श्री नवनाग स्तोत्र

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श्री नवनाग स्तोत्र

हिंदू धर्म में विविध जीव-जन्तुओं और पशुओं को देव तुल्य माना गया है। हमारे सभी देवताओं के वाहन पशु या पक्षी ही है। इसके कारण भी उन्हें विशेष स्थान दिया गया है।

इसी कड़ी में सांप या नाग को विशेष महत्व दिया गया है। नाग की हिंदू धर्म में पूजा की मान्यता है।

लेख में-

  1. श्री नवनाग स्तोत्र पाठ की विधि।
  2. श्री नवनाग स्तोत्र से लाभ।
  3. श्री नवनाग स्तोत्र एवं अर्थ।

1. श्री नवनाग स्तोत्र पाठ विधि:

  • नवनाग स्तोत्र पाठ शुरू करने से पहले सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर भगवान शंकर का ध्यान करें।
  • इस दौरान कालसर्प दोष यंत्र का भी पूजन कर सकते हैं।
  • इसके लिए सबसे पहले दूध से कालसर्प दोष यंत्र का अभिषेक कराएं फिर इसे गंगाजल से स्नान कराएं।
  • बाद में सफेद पुष्प,धूप,दीप से इसका पूजन करें। इसके बाद श्री नवनाग स्तोत्र का पाठ करें।

2. श्री नवनाग स्तोत्र पाठ से लाभ:

  1. श्री नवनाग स्तोत्र का पाठ करने से कालसर्प दोष दूर होता है।
  2. नवनाग स्तोत्र पाठ से मनुष्य को सभी कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है।
  3. इसके पाठ से जातक को शत्रुओं पर विजय मिलती है।

3. श्री नवनाग स्तोत्र एवं अर्थ:

श्री नवनाग स्तोत्र

श्री गणेशाय नमः।
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शङ्खपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥1॥

अर्थ:
अनंत, वासुकी, शेषनाग, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र और तक्षक यह नाग देवता के प्रमुख नौ नाम माने गये हैं।

एतानि नवनामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः ॥2॥

अर्थ:
जो लोग नित्य ही सायंकाल और विशेष रूप से प्रातःकाल इन नामों का उच्चारण करते हैं।

तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥3॥

अर्थ:
उन्हें सर्प और विष से कोई भय नहीं रहता तथा उनकी सब जगह विजय होती है, अर्थात सफलता मिलती हैं।

॥ इति श्री नवनाग नाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥

नाग स्तोत्र नाग देवता के नौ अवतारों के बारे में बताता है। इस स्तोत्र के माध्यम से नाग देवता को उनके सभी नाम के साथ स्तुति कर उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। नाग स्तोत्र का जप करने से मनुष्य सभी क्षेत्र में विजय प्राप्त करता है।

इस स्तोत्र में नाग देवता के सभी नाम के साथ उन्हें धन्यवाद दिया गया है, जो पृथ्वी के भार को अपने मणि पर उठाए हुए हैं। इसलिए हम नाग देवता को इस स्तोत्र के माध्यम से धन्यवाद करते हैं।

॥ जय श्री नाग देवता॥

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