राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत्र
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राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत्र

राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र श्री राधा रानी की करुणा और अनुग्रह की याचना का दिव्य स्तोत्र है। इसके पाठ से प्रेम, भक्ति और जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है। जानिए इसका सम्पूर्ण पाठ और महत्त्व।

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत्र के बारे में

**राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्रं** देवी राधा रानी को समर्पित एक अत्यंत मधुर और शक्तिशाली स्तोत्र है। यह स्तोत्र श्री वृषभानु नंदिनी राधा जी की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ साधन माना गया है। श्रद्धा और प्रेम से इसका पाठ करने पर भक्ति, प्रेम, सौभाग्य और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस स्तोत्र का नियमित जप करने से श्रीकृष्ण भक्ति सुलभ होती है और जीवन में प्रेममय आनंद का संचार होता है। इस लेख में जानिए **राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्रं** का महत्व, इसके पाठ से मिलने वाले चमत्कारी लाभ और इससे जुड़ी दिव्य मान्यताएँ।

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत्र

राधा जी को भगवान श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी शक्ति माना जाता है। कहा जाता है कि जब तक राधा जी का नाम नहीं लिया जाता, तब तक श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त नहीं होती है। राधा कृपा कटक्ष राधा रानी के पार्श्व दृष्टि हेतु एक विनम्र प्रार्थना है | जो भी व्यक्ति इस प्रार्थना को नियमित रूप से करते हैं, उन्हें श्री राधा-कृष्ण के चरण कमलों की प्राप्ति निश्चित ही होती है।

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत्र का महत्व

श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र भगवान शिव द्वारा रचित स्त्रोत है जो देवी पार्वती से बोली जाने वाली राधा कृपा कथा श्रीमती राधा रानी की एक बहुत शक्तिशाली प्रार्थना है। राधा कृपा कटाक्ष श्री वृंदावन में सबसे प्रसिद्ध स्तोत्र है। इस स्त्रोत को कभी-कभी वृंदावन का राष्ट्रगान भी कहते है। भगवान श्रीकृष्ण के साथ श्री राधा की नित्य आराधना करके मनुष्य सच्चे अर्थ में अपना जीवन सफल बना सकता है।

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत्र पढ़ने के फायदे

राधा कृपा कटाक्ष के स्त्रोत्र का नित्य पाठ करने से साधक को राधा रानी की असीम कृपा की प्राप्त होती हैं। इतना ही नहीं साधक के सभी पापों का नाश हो जाता है।

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत्र का पाठ करने से भक्त की सारी मनोकामनायें पूर्ण हो जाती हैं। जो भी साधक पूर्णिमा के दिन, शुक्ल पक्ष की अष्टमी को, ढलते और घटते चन्द्रमाओं के दसवें, ग्यारहवें और तेरहवें दिन राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र का पाठ करता है, वो अपनी मनोकामनाओं का फल प्राप्त कर सकता है। इस स्त्रोत के पाठ से राधा जी की कृपा होती है। श्री राधिका की करुणामयी पार्श्व दृष्टि, प्रेमा की विशेषता वाली भक्ति उनके हृदय में अंकुरित हो जाती है।

राधा कृपा कटाक्ष अर्थ सहित

मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी,

प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी।

व्रजेन्दभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ १

अर्थात - समस्त मुनिगण आपके चरणों की वंदना करते हैं, आप तीनों लोकों का शोक दूर करने वाली हैं, आप प्रसन्नचित्त प्रफुल्लित मुख कमल वाली हैं, आप धरा पर निकुंज में विलास करने वाली हैं। आप राजा वृषभानु की राजकुमारी हैं, आप ब्रजराज नन्द किशोर श्री कृष्ण की चिरसंगिनी है, हे जग जननी श्रीराधे माँ ! आप मुझे अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ कब करोगी ?

अशोकवृक्ष वल्लरी वितानमण्डपस्थिते,

प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ् कोमले।

वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ २

अर्थात - आप अशोक की वृक्ष-लताओं से बने हुए मंदिर में विराजमान हैं, आप सूर्य की प्रचंड अग्नि की लाल ज्वालाओं के समान कोमल चरणों वाली हैं, आप भक्तों को अभीष्ट वरदान, अभय दान देने के लिए सदैव उत्सुक रहने वाली हैं। आप के हाथ सुन्दर कमल के समान हैं, आप अपार ऐश्वर्य की भंडार स्वामिनी हैं, हे सर्वेश्वरी माँ ! आप कब मुझे अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ?

अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां,

सुविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्तबाणपातनैः।

निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ ३

अर्थात - रास क्रीड़ा के रंगमंच पर मंगलमय प्रसंग में आप अपनी बाँकी भृकुटी से आश्चर्य उत्पन्न करते हुए सहज कटाक्ष रूपी वाणों की वर्षा करती रहती हैं। श्री नन्दकिशोर को निरंतर आप अपने बस में किये रहती हैं, हे जगजननी वृन्दावनेश्वरी माँ ! आप कब मुझे अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ?

तड़ित्सुवर्ण चम्पक प्रदीप्तगौरविग्रहे,

मुखप्रभा परास्त-कोटि शारदेन्दुमण्ङले।

विचित्रचित्र-संचरच्चकोरशाव लोचने,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ ४

अर्थात - आप बिजली के सदृश, स्वर्ण तथा चम्पा के पुष्प के समान सुनहरी आभा वाली हैं, आप दीपक के समान गोरे अंगों वाली हैं, आप अपने मुखारविंद की चाँदनी द्वारा शरद पूर्णिमा के करोड़ों चन्द्रमा को लजाने वाली हैं। आपके नेत्र पल-पल में विचित्र चित्रों की छटा दिखाने वाले चंचल चकोर शिशु के समान हैं, हे वृन्दावनेश्वरी माँ ! आप कब मुझे अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ?

मदोन्मदाति यौवने प्रमोद मानमण्डिते,

प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपणि्डते।

अनन्य धन्यकुंजराज कामकेलिकोविदे,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ ५

अर्थात - आप अपने चिर-यौवन के आनन्द के मग्न रहने वाली है, आनंद से पूरित मन ही आपका सर्वोत्तम आभूषण है, आप अपने प्रियतम के अनुराग में रंगी हुई विलासपूर्ण कला पारंगत हैं। आप अपने अनन्य भक्त गोपिकाओं से धन्य हुए निकुंज-राज के प्रेम क्रीड़ा की विधा में प्रवीण हैं, हे निकुँजेश्वरी माँ ! आप कब मुझे अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ?

अशेषहावभाव धीरहीर हार भूषिते,

प्रभूतशातकुम्भकुम्भ कुमि्भकुम्भसुस्तनी।

प्रशस्तमंदहास्यचूर्ण पूर्ण सौख्यसागरे,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ ६

अर्थात - आप संपूर्ण हाव-भाव रूपी श्रृंगारों से परिपूर्ण हैं, आप धीरज रूपी हीरों के हारों से विभूषित हैं, आप शुद्ध स्वर्ण के कलशों के समान अंगो वाली है, आपके पयोंधर स्वर्ण कलशों के समान मनोहर हैं। आपकी मंद-मंद मधुर मुस्कान सागर के जैसे आनन्द प्रदान करने वाली है, हे कृष्णप्रिया माँ ! आप कब मुझे अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ?

मृणाल वालवल्लरी तरंग रंग दोर्लते ,

लताग्रलास्यलोलनील लोचनावलोकने।

ललल्लुलमि्लन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रिते कदा

करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ ७

अर्थात - जल की लहरों से कम्पित हुए नूतन कमल-नाल के समान आपकी सुकोमल भुजाएँ हैं, आपके नीले चंचल नेत्र पवन के झोंकों से नाचते हुए लता के अग्र-भाग के समान अवलोकन करने वाले हैं। सभी के मन को ललचाने वाले, लुभाने वाले मोहन आप पर मुग्ध होकर आपके मिलन हेतु आतुर रहते हैं आप ऐसे मनमोहन को आश्रय देने वाली हैं, हे वृषभानुनन्दनी माँ ! आप कब मुझे अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ?

सुवर्ण्मालिकांचिते त्रिरेख कम्बुकण्ठगे,

त्रिसुत्रमंगलीगुण त्रिरत्नदीप्ति दीधिते।

सलोल नीलकुन्तले प्रसूनगुच्छगुम्फिते,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ ८

अर्थात - आप स्वर्ण की मालाओं से विभूषित है, आप तीन रेखाओं युक्त शंख के समान सुन्दर कण्ठ वाली हैं, आपने अपने कण्ठ में प्रकृति के तीनों गुणों का मंगलसूत्र धारण किया हुआ है, इन तीनों रत्नों से युक्त मंगलसूत्र समस्त संसार को प्रकाशमान करता है। आपके काले घुंघराले केश दिव्य पुष्पों के गुच्छों द्वारा अलंकृत हैं, हे कीरतिनन्दनी माँ ! आप कब मुझे अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी।

नितम्बबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुण,

प्रशस्तरत्नकिंकणी कलापमध्यमंजुले।

करीन्द्रशुण्डदण्डिका वरोहसोभगोरुके,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ ९

अर्थात - अर्थात - हे देवी, तुम अपने घुमावदार कूल्हों पर फूलों से बनी कमरबंद धारण करती हो, तुम झिलमिलाती हुई घंटियों जैसी सुन्दर कमरबंद के साथ बहुत ही मोहक लगती हो, तुम्हारी सुंदर जांघें राजसी हाथी की सूंड को लज्जित करती हैं, हे देवी! तुम कब मुझ पर अपनी कृपा कटाक्ष (दृष्टि) डालोगी?

अनेकमन्त्रनादमंजु नूपुरारवस्खलत्,

समाजराजहंसवंश निक्वणाति गौरवे,

विलोलहेमवल्लरी विडमि्बचारू चक्रमे,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ १०

अर्थात - आपके चरणों में स्वर्ण मण्डित नूपुर की सुमधुर ध्वनि अनेकों वेद मंत्रो के समान गुंजायमान करने वाले हैं, जैसे मनोहर राजहसों की ध्वनि गूँजायमान हो रही है। आपके अंगों की छवि चलते हुए ऐसी प्रतीत होती है जैसे स्वर्णलता लहरा रही हो, हे जगदीश्वरी माँ! आप कब मुझे अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ?

अनन्तकोटिविष्णुलोक नम्र पदम जार्चिते,

हिमद्रिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे।

अपार सिद्धिऋद्धि दिग्ध -सत्पदांगुलीनखे,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ ११

अर्थात - अनंत कोटि बैकुंठो की स्वामिनी श्रीलक्ष्मी जी आपकी पूजा करती हैं, श्री पार्वती जी, इन्द्राणी जी और सरस्वती जी ने भी आपकी चरण वन्दना कर वरदान पाया है। राधा जी के चरण- कमलों की एक उंगली के नाख़ून मात्र का स्मरण करने से अपार सिद्धि की प्राप्ति हो जाती है, हे करूणामयी माँ ! आप कब मुझे अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ?

मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी,

त्रिवेदभारतीश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी।

रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी,

ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते॥ १२

अर्थात - आप समस्त प्रकार के यज्ञों की स्वामिनी हैं, आप संपूर्ण क्रियाओं की स्वामिनी हैं, आप स्वधा देवी की स्वामिनी हैं, आप समस्त देवताओं की स्वामिनी हैं, तीनों वेदों की आप स्वामिनी है, संपूर्ण जगत पर आप शासन करने वाली हैं। आप रमा देवी की स्वामिनी हैं,आप क्षमा देवी की भी स्वामिनी हैं, आप आमोद-प्रमोद की स्वामिनी हैं, हे ब्रजेश्वरी ! हे ब्रज की अधीष्ठात्री देवी श्रीराधिके! आपको मेरा बारंबार नमन है।

इतीदमतभुतस्तवं निशम्य भानुननि्दनी,

करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम्।

भवेत्तादैव संचित-त्रिरूपकर्मनाशनं,

लभेत्तादब्रजेन्द्रसूनु मण्डल प्रवेशनम्॥ १३

अर्थात - हे वृषभानु नंदिनी! मेरी इस निर्मल स्तुति को सुनकर सदैव के लिए मुझ दास को अपनी दया दृष्टि से कृतार्थ करने की कृपा करो। केवल आपकी दया से ही मेरे प्रारब्ध कर्मों, संचित कर्मों और क्रियामाण कर्मों का नाश हो सकेगा, आपकी कृपा से ही भगवान श्रीकृष्ण के नित्य दिव्यधाम की लीलाओं में सदा के लिए प्रवेश हो जाएगा।

राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धधीः ।

एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधीः ॥ १४

अर्थात - यदि कोई साधक पूर्णिमा, शुक्ल पक्ष की अष्टमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी के रूप में जाने जाने वाले चंद्र दिवसों पर स्थिर मन से इस स्तवन का पाठ करे तो.।

यं यं कामयते कामं तं तमाप्नोति साधकः।

राधाकृपाकटाक्षेण भक्तिःस्यात् प्रेमलक्षणा ॥ १५

अर्थात - साधक की समस्त मनोकामना पूर्ण हो जाये और श्री राधा जी की दयालु पार्श्व दृष्टि से वे सभी भक्ति सेवा की प्राप्ति करें, जिसमें भगवान के शुद्ध, परमानंद प्रेम के विशेष गुण हैं।

ऊरुदघ्ने नाभिदघ्ने हृद्दघ्ने कण्ठदघ्नके ।

राधाकुण्डजले स्थिता यः पठेत् साधकः शतम् ॥१६

अर्थात - जो साधक श्री राधा-कुंड के जल में खड़े होकर (अपनी जाँघों, नाभि, छाती या गर्दन तक) इस स्तम्भ (स्तोत्र) का १०० बार पाठ करे…।

तस्य सर्वार्थ सिद्धिः स्याद् वाक्सामर्थ्यं तथा लभेत्।

ऐश्वर्यं च लभेत् साक्षाद्दृशा पश्यति राधिकाम् ॥१७

अर्थात - वह जीवन के पाँच लक्ष्यों धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और प्रेम में पूर्णता प्राप्त करे, उसे सिद्धि प्राप्त हो। उसकी वाणी सामर्थ्यवान हो (उसके मुख से कही बातें व्यर्थ न जाए ) उसे श्री राधिका जी को अपने सम्मुख देखने का ऐश्वर्य प्राप्त हो और…।

तेन स तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम् ।

येन पश्यति नेत्राभ्यां तत् प्रियं श्यामसुन्दरम् ॥१८

अर्थात - अपने भक्त पर प्रसन्न होकर श्री राधिका जी उसे महान वर प्रदान करें कि वह स्वयं अपने नेत्रों से उनके प्रिय श्यामसुंदर को देखने का सौभाग्य प्राप्त कर सकें।

नित्यलीला–प्रवेशं च ददाति श्री-व्रजाधिपः ।

अतः परतरं प्रार्थ्यं वैष्णवस्य न विद्यते ॥१९

अर्थात - वृंदावन के स्वामी, उस भक्त को अपनी शाश्वत लीलाओं में प्रवेश दें। वैष्णव लोग इससे आगे किसी चीज की लालसा नहीं रखते।

॥ इति श्रीमदूर्ध्वाम्नाये श्रीराधिकायाः कृपाकटाक्षस्तोत्रं सम्पूर्णम ॥

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Published by Sri Mandir·October 30, 2025

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