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Mahishasuramardini Stuti

क्या आप अपने जीवन से अंधकार और बुराई को मिटाना चाहते हैं? महिषासुरमर्दिनी स्तुति से पाएं माँ दुर्गा का अद्भुत आशीर्वाद – जानिए इसका पाठ और चमत्कारी लाभ।

महिषासुरमर्दिनी स्तुति के बारे में

महिषासुरमर्दिनी स्तुति देवी दुर्गा के उस पारमपूज्य रूप का महत्त्वपूर्ण स्तोत्र है, जो महिषासुर नामक अत्यन्त बलशाली राक्षस का वध करके धर्म की रक्षा करती हैं। इस स्तुति को नौरात्रि के दौरान श्रद्धाभावपूर्वक पाठ करने पर देवी की अनन्त कृपा प्राप्त होती है।

महिषासुरमर्दिनी स्तुति

शत्रु-विनाश, संकटमोचन तथा आरोग्यप्राप्ति के लिए यह स्तुति अतिशय प्रभावशाली मानी जाती है। पारंपरिक रूप से इसका उल्लेख दुर्गासप्तशती एवं शिवरहस्यपुराण में मिलता है, जहाँ महिषासुरमर्दिनी स्वरूपिणी माता का महात्म्य वर्णित है।

अयि गिरिनंदिनि नंदितमेदिनि विश्वविनोदिनि नंदनुते,

गिरिवर-विंध्य-शिरोधि-निवासिनि विष्णु-विलासिनि जिष्णुनुते।

भगवति हे शितिकण्ठकुटुंबिनि भूरि-कुटुंबिनि भूरि-कृते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ॥1॥

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते,

त्रिभुवनपोषिणि शंकर तोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते।

दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥2॥

अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रिय वासिनि हासरते,

शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय श्रृंग निजालय मध्यगते।

मधु मधुरे मधु कैटभ गंजिनि कैटभ भंजिनि रासरते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥3॥

अयि शतखण्ड-विखण्डितरुण्ड-वितुण्डित-शुण्ड-गजाधिपते,

रिपु गजगण्ड-विदारण चण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते।

निजभुज-दण्डनिपातितखण्ड-विपातित-मुण्ड भटाधिपते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥4॥

अयि रणदुर्मद-शत्रुवधोदित-दुर्धरनिर्जर-शक्तिभृते,

चतुरविचार-धुरीणमहाशिव-दूत-कृत-प्रमथाधिपते।

दुरित दुरीह-दुराशय-दुर्मति-दानवदूत-कृतांतमते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥5॥

अयि शरणागत वैरि वधूवर वीरवार भयदायकरे,

त्रिभुवन मस्तक शूलविरोधि शिरोधिकृतामल शूलकरे।

दुमिदुमितामरदुंदुभिनादमहोमुखरीकृततिग्मकरे,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥6॥

अयि निजहुँ-कृतिमात्र-निराकृत-धूम्रविलोचन-धूम्रशते,

समरविशोषित-शोणितबीज-समुद्भवशोणित-बीजलते।

शिवशिव शुंभनिशुंभमहाहवतर्पितभूतपिशाचरते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥7॥

धनु-रनुसंगरणक्षण संगपरिस्फुर दंगनटत्कटके,

कनक पिशंग-पृषत्क-निषंगरसद्भटश‍ृंगहता वटुके।

कृतचतुरङ्ग-बलक्षितिरङ्ग-घटद्बहुरङ्गरट-द्बटुके,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥8॥

सुरललनात तथेयित थेयित थाभिनयोत्तर नृत्यरते,

हासविलास हुलास मयि प्रणतार्तजनेऽमितप्रेमभरे।

धिमिकिट धिक्कट धिकट धिमिध्वनि घोरमृदंग निनादरते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥9॥

जय जय जप्य जये जयशब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुते,

झणझण झिञ्झिमि झिंकृत नूपुरसिंजित मोहित भूतपते।

नटितन टार्धन टीनटनायक नाटित नाट्य सुगानरते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥10॥

अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कांतियुते,

श्रितरजनी रजनी रजनी रजनी रजनी करवक्त्रवृते।

सुनयन भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥11॥

सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्ल कमल्लरते,

विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते।

सितकृत फुल्लि समुल्ल सितारुण तल्ल जपल्ल वसल्ललिते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥12॥

अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्ग जराजपते,

त्रिभुवन भूषण भूत कलानिधि रूप पयोनिधि राजसुते।

अयि सुदती जनलाल समान समोहन मन्मथ राजसुते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥13॥

कमल दलामल कोमल कांति कलाकलितामल भाललते,

सकल विलास कलानिलयक्रम केलिचलत्क लहंसकुले।

अलिकुल संकुल कुवलय मंडल मौलि मिलद्भ कुलालिकुले,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥14॥

करमुरली रववीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते,

मिलित पुलिन्द मनोहर गुंजित रञ्जित शैलनि कुञ्जगते।

निजगुण भूत महाशबरी गण सद्गुण संभृत-केलि-तले,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥15॥

कटि तट पीत दुकूल विचित्र मयूख तिरस्कृत चंद्र रुचे,

प्रणत सुरासुर मौलिमणि-स्फुर दंशुल सन्नख चंद्ररुचे।

जित कनकाचल मौलि पदोर्जित निर्झर कुंजर कुंभ कुचे,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥16॥

विजित सहस्र करैक सहस्र करैक सहस्र करैक नुते,

कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनु सुते।

सुरथ समाधि समान समाधि समाधि समाधि सुजा तरते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥17॥

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे,

अयि कमले कमला निलये कमला निलयः स कथं न भवेत्।

तव पदमेव परंपद मित्यनु शील यतो मम किं न शिवे,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥18॥

कनकल सत्कल सिन्धुजलैरनु सिञ्चिनुते गुण रङ्गभुवं,

भजति स किं न शची कुचकुंभ तटी परिरंभ सुखानु भवम्।

तव चरणं शरणं करवाणि नतामर वाणि निवासि शिवं,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥19॥

तव विमलेन्दु कुलं वदनेन्दु मलं सकलं ननु कूलयते,

किमु पुरुहूत पुरीन्दु मुखी सुमुखी भिरसौ विमुखी क्रियते।

मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥20॥

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्य मुमे,

अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुमितासि रते।

यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुता दुरुतापम पाकुरुते,

जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥21॥

स्तुतिमिमां स्तिमित: सुसमाधिना नियमतो यमतोsनुदिनं पठेत्।

प्रिया रम्या स निषेवते परिजनोऽरिजनोऽपि च तं भजेत् ॥22॥

॥ महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र सम्पूर्णं॥

पाठ विधि

समय चयन एवं शुद्धि

प्रातःकाल (ब्राह्म मुहुर्त) या सायंकाल में, जब वातावरण शांत और पवित्र होता है, तब पाठ आरंभ करें। पाठ से पूर्व स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने से मन-शरीर दोनों शुद्ध होते हैं।

पूजा-स्थान एवं उपकरण

मंदिर या घर के शांत कोने में माता का छोटा या बड़ा फोटो/मूर्ति स्थापित करें। सामने रोशनी के लिए दीप, सुगंध के लिए धूपबत्ती, तथा निष्काम भाव से पुष्प, गुड़-चंदन आदि रखें।

ध्यान एवं आराधना

दीप प्रज्ज्वलित कर ‘ॐ नमो भगवती महिषासुरमर्दिन्यै’ मन्त्र से आरंभ करें। २–३ मिनट श्वास-प्रश्वास की एकाग्रता से देवी का ध्यान कर मन को केंद्रित करें।

स्तोत्र पाठ

श्लोकों का उच्चारण स्पष्ट, मधुर और शुद्ध होकर करें। प्रत्येक श्लोक के अन्त में ‘ॐ नमो भगवती महिषासुरमर्दिन्यै’ जपें। मध्यम गति और विशुद्ध स्वरोच्चारण से पाठ करने से शक्ति प्रवाह रहता है।

नैवेद्य अर्पण

पाठ समाप्ति पर प्रसाद स्वरूप पुष्प, फल या सेंधा नमक सहित गुड़ अर्पित करें। इसे मंत्रोचार के साथ श्रद्धापूर्वक माता को समर्पित करें।

समापन एवं आर्चना

अंत में ३ बार ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ या ‘ॐ नमो भगवती महिषासुरमर्दिन्यै’ मन्त्र का उच्चारण कर पाठ पूर्ण करें। दीपक गंगाजल या तुलसीजल से विसर्जित कर दें।

नियत अनुष्ठान

प्रतिदिन वही समय आवंटित कर पाठ करने से माता की कृपा स्थिर होती है। विशेषतः नवरात्रि के प्रत्येक दिन अष्टमी तक नियमित पाठ अत्यंत फलदायी माना जाता है।

पाठ के लाभ

शत्रु-विनाश एवं भय-नाशन

  • महिषासुरमर्दिनी का स्मरण निरंतर भय और शत्रुजनित बाधाओं का नाश करता है।

मानसिक शांति एवं धैर्य-वृद्धि

  • नियमित पाठ से मन शांत होता है, अस्थिर विचार स्थिर होकर आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

आरोग्य–समृद्धि एवं रोगशान्ति

  • पठन से चक्रों का संतुलन बनता है; इससे शारीरिक रोग शांत होते हैं और स्वास्थ्य सुख मिलता है।

बाधा-विघ्नों का नाश

  • गृहकार्य, व्यवसाय या अध्ययन में आने वाली विघ्न बाधाएँ दूर होती हैं।

आत्मविश्वास की वृद्धि

  • देवी के साहसिक रूप का स्मरण करके आत्मबल में वृद्धि होती है, जिससे निर्णय दृढ बनते हैं।

आर्थिक समृद्धि एवं कल्याण

  • दुर्गापूजन से निष्ठा व कर्मयोगी जीवन शैली का स्थापत्य होता है, जिसका प्रतिफल आर्थिक उन्नति के रूप में मिलता है।

परिवार में सौहार्द्र व आनंद

  • परिवार के सदस्य नारायण विधि के अनुरूप मनोभाव से शामिल होकर सामूहिक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं।

संकटमोचन एवं संकटहरण

  • जीवन की अप्रत्याशित समस्याएँ—स्वास्थ्य, शिक्षा, संबंध—विघ्नरहित होती हैं।

दिव्य अनुग्रह की प्राप्ति

  • मातृकृपा अनवरत बनी रहती है, जिससे भक्त को आध्यात्मिक प्रगति के मार्गों का दर्शन होता है।

नवरात्रि व यज्ञफलदायी

  • नवरात्रि के दौरान पाठ विशेष फलदायी; यज्ञ, हवन और दान-धर्म के समान पुण्यदायी माना जाता है।
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Published by Sri Mandir·June 10, 2025

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