
यह स्तोत्र शिवलिंग महिमा का अद्वितीय वर्णन करता है और साधक के जीवन में शांति, भक्ति और कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। जानिए इसका सम्पूर्ण पाठ और महत्व।
लिङ्गाष्टकम् भगवान शिव के पवित्र लिंग स्वरूप की स्तुति में रचित अष्टक है। इसमें शिवलिंग की महिमा, उसके आध्यात्मिक महत्व और कल्याणकारी शक्ति का वर्णन किया गया है। श्रद्धा से इसका जप करने पर पापों का नाश, मन की शुद्धि और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
लिङ्गाष्टकम् भगवान शिव को समर्पित आठ श्लोकों वाला एक अत्यंत प्रभावशाली मंत्र है। इस मंत्र के द्वारा भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया जाता है। और उनसे प्रार्थना की जाती है। इस स्त्रोत के समस्त पदों में शिवलिंग की महिमा बताई गई है। विशेष रूप से सावन माह में इस स्त्रोत के नियमित पाठ से भगवान शिव को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। इस स्त्रोत के विषय में शास्त्रों में वर्णन है कि इस स्त्रोत के सुनने मात्र से ही कठिन से कठिन मुश्किल आसान लगने लगती है।
लिङ्गाष्टकम् स्तोत्र के द्वारा व्यक्ति भगवान शिव से मनचाहा वरदान भी प्राप्त कर सकता है। जो भी व्यक्ति इस स्त्रोत का नियमित रूप से पाठ करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते है और वह भगवान भोलेनाथ के भक्तों में शामिल हो जाता है जिस पर शिव की कृपा सदैव बनी रहती है। इस स्त्रोत की महिमा तीनों लोगों में जानी जाती है। शिव लिंगाष्टकम में पापों को दूर करने और आत्मा को शुद्ध करने की शक्ति होती है। यह गलतियों और नकारात्मक कार्यों हेतु क्षमा मांगने का एक प्रभावी माध्यम माना गया है।
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् । जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥1॥
अर्थात - जो लिंग ( स्वरूप ) ब्रह्मा, विष्णु एवं समस्त देवगणों द्वारा पूजित तथा निर्मल कान्ति से सुशोभित हैं और जो लिंग जन्मजय दुःख के विनाशक हैं, उस सदाशिव लिंग को मैं नमस्कार करता हूँ।
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् । रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥2॥
अर्थात - जो शिवलिंग श्रेष्ठ देवगण एवं ऋषियों द्वारा पूजित, कामदेव को नष्ट करने वाला, करुणा की खान, रावण के घमंड को नष्ट करने वाला है, उस सदाशिव लिंग को मैं नमस्कार करता हूँ।
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् । सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥3॥
अर्थात - जो लिंग सभी दिव्य सुगन्धि से सुलेपित, बुद्धि की वृद्धि करने वाला, समस्त सिद्ध, देवता एवं असुरगणों से वन्दित हैं, उस सदाशिव लिंग को मैं नमस्कार करता हूँ।
कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् । दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥4॥
अर्थात - सदाशिव का लिंगरूप विग्रह सुवर्ण, माणिक्य आदि मणियों से विभूषित तथा नागराज द्वारा लिपटे होने से अत्यन्त सुशोभित हैं और अपने ससुर दक्ष के यज्ञ का विनाशक हैं, उस सदाशिव लिंग को मैं नमस्कार करता हूँ।
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् । सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥5॥
अर्थात - सदाशिव का लिंगरूप विग्रह कुमकुम, चन्दन आदि से लेपित, दिव्य कमल की माला से सुशोभित और अनेक जन्म-जन्मान्तर के संचित पाप को नष्ट करने वाला है, उस सदाशिव लिंग को मैं नमस्कार करता हूँ।
देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् । दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥6॥
अर्थात - भाव भक्ति द्वारा समस्त देवगणों से पूजित और सेवित, करोड़ों सूर्यों की प्रखर कान्ति से युक्त उस भगवान सदाशिव लिंग को मैं नमस्कार करता हूँ।
अष्टदलोपरि वेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् । अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥7॥
अर्थात - अष्टदल कमल से वेष्टित सदाशिव का लिंगरूप विग्रह सभी चराचर की उत्पत्ति का कारणभूत और अष्ट दरिद्रों का विनाशक है, उस सदाशिव लिंग को मैं नमस्कार करता हूँ।
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् । परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥8॥
अर्थात - जो लिंग देवगुरु बृहस्पति एवं देव श्रेष्ठ इन्द्रादि के द्वारा पूजित, निरंतर नंदनवन के दिव्य पुष्पों द्वारा अर्चित, परात्पर एवं परमात्म स्वरूप है, उस सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥9॥
अर्थात - जो साम्ब सदाशिव के समीप पुण्यकारी इस लिंगाष्टकम का पाठ करता है, वह निश्चित ही शिवलोक में निवास करता है तथा शिव के साथ रहते हुए अत्यंत प्रसन्न होता है।
॥ लिङ्गाष्टकम् सम्पूर्ण ॥
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