क्या आप एकाग्रता की कमी, पढ़ाई में बाधा या वाणी दोष से परेशान हैं? सरस्वती स्तुति से पाएं मां सरस्वती का आशीर्वाद और जागृत करें ज्ञान का स्रोत – जानिए पाठ और इसके लाभ।
सरस्वती स्तुति देवी सरस्वती की आराधना का महत्वपूर्ण भाग है। यह स्तुति उनकी बुद्धि, ज्ञान, कला और संगीत में श्रेष्ठता का गुणगान करती है। इसे पाठ करने से मन में शांति, विवेक और सफलता मिलती है।
भारतीय संस्कृति में माँ सरस्वती को विद्या, वाणी, संगीत, कला और बौद्धिक चेतना की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता है। वे वेदों की जननी, ब्रह्मा जी की मानसपुत्री और ज्ञान की मूर्तिमान प्रतिमा मानी जाती हैं। देवी सरस्वती की आराधना न केवल छात्रों और शिक्षकों के लिए, बल्कि लेखकों, कलाकारों, गायकों, वक्ताओं और विचारकों के लिए भी अत्यंत फलदायी होती है।
माँ सरस्वती की स्तुति का पाठ हमारे मस्तिष्क की जड़ता को दूर करता है और अंतर्मन को तेज करता है। इस लेख में हम माँ सरस्वती की स्तुति, उसकी विधिपूर्वक पूजा, तथा नियमित पाठ से प्राप्त होने वाले लाभों का गहराई से विवेचन करेंगे।
नीचे माँ सरस्वती की प्रसिद्ध स्तुति दी गई है, जिसका पाठ करने से ज्ञान, वाणी और बुद्धि की वृद्धि होती है।
या कुन्देन्दु-तुषारहार-धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥
दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिः स्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधाना।
हस्तेनैकेन पद्मं सितमपिच शुकं पुस्तकं चापरेण॥
भासा कुन्देन्दुशङ्खस्फटिकमणिनिभाभासमाना समाना।
सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना॥2॥
आशासु राशी भवदंगवल्लि भासैव दासीकृत दुग्धसिन्धुम्।
मन्दस्मितैर्निन्दित शारदेन्दुं वन्देऽरविन्दासन सुन्दरि त्वाम्॥3॥
शारदा शारदाम्बोजवदना वदनाम्बुजे।
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात्॥4॥
सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृ-देवताम्।
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः॥5॥
पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या॥6॥
शुद्धां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥7॥
वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले
भक्तार्तिनाशिनि विरिंचिहरीशवन्द्ये।
कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्॥8॥
श्वेताब्जपूर्ण विमलासन संस्थिते हे
श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे।
उद्यन्मनोज्ञसितपंकजमंजुलास्ये
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्॥9॥
मातस्त्वदीय पदपंकज भक्तियुक्ता
ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण
भूवह्निवायुगगनाम्बुविनिर्मितेन॥10॥
मोहान्धकारभरिते हृदये मदीये
मातः सदैव कुरु वासमुदारभावे।
स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभिः
शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम्॥11॥
ब्रह्मा जगत्सृजति पालयतीन्दिरेशः
शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः।
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे
न स्युः कथंचिदपि ते निजकार्यदक्षाः॥12॥
लक्ष्मिर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तृष्टिः प्रभा धृतिः।
एताभिः पाहि तनुभिरष्टभिर्मां सरस्वती॥13॥
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः।
वेदवेदान्तवेदाङ्ग विद्यास्थानेभ्य एव च॥14॥
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते॥15॥
यदक्षरपदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरी॥16॥
॥ इति श्रीसरस्वती स्तोत्रम् संपूर्णम् ॥
सरस्वती पूजन विशेष रूप से वसंत पंचमी, शारदीय नवरात्रि, परीक्षा काल, विद्यारंभ या किसी नये शैक्षिक कार्य के प्रारंभ में किया जाता है। यह पूजा आप घर पर भी श्रद्धापूर्वक कर सकते हैं।
माँ सरस्वती की स्तुति से मानसिक विकास होता है। यह विद्यार्थियों की एकाग्रता और स्मरणशक्ति बढ़ाती है। जिन बच्चों को पढ़ाई में मन नहीं लगता या भूलने की समस्या रहती है, उनके लिए यह स्तुति अमोघ उपाय है।
यह स्तोत्र उन लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी है जिन्हें बोलने में संकोच होता है या जिनकी वाणी में प्रभाव नहीं होता। वाणी की स्पष्टता और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए यह स्तुति अत्यंत लाभदायक है।
जो लोग कला, संगीत, लेखन, चित्रकला, वक्तृत्व आदि क्षेत्रों में कार्यरत हैं, उनके लिए यह स्तुति प्रेरणास्रोत है। यह रचनात्मक शक्तियों को जाग्रत करती है और नई प्रेरणाएँ प्रदान करती है।
माँ सरस्वती की आराधना से आत्मा शुद्ध होती है। यह स्तोत्र व्यक्ति को अंतर्मुखी बनाता है और ध्यान-साधना में सहायक होता है। आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ने वालों के लिए यह स्तुति मार्गदर्शक है।
नित्य स्तुति का पाठ करने से आलस्य, प्रमाद और अज्ञान दूर होते हैं। व्यक्ति में नई ऊर्जा का संचार होता है और वह कर्मशील बनता है।
माँ सरस्वती की कृपा से विचारों में स्पष्टता आती है। भ्रम, द्वंद्व और असमंजस दूर होता है और निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है।
माँ सरस्वती की स्तुति केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि यह एक मानसिक और आत्मिक साधना है। इसका पाठ न केवल परीक्षा में सफलता के लिए, बल्कि जीवन में स्थायी ज्ञान, विवेक और कला के विकास हेतु किया जाता है। जब व्यक्ति माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त करता है, तो वाणी, बुद्धि, कला और विचारों में दिव्यता प्रकट होती है।
अतः प्रतिदिन या विशेष अवसरों पर माँ सरस्वती की स्तुति श्रद्धापूर्वक अवश्य करनी चाहिए। यह न केवल जीवन को ज्ञानमय बनाती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करती है।
ऐसी ही धार्मिक व ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए जुड़े रहें श्री मंदिर के साथ। हम आपके लिए ऐसे लेख लाते रहेंगे।
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