
श्री जगन्नाथ अष्टकम् के पाठ से भक्त को भगवान जगन्नाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र जीवन में शांति, सुख, समृद्धि और भक्ति भाव की वृद्धि करने का श्रेष्ठ साधन है। जानिए इसका सम्पूर्ण पाठ और महत्व।
श्री जगन्नाथ अष्टकम् भगवान जगन्नाथ को समर्पित एक पवित्र और भक्तिपूर्ण स्तोत्र है। इसमें भगवान जगन्नाथ की महिमा, उनकी लीला और भक्तों पर उनकी कृपा का वर्णन किया गया है। इसका पाठ करने से मन, बुद्धि और आत्मा की शुद्धि होती है तथा जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक शक्ति का वास होता है। श्रद्धा और भक्ति से इसका जप करने पर जगन्नाथ भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
श्री जगन्नाथ अष्टकम में भगवान जगन्नाथ की स्तुति में आठ श्लोक हैं। पुरी में जगन्नाथ मंदिर का दौरा करने के बाद आदि शंकराचार्य ने श्री जगन्नाथ अष्टकम की रचना की थी। उन्होंने श्री जगन्नाथ अष्टकम के छंदों को ब्रह्मांड के रचनाकार और संरक्षक भगवान जगन्नाथ के चरणों में समर्पित किया। इन छंदों में, उन्होंने भगवान की मोहक सुंदरता, उनकी लीलाओं और गुणों का वर्णन किया, जिन्हें वे हमेशा के लिए अपनी आंखों में रखना चाहते हैं। यह जगन्नाथ स्वामी का सबसे अधिक प्रचलित स्तोत्र है |
जगन्नाथ भगवान श्रीकृष्ण का ही एक रूप हैं। मान्यता है कि श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद उनके हृदय से ही भगवान विश्वकर्मा जी ने जगन्नाथ सहित तीनों मूर्तियों का निर्माण किया था। ऐसे में जगन्नाथ भगवान का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है। जगन्नाथ भगवान का यह रूप इसलिए भी सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है क्योंकि जब माता यशोदा द्वारकावासियों को श्रीकृष्ण के बचपन की अठखेलियां व नटखट लीलाएं बता रहीं थी तब मुरलीधर की आंखें शर्म की वजह से बहुत बड़ी हो गयी थीं।
आदि शंकराचार्य ने अष्टकम में जगन्नाथ रथ यात्रा के विवरण को खूबसूरती से चित्रित किया है, जो कोई भी श्री जगन्नाथ अष्टकम को पढ़ता और सुनता है उसे मंत्रमुग्ध कर देता है। जो कोई भी इन श्लोकों को पूरी श्रद्धा से पढ़ता और सुनता है, भगवान जगन्नाथ उसे आशीर्वाद देते हैं। वास्तव में, इन श्लोकों का पूर्ण भक्ति के साथ पाठ करने से भौतिक सुखों से आनंद और वैराग्य मिलता है और व्यक्ति शुद्ध हृदय वाला हो जाता है। नतीजतन, भक्त इन श्लोकों को प्रेम और पूर्ण भक्ति के साथ पढ़कर हरिलोक तक पहुंच सकता है। यह पावन और शक्तिशाली अष्टक है जिसके पाठ मात्र से जगन्नाथ स्वामी प्रसन्न हो जाते है, मनुष्य की आत्मा पापों से मुक्त होकर विशुद्ध हो जाती है। इस अष्टकम के पाठ से आत्मा पवित्र होकर अंत में विष्णु लोक को प्राप्त करती है। हर वैष्णव को मुक्ति देने वाला यह स्तोत्र भगवान जगन्नाथ जी को अतिशय प्रिय है।
जगन्नाथ अष्टकम का पाठ नियमित रूप से करने से जातक को अभूतपूर्व लाभ देखने को मिलते हैं। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के ऐसे अवतार थे, जो सभी 16 कलाओं में निपुण थे। उनका यह अवतार कलयुग की दृष्टि से बहुत ही प्रासंगिक था। कलयुग में मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग श्रीकृष्ण के दिखाए गए मार्ग पर चलकर बहुत आसानी से पाया जा सकता है।
एक तरह से श्रीकृष्ण ही कलयुग में हमारा मार्गदर्शन करने में सक्षम हैं। भगवान जगन्नाथ उनके अनेक रूपों में से एक रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं। जगन्नाथ जी का ये अष्टक पढ़ने से जातक को अपनी भावनाओं को नियंत्रण रखने में मदद मिलती है। वो मोहमाया से दूर रहता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कदाचित् कालिन्दी तट विपिन सङ्गीत तरलो मुदाभीरी नारी वदन कमला स्वाद मधुपः। रमा शम्भु ब्रह्मामरपति गणेशार्चित पदो जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु में॥ 1
अर्थ - भगवान जगन्नाथ बहुत ज्यादा आनंद में होते हैं और वे कालिंदी (यमुना) नदी के किनारे अपनी बांसुरी से मधुर धुन बजाते हैं तो उस मधुर धुन को सुनकर गोपियां और ग्वाले उनकी ओर खींचे चले आते हैं। भगवान जगन्नाथ के चरणों की सेवा तो स्वयं मां लक्ष्मी, भगवान शिव शंकर, ब्रह्मा जी, गणेश भगवान व देवराज इंद्र भी करते हैं। हे प्रभु आप मेरा मार्गदर्शन करें और अपने आशीर्वाद से अनुग्रहित करें।
भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिच्छं कटितटे दुकूलं नेत्रान्ते सहचर-कटाक्षं विदधते। सदा श्रीमद्-वृन्दावन-वसति-लीला-परिचयो जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥ 2
अर्थ – सृष्टि के पालनहार भगवान जगन्नाथ ने अपने हाथों में बांसुरी पकड़ी हुई है, सिर पर मोर पंख लगा रखा है तो कंधों और कमर पर पीले रंग का अंगवस्त्र धारण कर रखा है। वे अपनी तिरछी नजरों से अपने भक्तों व प्रेमियों को देख रहे हैं और वृंदावन में की गई अपनी लीलाओं की अनुभुति करा रहे हैं। हे जगन्नाथ स्वामी!! अब आप मेरा मार्गदर्शन कर मेरा उद्धार करें।
महाम्भोधेस्तीरे कनक रुचिरे नील शिखरे वसन् प्रासादान्तः सहज बलभद्रेण बलिना। सुभद्रा मध्यस्थः सकलसुर सेवावसरदो जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥ 3
अर्थ- हे जगन्नाथ भगवान नीले रंग के पर्वतों के शिखर से घिरा हुआ जगन्नाथ पुरी में आपका दिव्य विशाल मंदिर समुद्र के तट पर बना हुआ है। वहां आप अपने बड़े भाई बलभद्र (बलराम) जी के साथ विराजमान होकर हम सभी के मन को आनंदित कर रहे हैं। आप दोनों के बीच में बहन सुभद्रा जी विराजमान हैं। इस रूप में आप देवताओं, मनुष्यों, ऋषि-मुनियों सभी को बहुत आनंदित कर रहे हैं। आप मुझे आशीर्वाद दें और मेरा मार्गदर्शन करें।
कृपा पारावारः सजल जलद श्रेणिरुचिरो रमा वाणी रामः स्फुरद् अमल पङ्केरुहमुखः। सुरेन्द्रैर् आराध्यः श्रुतिगण शिखा गीत चरितो जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे॥ 4
अर्थ – हे प्रभु जगन्नाथ भगवान आप कृपा के सागर हैं। आपके अपने आशीर्वाद की वर्षा हम पर करें। आप हमें मां लक्ष्मी सा वैभव व मां सरस्वती सा ज्ञान प्रदान करते हैं। उनका मुख पूर्ण बेदाग चंद्रमा और खिले हुए कमल पुष्प के समान है। सभी देवताओं, देवराज और ऋषि-मुनियों के द्वारा आपकी पूजा की जाती है और मंगल गीत गाए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ आप मेरा उद्धार करें और मेरा मार्गदर्शन करें।
रथारूढो गच्छन् पथि मिलित भूदेव पटलैः स्तुति प्रादुर्भावम् प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः। दया सिन्धुर्बन्धुः सकल जगतां सिन्धु सुतया जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे॥ 5
अर्थ- जब जगन्नाथ भगवान अपनी रथयात्रा के दौरान मंदिर से निकलकर अपने भक्तों के बीच पहुंचते हैं तो मार्ग में ब्राह्मणों और उनके भक्तों के द्वारा उनके स्वागत में मंगल गीत गाए जाते हैं। हे जगन्नाथ भगवान आप अपनी पत्नी माता लक्ष्मी संग मिलकर मेरा मार्गदर्शन करें।
परंब्रह्मापीड़ः कुवलय-दलोत्फुल्ल-नयनो निवासी नीलाद्रौ निहित-चरणोऽनन्त-शिरसि। रसानन्दी राधा-सरस-वपुरालिङ्गन-सुखो जगन्नाथः स्वामी नयन-पथगामी भवतु मे॥ 6
अर्थ - भगवान जगन्नाथ ब्रह्मा जी के मस्तक का आभूषण हैं। उनकी आंखें विकसित हो चुके कमल पुष्प की पंखुड़ियों के समान है। वे नीलांचल पर्वत पर निवास करते हैं और उनके चरण शेषनाग जी के मस्तक पर है। उन्हें प्रेम बहुत ही भाता है और वे ठंडे तालाब के समान राधा जी को आलिंगन कर उन्हें सुख प्रदान करते हैं। हे जगन्नाथ भगवान!! आप मेरा भी मार्गदर्शन कर दीजिये।
न वै याचे राज्यं न च कनक माणिक्य विभवं न याचेऽहं रम्यां सकल जन काम्या वर वधू। सदा काले काले प्रमथ पति ना गीत चरितो जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु में॥ 7
अर्थ- हे जगन्नाथ भगवान, मुझे ना तो राज्य की कामना है और न ही घर की कामना, ना ही मैं स्वर्ण, मणि आदि वैभव युक्त धातुओं की मांग करता हूँ, न ही मैं अन्य पुरुषों की भांति सौन्दर्ययुक्त पत्नी की मांग कर रहा हूँ। मैं तो बस यही चाहता हूँ कि जिसकी महिमा का गुणगान स्वयं भगवान शिव करते हैं, वे जगन्नाथ भगवान मेरा मार्गदर्शन करें।
हर त्वं संसारं द्रुततरम् असारं सुरपते हर त्वं पापानां विततिम् अपरां यादवपते। अहो दीनेऽनाथे निहित चरणो निश्चितमिदं जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे॥ 8
अर्थ- हे मेरे स्वामी जगन्नाथ भगवान!! मुझे अपनी सांसारिक मोह माया के जंजाल से मुक्त कर दीजिए क्योंकि ये मुझे भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं। मैं पापों के समुद्र में खो गया हूँ जिसका कोई किनारा नहीं है, ऐसे में मुझे इस सागर को पार करवा दीजिये। जो व्यक्ति इस संसार में बहुत दु:खी है और जिसे किसी का भी आसरा नहीं है, उसे ही आपके चरण कमल प्राप्त होते हैं। अब आप ही मेरा मार्गदर्शन कीजिये।
जगन्नाथाष्टकं पुन्यं यः पठेत् प्रयतः शुचिः। सर्वपाप विशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति॥ 9
अर्थ- इस संसार में जो व्यक्ति इस जगन्नाथ अष्टम के आठ श्लोकों का पाठ करता है, उसका उद्धार होना तय है। वह सभी पापों से मुक्त होकर विशुद्ध आत्मा की भांति विष्णु लोक में स्थान प्राप्त करता है।
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