
कमल नेत्र स्तोत्रम् देवी भगवती की करुणा, शक्ति और सौंदर्य की स्तुति करने वाला पवित्र स्तोत्र है। इसके पाठ से जीवन में शांति, सुख, आत्मविश्वास और दैवी संरक्षण की प्राप्ति होती है। जानिए सम्पूर्ण पाठ, अर्थ और लाभ।
कमल नेत्र स्तोत्रम् भगवान विष्णु को समर्पित एक पवित्र और मधुर स्तोत्र है, जिसमें उनके कमल समान नेत्रों की सुंदरता और दिव्यता का वर्णन किया गया है। इसका पाठ करने से मन को शांति, भक्ति और आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति होती है। श्रद्धा और प्रेम से इसका जप करने पर जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और विष्णु कृपा का आशीर्वाद मिलता है।
हिंदू धर्म के अनुसार गुरुवार का दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा अर्चना के लिए समर्पित है। जो भी भक्त इस दिन भगवान विष्णु जी की विधिवत पूजा आराधना करता है उस पर विष्णु जी की विशेष कृपा रहती है। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त गुरुवार के दिन व्रत रखने के साथ साथ भगवान विष्णु जी के कमल नेत्र स्तोत्र का पाठ करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। उन्हें विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
हिन्दू धर्म में भगवान श्री हरि विष्णु जी को कई नामों से जानते हैं, उन्हीं नामों में से उनका एक नाम है कमल नयन। जिसका अर्थ होता है, कमल के समान नयनों वाला। विष्णु जी के इस नाम के पीछे भी एक कथा प्रचलित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, दैत्यों के अत्याचार से परेशान हुए देवी देवताओं ने भगवान विष्णु जी से मदद की प्रार्थना की। तब विष्णु जी ने ब्रह्म मुहूर्त में वाराणसी के मणिकार्णिका घाट पर स्नान करके एक हजार कमल पुष्पों से भगवान शिव का पूजन करना शुरू कर दिया। विष्णु जी मंत्रोच्चार के साथ कमल पुष्प भी शिवलिंग पर चढ़ाने लगे। जब उन्होंने 999 कमल पुष्प चढ़ाएं तो भगवान विष्णु ने देखा कि उसमें से एक कमल का पुष्प गायब था। श्री हरि ने उस कमल पुष्प को ढूंढा पर वह पुष्प नहीं मिला। तो विष्णु ने शिवजी को प्रसन्न करने हेतु कमल के फूल के स्थान पर अपनी एक आंख निकालकर चढ़ाई। तभी से उनका नाम कमल नयन के नाम से जाना जाने लगा। उसी तरह विष्णु जी के इस स्त्रोत का भी बहुत महत्त्व है। उनके इस नाम से जो भी भक्त इस स्त्रोत का पाठ करता है तो उस पर विष्णु जी की विशेष कृपा होती है।
श्री कमल नेत्र कटि पीताम्बर, अधर मुरली गिरधरम । मुकुट कुण्डल कर लकुटिया, सांवरे राधेवरम ॥1॥
अर्थ - जिनके कमल नेत्र हैं, जो पीताम्बर में विराजमान हैं, जिनके अधर पर मुरली विराजित है, जो गिरिधर (श्रीकृष्ण) हैं। उनका मुकुट, कुण्डल, लकुटिया, सब परिचायक हैं, जो सांवरे (श्याम) राधा के पति हैं।
कूल यमुना धेनु आगे, सकल गोपयन के मन हरम । पीत वस्त्र गरुड़ वाहन, चरण सुख नित सागरम ॥2॥
अर्थ - जिनके ऊपर यमुना नदी की गहराइयों में विराजमान है, जिनके सामने सभी गोपियां मन मोहित हैं, जिनके वस्त्र पीत (पीले) हैं, जिनका वाहन गरुड़ है, और जिनके पादरजों का सुख समुद्र के समान है
करत केल कलोल निश दिन, कुंज भवन उजागरम । अजर अमर अडोल निश्चल, पुरुषोत्तम अपरा परम ॥3॥
अर्थ - जिनके द्वारा दिन-रात में माधुर्य रास किया जाता है, जिनका निवास सुंदर कुंजों में है, जो अजर, अमर असंतुलित, निश्चल, परम पुरुष और दूसरों से परा व उत्तम है।
दीनानाथ दयाल गिरिधर, कंस हिरणाकुश हरणम । गल फूल भाल विशाल लोचन, अधिक सुन्दर केशवम ॥4॥
अर्थ - जिनका नाम "दीनानाथ" और "दयाल" है, जो गिरिधर, कंस, हिरण्यकशिपु के वध करने वाले हैं, जिनके गल, फूल भाल, और बड़ी आंखें हैं और जो अत्यंत सुन्दर हैं।
बंशीधर वासुदेव छइया, बलि छल्यो श्री वामनम । जब डूबते गज राख लीनों, लंक छेद्यो रावनम ॥5॥
अर्थ - जिन्होंने बंसी धारण की है, जो वासुदेव हैं, जिन्होंने श्री वामन को बलि देने का कार्य किया है, जिन्होंने गज को डूबते हुए समुद्र में रखा और जिन्होंने लंका को रावण द्वारा छेदा है।
सप्त दीप नवखण्ड चौदह, भवन कीनों एक पदम । द्रोपदी की लाज राखी, कहां लौ उपमा करम ॥6॥
अर्थ - जिन्होंने सात द्वीप, नौ खंड और चौदह भवन बनाए, जिन्होंने सभी में एक पदम बनाया है, जिन्होंने द्रोपदी की लाज बचाई है और उनकी उपमा कहां है, वहीं उपमा करते हैं।
दीनानाथ दयाल पूरण, करुणा मय करुणा करम । कवित्तदास विलास निशदिन, नाम जप नित नागरम ॥7॥
अर्थ - जिनका नाम "दीनानाथ" और "दयाल" है, जो सबका पूरण करने वाले हैं, जिनकी कृपा अत्यंत करुणामय है, जो कवित्तादास नित्य उनके विलास की पूजा करते हैं और जो नाम जपते हैं, उन्हें हमेशा नगर में रहने देते हैं
प्रथम गुरु के चरण बन्दों, यस्य ज्ञान प्रकाशितम । आदि विष्णु जुगादि ब्रह्मा, सेविते शिव संकरम ॥8॥
अर्थ - जिनके चरणों में पहले गुरु के चरण बंदे हैं, जिनका ज्ञान प्रकाशित है, जिन को आदि विष्णु, युगों का आदि ब्रह्मा, और शिव शंकर कहते हैं।
श्रीकृष्ण केशव कृष्ण केशव, कृष्ण यदुपति केशवम । श्रीराम रघुवर, राम रघुवर, राम रघुवर राघवम ॥9॥
अर्थ - श्रीकृष्ण को "केशव", "कृष्ण", और "यदुपति" कहा जाता है, और श्रीराम को "रघुवर", "राम", और "रघुवर राघव" कहा जाता है
श्रीराम कृष्ण गोविन्द माधव, वासुदेव श्री वामनम । मच्छ-कच्छ वाराह नरसिंह, पाहि रघुपति पावनम ॥10॥
अर्थ - श्री राम, कृष्ण, गोविन्द, माधव, वासुदेव, श्री वामन, मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह - इन अवतारों को जिन्होंने धारण किया है, वे श्री रघुपति रक्षा करें।
मथुरा में केशवराय विराजे, गोकुल बाल मुकुन्द जी । श्री वृन्दावन में मदन मोहन, गोपीनाथ गोविन्द जी ॥11॥
अर्थ - मथुरा में "केशवराय" विराजमान हैं, गोकुल के बाल "मुकुन्द" जी हैं, श्री वृन्दावन में "मदन मोहन", "गोपीनाथ", और "गोविंद जी" हैं।
धन्य मथुरा धन्य गोकुल, जहाँ श्री पति अवतरे । धन्य यमुना नीर निर्मल, ग्वाल बाल सखावरे ॥12॥
अर्थ - मथुरा को धन्य माना जाए, गोकुल को भी धन्य माना जाए, जहाँ श्री पति श्रीकृष्ण अवतार लेते हैं। धन्य माना जाए यमुना के शुद्ध जल कोऔर गोपियों के साथ रचाए गए प्यारे खेलों के लिए बच्चों को।
नवनीत नागर करत निरन्तर, शिव विरंचि मन मोहितम । कालिन्दी तट करत क्रीड़ा, बाल अदभुत सुन्दरम ॥13॥
अर्थ - नीलकंठ शिव जी और विराजमान ब्रह्मा जी को मोहित करने वाला, नीले रंग की वस्त्र से विभूषित, कालिंदी नदी के किनारे अपनी क्रीड़ा करने वाला और बच्चों के बीच अद्वितीय सुन्दरता वाला बालक।
ग्वाल बाल सब सखा विराजे, संग राधे भामिनी । बंशी वट तट निकट यमुना, मुरली की टेर सुहावनी ॥14॥
अर्थ - सभी सखा बच्चे ग्वालों के साथ विराजमान हैं और उनके साथ भामिनी राधा भी हैं। वट वृक्ष के निकट यमुना नदी और मुरली की मीठी ध्वनि सुहावना में है।
भज राघवेश रघुवंश उत्तम, परम राजकुमार जी । सीता के पति भक्तन के गति, जगत प्राण आधार जी ॥15॥
अर्थ - राघवेश, रघुकुल-राजा, उत्तम पुरुष, सर्वोत्तम राजकुमार श्री राम जी की पूजा करो। सीता के पति, भक्तों का गति, जगत का प्राण आधार श्री राम जी हैं।
जनक राजा पनक राखी, धनुष बाण चढ़ावहीं । सती सीता नाम जाके, श्री रामचन्द्र प्रणामहीं ॥16॥
अर्थ - राजा जनक ने पंचवटी को धनुष बाण से छेद दिया और उन्होंने सती सीता का मान रखा, उनको मैं श्री रामचन्द्र को प्रणाम करता हूँ।
जन्म मथुरा खेल गोकुल, नन्द के ह्रदि नन्दनम । बाल लीला पतित पावन, देवकी वसुदेवकम ॥17॥
अर्थ - वह मथुरा में जन्म लेने वाले हैं, गोकुल में खेलने वाले हैं, नंद कुमार के हृदय में वास करने वाले हैं और वह देवकी- वासुदेव के पावन हैं।
श्रीकृष्ण कलिमल हरण जाके, जो भजे हरिचरण को । भक्ति अपनी देव माधव, भवसागर के तरण को ॥18॥
अर्थ - जो कृष्ण है, कलिया नाग की मणि हरने वाले, वहीं भक्ति के अपने देवता माधव, जो भक्ति के समुद्र से तारण करने वाले हैं।
जगन्नाथ जगदीश स्वामी, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम । द्वारिका के नाथ श्री पति, केशवं प्रणमाम्यहम ॥19॥
अर्थ - जगन्नाथ, जगदीश, स्वामी, श्री बद्रीनाथ, विश्वम्भर, द्वारिका के नाथ, श्री पति को मैं प्रणाम करता हूँ।
श्रीकृष्ण अष्टपदपढ़तनिशदिन, विष्णु लोक सगच्छतम । श्रीगुरु रामानन्द अवतार स्वामी, कविदत्त दास समाप्ततम ॥20॥
अर्थ - श्री कृष्ण के इस आठ पदों के पाठ, जो कि विष्णु लोक में समाहित होते हैं और इस रूप में श्री गुरु रामानन्द अवतार स्वामी, कविदत्त दास का समापन होता है।
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