषासुर ने विभिन्न रूप धरकर देवी मॉं को छलने की कई बार कोशिश की, लेकिन उसकी सभी कोशिश आखिरकार नाकाम रही और देवी भगवती ने अपने चक्र से इस युद्ध में महिषासुर का सिर काटते हुए उसका वध कर दिया। अंत: इस तरह देवी भगवती के हाथों महिषासुर की मृत्यु संभव हो पाई।

माना जाता है कि जिस दिन मॉं भगवती ने स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक और पाताल लोक को महिषासुर के पापों से मुक्ति दिलाई उस दिन से ही दुर्गा अष्टमी का पर्व प्रारम्भ हुआ।

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