महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम्

महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम्

मां दुर्गा को समर्पित स्तोत्र


श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम्

श्री महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के रचयिता श्री शंकराचार्य जी थे। इसमें महिषासुर का वध करने वाली मां दुर्गा को नमन किया गया है। महिषासुर की तड़प देख मां दुर्गा के अंदर ममता उमड़ने लगी।

मां दुर्गा की दृष्टि से महिषासुर के शरीर में फिर से चेतना लौटने लगी। जिसे देख सभी देवता भयभीत हो गए। मां दुर्गा का ध्यान हटाने के लिए उस वक्त देवताओं ने एक स्तोत्र का पाठ करना शुरू किया, जिसे श्री महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के नाम से जाना गया।

लेख में-

  1. श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र की विधि।
  2. श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र से लाभ।
  3. श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र एवं अर्थ।

1. महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र की विधि:

  • सबसे पहले सुबह स्नान कर साफ कपड़े पहन एक आसन पर विराजमान हो जाएं।
  • इसके बाद मां दुर्गा की तस्वीर या प्रतिमा पर पुष्प, माला आदि अर्पित करें।
  • इसके बाद शांत मन से एकाग्र होकर महिषासुरमर्दिनी स्रोत का पाठ करें।

2. महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र से लाभ:

  1. इस स्तोत्र के पाठ से मनुष्य के जीवन में आ रही सभी परेशानियां दूर हो जाती है।
  2. महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र का पाठ करने वाला कभी नरक में नहीं जाता है।

3. श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र एवं अर्थ:

श्री महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम्

अयि गिरिनंदिनि नंदितमेदिनि विश्वविनोदिनि नंदनुते,
गिरिवर-विंध्य-शिरोधि-निवासिनि विष्णु-विलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुंबिनि भूरि-कुटुंबिनि भूरि-कृते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यक-पर्दिनि शैलसुते ॥1॥

अर्थ:
पर्वतराज हिमालय की कन्या, पृथ्वी को आनंदित करने वाले, संसार को हर्षित रखने वाली, नन्दीगण से नमस्कार की जाने वाली, गिरी श्रेष्ठ विन्ध्याचल के शिखर पर निवास करने वाली, भगवान विष्णु को प्रसन्न रखने वाली, इन्द्र से नमस्कृत होने वाली, भगवान शिव की भार्या के रूप में प्रतिष्ठित, विशाल कुटुम्ब वाली और ऐश्वर्य प्रदान करने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते,
त्रिभुवनपोषिणि शंकर तोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते।
दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥2॥

अर्थ:
देवराज इंद्र को समृद्धशाली बनाने वाली, दुर्धर तथा दुर्मुख नामक दैत्यों का विनाश करने वाली, सर्वदा हर्षित रहने वाली, तीनों लोकों का पालन-पोषण करने वाली, भगवान शिव को संतुष्ट रखने वाले, पाप को दूर करने वाली, घोर गर्जन करने वाली, दैत्यों पर भीषण कोप करनेवाली, मदान्धों के मद का हरण कर लेने वाली, सदाचार से रहित मुनि जनों पर क्रोध करने वाली और समुद्र की कन्या महालक्ष्मी के रूप में प्रतिष्ठित हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रिय वासिनि हासरते,
शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय श्रृंग निजालय मध्यगते।
मधु मधुरे मधु कैटभ गंजिनि कैटभ भंजिनि रासरते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥3॥

अर्थ:
जगत की माता स्वरूपिणी, कदम्ब वृक्ष के वन में प्रेमपूर्वक निवास करने वाली, सदा संतुष्ट रहने वाली, हास-परिहास में सदा रत रहने वाली, पर्वतों में श्रेष्ठ ऊँचे हिमालय की चोटी पर अपने भवन में विराजमान रहने वाली, मधु से भी अधिक मधुर स्वभाव वाली, मधु-कैटभ का संहार करने वाली, महिष को विदीर्ण कर डालने वाली और रासक्रीडा में मग्न होने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

अयि शतखण्ड-विखण्डितरुण्ड-वितुण्डित-शुण्ड-गजाधिपते,
रिपु गजगण्ड-विदारण चण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते।
निजभुज-दण्डनिपातितखण्ड-विपातित-मुण्ड भटाधिपते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥4॥

अर्थ:
गजाधिपति के बिना सूँड़ के धड़ को काट-काट कर सैकड़ों टुकड़े कर देनेवाली, सेनाधिपति चण्ड-मुण्ड नामक दैत्यों को अपने भुजदण्ड से मार-मार कर विदीर्ण कर देनेवाली, शत्रुओं के हाथियों के गण्डस्थल को भग्न करने में उत्कट पराक्रम से सम्पन्न कुशल सिंह पर आरूढ़ होनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

अयि रणदुर्मद-शत्रुवधोदित-दुर्धरनिर्जर-शक्तिभृते,
चतुरविचार-धुरीणमहाशिव-दूत-कृत-प्रमथाधिपते।
दुरित दुरीह-दुराशय-दुर्मति-दानवदूत-कृतांतमते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥5॥

अर्थ:
रणभूमि में मदोन्मत्त शत्रुओं के वध से बढ़ी हुई अदम्य तथा पूर्ण शक्ति धारण करनेवाली, चातुर्यपूर्ण विचारवाले लोगों में श्रेष्ठ और गम्भीर कल्पनावाले प्रमथाधिपति भगवान शंकर को दूत बनानेवाली, दूषित कामनाओं तथा कुत्सित विचारोंवाले दुर्बुद्धि दानवों के दूतों से न जानी जा सकनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

अयि शरणागत वैरि वधूवर वीरवार भयदायकरे,
त्रिभुवन मस्तक शूलविरोधि शिरोधिकृतामल शूलकरे।
दुमिदुमितामरदुंदुभिनादमहोमुखरीकृततिग्मकरे,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥6॥

अर्थ:
शरणागत शत्रुओं की स्त्रियों के वीर पतियों को अभय प्रदान करनेवाले हाथ से शोभा पानेवाली, तीनों लोकों को पीड़ित करनेवाले दैत्य शत्रुओं के मस्तक पर प्रहार करने योग्य तेजोमय त्रिशूल हाथ में धारण करनेवाली तथा देवताओं की दुन्दुभि से निकलने वाली ‘दुम्-दुम्’ ध्वनि से समस्त दिशाओं को बार-बार गुंजित करनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

अयि निजहुँ-कृतिमात्र-निराकृत-धूम्रविलोचन-धूम्रशते,
समरविशोषित-शोणितबीज-समुद्भवशोणित-बीजलते।
शिवशिव शुंभनिशुंभमहाहवतर्पितभूतपिशाचरते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥7॥

अर्थ:
अपने हुंकार मात्र से धूम्रलोचन तथा धूम्र आदि सैकड़ों असुरों को भस्म कर डालनेवाली, युद्धभूमि में कुपित रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न हुए अन्य रक्तबीज समूहों का रक्त पी जानेवाली और शुम्भ-निशुम्भ नामक दैत्यों के महायुद्ध से तृप्त किये गये मंगलकारी शिव के भूत-पिशाचों के प्रति अनुराग रखनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

धनु-रनुसंगरणक्षण संगपरिस्फुर दंगनटत्कटके,
कनक पिशंग-पृषत्क-निषंगरसद्भटश‍ृंगहता वटुके।
कृतचतुरङ्ग-बलक्षितिरङ्ग-घटद्बहुरङ्गरट-द्बटुके,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥8॥

अर्थ:
समरभूमि में धनुष धारण कर अपने शरीर को केवल हिलाने मात्र से शत्रुदल को कम्पित कर देनेवाली, स्वर्ण के समान पीले रंग के तीर और तरकश से सज्जित, भीषण योद्धाओं के सिर काटनेवाली और (हाथी, घोड़ा, रथ, पैदल) चारों प्रकार की सेनाओं का संहार करके रणभूमि में अनेक प्रकार की शब्दध्वनि करनेवाले बटुकों को उत्पन्न करनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

सुरललनात तथेयित थेयित थाभिनयोत्तर नृत्यरते,
हासविलास हुलास मयि प्रणतार्तजनेऽमितप्रेमभरे।
धिमिकिट धिक्कट धिकट धिमिध्वनि घोरमृदंग निनादरते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥9॥

अर्थ:
देवांगनाओं के तत-था-थेयि-थेयि आदि शब्दों से युक्त भावमय नृत्य में मग्न रहने वाली, कुकुथा आदि विभिन्न प्रकार की मात्राओं वाले तालों से युक्त आश्चर्यमय गीतों को सुनने में लीन रहने वाली और मृदंग की धुधुकुट-धूधुट आदि गंभीर ध्वनि को सुनने में तत्पर रहने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

जय जय जप्य जये जयशब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुते,
झणझण झिञ्झिमि झिंकृत नूपुरसिंजित मोहित भूतपते।
नटितन टार्धन टीनटनायक नाटित नाट्य सुगानरते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥10॥

अर्थ:
हे जपनीय मन्त्र की विजय शक्ति स्वरूपिणी ! आपकी बार-बार जय हो। जय-जयकार शब्द सहित स्तुति करने में तत्पर समस्त संसार के लोगों से नमस्कृत होने वाली, अपने नूपुर के झण-झण, झिंझिम शब्दों से भूतनाथ भगवान शंकर को मोहित करने वाली और नटी-नटों के नायक प्रसिद्ध नट अर्धनारीश्वर शंकर के नृत्य से सुशोभित नाट्य देखने में तल्लीन रहने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो।

अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कांतियुते,
श्रितरजनी रजनी रजनी रजनी रजनी करवक्त्रवृते।
सुनयन भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥11॥

अर्थ:
प्रसन्नचित्त तथा संतुष्ट देवताओं के द्वारा अर्पित किये गये पुष्पों से अत्यंत मनोरम कान्ति धारण करने वाली, निशाचरों को वर प्रदान करने वाले शिवजी की भार्या, रात्रिसूक्त से प्रसन्न होने वाली, चन्द्रमा के समान मुखमण्डल वाली और सुन्दर नेत्र वाले कस्तूरी मृगों में व्याकुलता उत्पन्न करने वाले भौंरों से तथा भ्रांति को दूर करने वाले ज्ञानियों से अनुसरण की जाने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्ल कमल्लरते,
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते।
सितकृत फुल्लि समुल्ल सितारुण तल्ल जपल्ल वसल्ललिते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥12॥

अर्थ:
महनीय महायुद्ध के श्रेष्ठ वीरों के द्वारा घुमावदार तथा कलापूर्ण ढंग से चलाये गये भालों के युद्ध के निरीक्षण में चित्त लगाने वाली, कृत्रिम लतागृह का निर्माण कर उसका पालन करने वाली स्त्रियों की बस्ती में ‘झिल्लिक’ नामक वाद्य विशेष बजाने वाली भिल्लिनियों के समूह से सेवित होने वाली और कान पर रखे हुए विकसित सुन्दर रक्तवर्ण तथा श्रेष्ठ कोमल पत्तों से सुशोभित होने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्ग जराजपते,
त्रिभुवन भूषण भूत कलानिधि रूप पयोनिधि राजसुते।
अयि सुदती जनलाल समान समोहन मन्मथ राजसुते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥13॥

अर्थ:
सुन्दर दंतपंक्ति वाली स्त्रियों के उत्कंठापूर्ण मन को मुग्ध कर देने वाले कामदेव को जीवन प्रदान करने वाली, निरन्तर मद चूते हुए गण्डस्थल से युक्त मदोन्मत्त गजराज के सदृश मन्थर गति वाली और तीनों लोकों के आभूषण स्वरूप चन्द्रमा के समान कान्तियुक्त सागर कन्या के रूप में प्रतिष्ठित हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

कमल दलामल कोमल कांति कलाकलितामल भाललते,
सकल विलास कलानिलयक्रम केलिचलत्क लहंसकुले।
अलिकुल संकुल कुवलय मंडल मौलि मिलद्भ कुलालिकुले,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥14॥

अर्थ:
कमलदल के सदृश वक्र, निर्मल और कोमल कान्ति से परिपूर्ण एक कलावाले चन्द्रमा से सुशोभित उज्ज्वल ललाट पटलवाली, सम्पूर्ण विलासों और कलाओं की आश्रयभूत, मन्दगति तथा क्रीड़ा से सम्पन्न राजहंसों के समुदाय से सुशोभित होनेवाली और भौंरों के सदृश काले तथा सघन केशपाश की चोटी पर शोभायमान मौलश्री पुष्पों की सुगन्ध से भ्रमर समूहों को आकृष्ट करनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

करमुरली रववीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते,
मिलित पुलिन्द मनोहर गुंजित रञ्जित शैलनि कुञ्जगते।
निजगुण भूत महाशबरी गण सद्गुण संभृत-केलि-तले,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥15॥

अर्थ:
आपके हाथ में सुशोभित मुरली की ध्वनि सुनकर बोलना बंद करके लाज से भरी हुई कोकिल के प्रति प्रिय भावना रखनेवाली, भौंरों के समूहों की मनोहर गूंज से सुशोभित पर्वत प्रदेश के निकुंजों में विहार करनेवाली और अपने भूत तथा भिल्लिनी आदि गणों के नृत्य से युक्त क्रीड़ाओं को देखने में सदा तल्लीन रहनेवाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

कटि तट पीत दुकूल विचित्र मयूख तिरस्कृत चंद्र रुचे,
प्रणत सुरासुर मौलिमणि-स्फुर दंशुल सन्नख चंद्ररुचे।
जित कनकाचल मौलि पदोर्जित निर्झर कुंजर कुंभ कुचे,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥16॥

अर्थ:
अपने कटिप्रदेश पर सुशोभित पीले रंग के रेशमी वस्त्र की विचित्र कान्ति से सूर्य की प्रभा को तिरस्कृत कर देने वाली, सुमेरु पर्वत के शिखर पर मदोन्मत्त गर्जना करने वाले हाथियों के गंडस्थल के समान वक्षस्थल वाली और आपको प्रणाम करने वाले देवताओं तथा दैत्यों के मस्तक पर स्थित मणियों से निकली हुई किरणों से प्रकाशित चरणनखों में चन्द्रमा सदृश कान्ति धारण करने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

विजित सहस्र करैक सहस्र करैक सहस्र करैक नुते,
कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनु सुते।
सुरथ समाधि समान समाधि समाधि समाधि सुजा तरते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥17॥

अर्थ:
हजारों हस्त नक्षत्रों को जीतने वाले और सहस्र किरणों वाले भगवान सूर्य की एकमात्र नमस्करणीय, देवताओं के उद्धार हेतु युद्ध करने वाले, तारकासुर से संग्राम करने वाले तथा संसार सागर से पार करने वाले शिवजी के पुत्र कार्तिकेय से प्रणाम की जाने वाली और राजा सुरथ तथा समाधि नामक वैश्य की सविकल्प समाधि के समान समाधियों में सम्यक जपे जाने वाले मंत्रों में प्रेम रखने वाली हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे,
अयि कमले कमला निलये कमला निलयः स कथं न भवेत्।
तव पदमेव परंपद मित्यनु शील यतो मम किं न शिवे,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥18॥

अर्थ:
हे करुणामयी कल्याणमयी शिवे ! हे कमलवासिनी कमले ! जो मनुष्य प्रतिदिन आपके चरण कमल की उपासना करता है, उसे लक्ष्मी का आश्रय क्यों नहीं प्राप्त होगा। हे शिवे ! आपका चरण ही परम पद है, ऐसी भावना रखने वाले मुझ भक्त को क्या-क्या सुलभ नहीं हो जायेगा अर्थात सब कुछ प्राप्त हो जायेगा। हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

कनकल सत्कल सिन्धुजलैरनु सिञ्चिनुते गुण रङ्गभुवं,
भजति स किं न शची कुचकुंभ तटी परिरंभ सुखानु भवम्।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामर वाणि निवासि शिवं,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥19॥

अर्थ:
स्वर्ण के समान चमकते घड़ों के जल से जो आपके प्रांगण की रंगभूमि को प्रक्षालित कर उसे स्वच्छ बनाता है, वह इन्द्राणी के समान विशाल वक्षस्थलों वाली सुन्दरियों का सान्निध्य सुख अवश्य ही प्राप्त करता है। हे सरस्वति ! मैं आपके चरणों को ही अपनी शरणस्थली बनाऊँ, मुझे कल्याण कारक मार्ग प्रदान करो। हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

तव विमलेन्दु कुलं वदनेन्दु मलं सकलं ननु कूलयते,
किमु पुरुहूत पुरीन्दु मुखी सुमुखी भिरसौ विमुखी क्रियते।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥20॥

अर्थ:
स्वच्छ चन्द्रमा के सदृश सुशोभित होने वाले आपके मुखचन्द्र को निर्मल करके जो आपको प्रसन्न कर लेता है, क्या उसे देवराज इन्द्र की नगरी में रहने वाली चंद्रमुखी सुन्दरियाँ सुख से वंचित रख सकती हैं। भगवान शिव के सम्मान को अपना सर्वस्व समझने वाली हे भगवति ! मेरा तो यह विश्वास है कि आपकी कृपा से क्या-क्या सिद्ध नहीं हो जाता। हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्य मुमे,
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुमितासि रते।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुता दुरुतापम पाकुरुते,
जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥21॥

अर्थ:
हे उमे ! आप सदा दीन-दुखियों पर दया का भाव रखती हैं, अतः आप मुझपर कृपालु बनी रहें। हे महालक्ष्मी ! जैसे आप सारे संसार की माता हैं, वैसे ही मैं आपको अपनी भी माता समझता हूँ। हे शिवे! यदि आपको उचित प्रतीत होता हो तो मुझे अपने लोक में जाने की योग्यता प्रदान करें। हे देवि ! मुझ पर दया करो। हे भगवान शिव की प्रिय पत्नी महिषासुर मर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो।

स्तुतिमिमां स्तिमित: सुसमाधिना नियमतो यमतोsनुदिनं पठेत्।
प्रिया रम्या स निषेवते परिजनोऽरिजनोऽपि च तं भजेत् ॥22॥

अर्थ:
जो मनुष्य शांत भाव से पूर्ण रूप से मन को एकाग्र करके तथा इन्द्रियों पर नियंत्रण कर नियमपूर्वक प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करता है, भगवती महालक्ष्मी उसके यहाँ सदा वास करती हैं और उसके बन्धु-बान्धव तथा शत्रुजन भी सदा उसकी सेवा में तत्पर रहते हैं।

॥ महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र सम्पूर्णं॥

॥शुभं भवतु॥

महिषासुरमर्दिनिस्तोत्र में इतनी शक्ति है कि इसकी उपासना से मां दुर्गा हर कष्ट हर लेती हैं। श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् का पाठ करने वाला कभी निर्धन नहीं रहता है। श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् का पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

जो मनुष्य श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् का जाप कर मां दुर्गा की स्तुति करता है, उसे जीवन के सभी संकट से मुक्ति मिलती है। श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् से मनुष्य को सभी प्रकार की सुख-शांति और समृद्धि मिलती है।

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