
श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्रम् के पाठ से साधक को शक्ति, साहस, विजय और रक्षा की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र माँ चंडी की आराधना का अत्यंत प्रभावशाली माध्यम है, जो नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है और जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। जानिए इसका सम्पूर्ण पाठ और महत्व।
श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्रम् माँ चण्डिका (दुर्गा) को समर्पित एक अत्यंत शक्तिशाली और रक्षक स्तोत्र है। इसका पाठ करने से भय, शत्रु, नकारात्मक ऊर्जा और बाधाएँ दूर होती हैं। श्रद्धा और भक्ति से इसका जप करने पर शक्ति, साहस, विजय और देवी कृपा की प्राप्ति होती है।
जगत जननी मां भगवती के अनेक रूपों में एक रूप मां चण्डी का भी है। देवी काली के समान ही देवी चण्डी भी प्राय: उग्र रूप में पूजी जाती हैं, अपने भयानक रूप में मां दुर्गा चण्डी अथवा चण्डिका नाम से जानी जाती हैं। नवरात्रों में देवी के इस रूप की भी पूजा होती है देवी ने यह रुप बुराई के संहार हेतु ही लिया था। देवी के श्री चण्डी ध्वज स्तोत्रम् का पाठ सभी संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाला होता है और शत्रुओं पर विजय प्रदान करता है।
शास्त्रों में वर्णित है कि शक्ति के बिना शिव शव के समान हैं, अर्थात माता की शक्ति से ही भगवान भोले शंकर को शक्ति मिलती है। कथा महाभारत काल की है, जब गंगा पुत्र भीष्म जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था, उनकी मुलाकात महर्षि पुलस्त्य से हुई जो वेद के प्रकांड विद्वान थे. उनसे देवव्रत भीष्म ने माता चंडिका के पूजन के फलाफल व वर्णन करने का आग्रह किया। इस पर महर्षि पुलस्त्य ने भीष्म को बताया कि माता चंडी की पूजा करने से स्वर्ग के सुख के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है, जो व्यक्ति श्री चण्डी ध्वज स्तोत्रम् का पाठ नियमित रूप से करता है वह लक्ष्मीवान होता है।
श्री चण्डी ध्वज स्तोत्रम् का पाठ नियमित रूप से करने से व्यक्ति को धन-संपदा के साथ बहु पुत्र प्राप्त होते हैं। मां चंडी की प्रतिमा के सामने बैठ कर श्री चण्डी ध्वज स्तोत्रम् का पाठ करने से मनुष्य बलवान व शक्तिमान होता है। चंद्रग्रहण व सूर्यग्रहण में उपवास कर श्री चण्डी ध्वज स्तोत्रम् का पाठ करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। कार्तिक नवमी को मां चंडी की पूजा करने से हजार अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। प्रत्येक माह की नवमी तिथि को भगवती महामाया की पूजा करने और श्री चण्डी ध्वज स्तोत्र का पाठ करने से राजसूय यज्ञ के बराबर फल मिलता है। श्री चण्डी ध्वज स्तोत्रम् का जाप करते समय बिल्व पत्रों की माला या गुग्गुल की माला से या बिल्वपत्र से देवी चंडी पर अर्पण करने से माता अमोघ फल देती है।
॥ विनियोग ॥
अस्य श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्र मन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, श्री महालक्ष्मी देवता,
श्रां बीजं, श्रीं शक्तिः,
श्रूं कीलकं मम वांछितार्थ फल सिद्धयर्थे विनियोगः.
॥ अंगन्यास ॥
श्रां, श्रीं, श्रूं, श्रैं, श्रौं, श्रः ।
॥ मूल पाठ ॥
ॐ श्रीं नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै भूत्त्यै नमो नमः ।
परमानन्दरुपिण्यै नित्यायै सततं नमः॥१॥
नमस्तेऽस्तु महादेवि पर ब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥२॥
रक्ष मां शरण्ये देवि धन-धान्य-प्रदायिनि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥३॥
नमस्तेऽस्तु महाकाली पर-ब्रह्म-स्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥४॥
नमस्तेऽस्तु महालक्ष्मी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥५॥
नमस्तेऽस्तु महासरस्वती परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥६॥
नमस्तेऽस्तु ब्राह्मी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥७॥
नमस्तेऽस्तु माहेश्वरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥८॥
नमस्तेऽस्तु च कौमारी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥९॥
नमस्ते वैष्णवी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१०॥
नमस्तेऽस्तु च वाराही परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥११॥
नारसिंही नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१२॥
नमो नमस्ते इन्द्राणी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१३॥
नमो नमस्ते चामुण्डे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१४॥
नमो नमस्ते नन्दायै परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१५॥
रक्तदन्ते नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१६॥
नमस्तेऽस्तु महादुर्गे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१७॥
शाकम्भरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१८॥
शिवदूति नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१९॥
नमस्ते भ्रामरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२०॥
नमो नवग्रहरुपे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२१॥
नवकूट महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२२॥
स्वर्णपूर्णे नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२३॥
श्रीसुन्दरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२४॥
नमो भगवती देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२५॥
दिव्ययोगिनी नमस्ते परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२६॥
नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२७॥
नमो नमस्ते सावित्री परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२८॥
जयलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२९॥
मोक्षलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥३०॥
चण्डीध्वजमिदं स्तोत्रं सर्वकामफलप्रदम् ।
राजते सर्वजन्तूनां वशीकरण साधनम् ॥३१॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥
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