क्या आप अपने जीवन में शांति, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक बल चाहते हैं? नर्मदा स्तुति से पाएं माँ नर्मदा का आशीर्वाद – जानिए इसका पाठ और चमत्कारी लाभ।
भारतवर्ष में नदियों को मातृस्वरूपा माना गया है, और नर्मदा माता उनमें एक विशिष्ट स्थान रखती हैं। ‘नर्मदा’ का अर्थ है आनंद और शांति देने वाली। शिवजी के तेज से उत्पन्न हुई नर्मदा को मोक्षदायिनी कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि नर्मदा के दर्शन मात्र से ही समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। कहा जाता है कि नर्मदा स्तुति का प्रतिदिन पाठ करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे।
सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम।
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम।।
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम।
कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं।।
सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं।
ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम।।
जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा।
मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा।।
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं।
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम।।
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै।
धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै:।।
रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं।
ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं।।
विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे।।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे।
किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे।।
दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा।
पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा।।
सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम।
पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम।।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे।
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।।
नर्मदा स्तुति को "पापनाशिनी स्तुति" भी कहा जाता है। यह स्तुति शिवजी के तेज से उत्पन्न हुई नर्मदा माता की महिमा का वर्णन करती है। मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति अनजाने या जानबूझकर पाप कर बैठा हो, और उसे पश्चाताप हो, तो श्रद्धा से नर्मदा स्तुति करने से उसके पाप क्षीण हो जाते हैं। यह मानसिक बोझ और अपराधबोध से मुक्ति दिलाती है।
नर्मदा स्तुति का पाठ करने से न केवल हमारी आत्मा शुद्ध होती है बल्कि शरीर और मन भी सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। यह पाठ मस्तिष्क की अशांति, तनाव और नकारात्मक विचारों को धीरे-धीरे समाप्त करता है। नियमित पाठ करने से मन शांत और एकाग्र होता है, जिससे निर्णय लेने की क्षमता और आत्मविश्वास बढ़ता है।
जो व्यक्ति सच्चे मन से नर्मदा माता की स्तुति करता है, उसके जीवन में आर्थिक स्थिरता आती है। रुके हुए कार्य बनने लगते हैं, नौकरी या व्यापार में उन्नति होती है और आय के स्रोत बढ़ते हैं। यह स्तुति लक्ष्मी प्राप्ति के लिए भी अत्यंत प्रभावी मानी जाती है।
नर्मदा माता को मातृरूपा कहा गया है जो परिवार में प्रेम, समर्पण और समझदारी का संचार करती हैं। इस स्तुति का पाठ करने से पति-पत्नी के बीच उपजे मनमुटाव दूर होते हैं और आपसी तालमेल बढ़ता है। यह वैवाहिक जीवन को स्थिर, मधुर और मजबूत बनाती है।
जिन दंपत्तियों को संतान प्राप्त नहीं हो रही होती, वे यदि पूर्ण श्रद्धा और नियम के साथ नर्मदा स्तुति का पाठ करें तो उन्हें संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। नर्मदा माता को पुत्रदा और संतति प्रदायिनी भी कहा गया है। विशेषकर नर्मदा जयंती या पूर्णिमा के दिन यह पाठ अत्यंत फलदायी माना गया है।
नर्मदा जल को औषधीय गुणों से युक्त माना जाता है। इसी तरह नर्मदा स्तुति के माध्यम से मन में जो आध्यात्मिक चेतना आती है, वह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। मानसिक रोग, नींद की कमी, अवसाद जैसी समस्याओं से भी यह राहत देती है।
नर्मदा माता को ‘मोक्षदायिनी’ कहा गया है। ऐसा विश्वास है कि उनके दर्शन, स्नान और नामस्मरण से ही प्राणी जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो सकता है। जो व्यक्ति जीवन भर नर्मदा स्तुति करता है, उसे मृत्यु के समय शिवदूत मार्गदर्शन करते हैं और आत्मा को मोक्ष पथ की ओर ले जाते हैं।
नर्मदा स्तुति का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को जीवन में आने वाले अज्ञात भय, शारीरिक हानि, दुर्घटना, बुरी नजर, शत्रु बाधा और काले जादू जैसी नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा मिलती है। यह एक तरह का आध्यात्मिक कवच प्रदान करती है जो चारों ओर से रक्षा करता है।
हमारे शरीर और प्रकृति में पाँच तत्व होते हैं, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। जल तत्व हमारे भावनात्मक और मानसिक संतुलन का प्रतीक होता है। जब यह असंतुलित होता है, तब व्यक्ति बेचैनी, चिंता या अस्थिरता महसूस करता है। नर्मदा माता जल की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनकी स्तुति करने से यह तत्व संतुलित होता है, जिससे मन शांत, भावनाएँ नियंत्रित और सोच स्पष्ट होती है।
शास्त्रों में वर्णन है कि नर्मदा परिक्रमा या स्नान जितना पुण्य फलदायी होता है, उतना ही पुण्य इस स्तुति के पाठ से भी प्राप्त होता है। जो लोग तीर्थ यात्रा पर नहीं जा सकते, वे घर पर ही नर्मदा स्तुति का पाठ करके तीर्थ जैसा पुण्यफल प्राप्त कर सकते हैं। यह स्तुति नर्मदा दर्शन, स्पर्श और स्नान के फल के समान मानी जाती है।
नर्मदा स्तुति एक ऐसा उपाय है जो हमारे जीवन में शांति, सुख और सकारात्मक ऊर्जा लाता है। इसका पाठ करने से पापों का नाश होता है, मन शांत होता है, और घर में खुशहाली आती है। अगर आप परेशान हैं, मानसिक तनाव में हैं, या जीवन में रुकावटें आ रही हैं, तो नर्मदा स्तुति आपके लिए बहुत लाभदायक हो सकती है। जीवन की समस्याओं से निवारण पाने के लिए प्रतिदिन ‘नर्मदा स्तुति’ अवश्य करें।
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