हरिद्रा गणेश कवचम्

हरिद्रा गणेश कवचम्

पढ़ें ये स्तोत्र, होगा सभी परेशानियों का अंत


हरिद्रा गणेश कवचम् (Haridra Ganesha Kavacham)

दस महाविद्याओं के अपने अलग अलग भैरव और गणेश हैं। जिसमे माता बगलामुखी के गणेश श्री हरिद्रा गणेश जी हैं। हरिद्रा गणपति माँ बगलामुखी के अंग देवता हैं। जो व्यक्ति माँ बगलामुखी की आराधना करते है उन्हें हरिद्रा गणेश की भी पूजा अर्चना करनी चाहिए। हरिद्रा गणेश जी की पूजा अर्चना करने से शत्रु को परिवर्तित कर उसे वशीभूत करने के लिए प्रसन्न किया जा सकता है। साथ ही जातक पर गणेश जी की भी कृपा सदैव बनी रहती है।

हरिद्रा गणेश कवच (Haridra Ganesha Kavach)

॥ अथ हरिद्रा गणेश कवच ॥

ईश्वर उवाच:

शृणु वक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिकरं प्रिये । पठित्वा पाठयित्वा च मुच्यते सर्व संकटात् ॥1॥

अज्ञात्वा कवचं देवि गणेशस्य मनुं जपेत् । सिद्धिर्नजायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ॥ 2॥

ॐ आमोदश्च शिरः पातु प्रमोदश्च शिखोपरि । सम्मोदो भ्रूयुगे पातु भ्रूमध्ये च गणाधिपः ॥ 3॥

गणाक्रीडो नेत्रयुगं नासायां गणनायकः । गणक्रीडान्वितः पातु वदने सर्वसिद्धये ॥ 4॥

जिह्वायां सुमुखः पातु ग्रीवायां दुर्मुखः सदा । विघ्नेशो हृदये पातु विघ्ननाथश्च वक्षसि ॥ 5॥

गणानां नायकः पातु बाहुयुग्मं सदा मम । विघ्नकर्ता च ह्युदरे विघ्नहर्ता च लिङ्गके ॥ 6॥

गजवक्त्रः कटीदेशे एकदन्तो नितम्बके । लम्बोदरः सदा पातु गुह्यदेशे ममारुणः ॥ 7॥

व्यालयज्ञोपवीती मां पातु पादयुगे सदा । जापकः सर्वदा पातु जानुजङ्घे गणाधिपः ॥ 8॥

हारिद्रः सर्वदा पातु सर्वाङ्गे गणनायकः । य इदं प्रपठेन्नित्यं गणेशस्य महेश्वरि ॥ 9॥

कवचं सर्वसिद्धाख्यं सर्वविघ्नविनाशनम् । सर्वसिद्धिकरं साक्षात्सर्वपापविमोचनम् ॥ 10॥

सर्वसम्पत्प्रदं साक्षात्सर्वदुःखविमोक्षणम् । सर्वापत्तिप्रशमनं सर्वशत्रुक्षयङ्करम् ॥ 11॥

ग्रहपीडा ज्वरा रोगा ये चान्ये गुह्यकादयः । पठनाद्धारणादेव नाशमायन्ति तत्क्षणात् ॥ 12॥

धनधान्यकरं देवि कवचं सुरपूजितम् । समं नास्ति महेशानि त्रैलोक्ये कवचस्य च ॥ 13॥

हारिद्रस्य महादेवि विघ्नराजस्य भूतले । किमन्यैरसदालापैर्यत्रायुर्व्ययतामियात् ॥ 14॥

॥ इति विश्वसारतन्त्रे हरिद्रागणेशकवचं सम्पूर्णम् ॥

हरिद्रा गणेश कवच का महत्व (Importance of Haridra Ganesh Kavach)

गणेश जी सभी दु:खो और कष्टों को हरने वाले देवता है। इसलिए उन्हें विध्नहर्ता भी कहा जाता है। किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले गणेश जी का स्मरण किया जाता है ताकि कार्य बिना किसी विध्न के पूर्ण हो सके। हरिद्रा गणेश कवच में हरिद्रा अर्थात हल्दी के साथ गणेश भगवान का ध्यान किया जाता है। हरिद्रा गणेश कवचम् एक पाठ है। जिसे भगवान गणेश जी की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस पाठ को करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं। यह पाठ जातक को सुरक्षा प्रदान करता है। इस पाठ को नियमित रूप से पढ़ने पर मन में शांति होती है और प्रसन्नता मिलती है।

हरिद्रा गणेश कवच पढ़ने के फायदे (Benefits of reading Haridra Ganesh Kavach)

  • हरिद्रा गणेश कवच का नियमित रूप से पाठ करने से जातक को सफलता प्राप्त होती है। वह अपने कार्य में ख्याति प्राप्त करता है।
  • यदि भक्त इस कवच को नियमित रूप से पढ़ता है तो उसके जीवन में आने वाली परेशानिया और चुनौतियों का सामना करने की क्षमता में वृद्धि होती है। साथ ही आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
  • यदि आप ऊपरी बाधा यानि की भूत-प्रेत या फिर अन्य प्रकार की बाधा से मुक्ति पाना चाहते है तो आपके लिए हरिद्रा गणेश कवचम् पाठ करना लाभकारी होगा।
  • हरिद्रा गणेश कवच के नियमित पाठ से जातक के सभी कष्ट दूर हो जाते है।

हरिद्रा गणेश कवच का हिंदी अर्थ (Hindi meaning of Haridra Ganesh Kavach)

ईश्वर उवाच:

शृणु वक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिकरं प्रिये । पठित्वा पाठयित्वा च मुच्यते सर्व संकटात् ॥1॥

अर्थात - ईश्वर ने ( माता पार्वती से ) कहा - हे प्रिये, मैं सभी सिद्धियों को देने वाले कवच का वर्णन करता हूँ। तुम सुनो। इसके पाठ करने -कराने वाले के सभी संकट दूर हो जाते है।

अज्ञात्वा कवचं देवि गणेशस्य मनुं जपेत् । सिद्धिर्नजायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ॥ 2॥

अर्थात - जो इस कवच का ज्ञान प्राप्त किये बिना ही गणेश मंत्र का जप करता है, उसे अनेक (करोड़ों) कल्पों में सिद्धि नहीं प्राप्त होती।

ॐ आमोदश्च शिरः पातु प्रमोदश्च शिखोपरि । सम्मोदो भ्रूयुगे पातु भ्रूमध्ये च गणाधिपः ॥ 3॥

**अर्थात - ** ॐ आमोद मेरे सिर की रक्षा करें, प्रमोद मूर्ध्दा देश की रक्षा करें, संमोद दोनों भौंहों की रक्षा करें और गणाधिप भ्रू मध्य की रक्षा करें।

गणाक्रीडो नेत्रयुगं नासायां गणनायकः । गणक्रीडान्वितः पातु वदने सर्वसिद्धये ॥ 4॥

अर्थात - गणक्रीड दोनों नेत्र, गणनायक नासिका, गणक्रीडन्वित मुख मंडल की रक्षा करें, जिससे मुझे सर्व सिद्धि प्राप्त हो सके।

जिह्वायां सुमुखः पातु ग्रीवायां दुर्मुखः सदा । विघ्नेशो हृदये पातु विघ्ननाथश्च वक्षसि ॥ 5॥

अर्थात - सुमुख मेरी जीभ की, दुर्मुख ग्रीवा की, विन्घेश ह्रदय की और विन्घनाथ वक्ष : स्थल की सदा रक्षा करें।

गणानां नायकः पातु बाहुयुग्मं सदा मम । विघ्नकर्ता च ह्युदरे विघ्नहर्ता च लिङ्गके ॥ 6॥

अर्थात - गणनायक मेरे दोनों भुजाओं की सदा रक्षा करें, विघ्नकर्ता मेरे उदर की और विघ्नहर्ता लिंग की रक्षा करें।

गजवक्त्रः कटीदेशे एकदन्तो नितम्बके । लम्बोदरः सदा पातु गुह्यदेशे ममारुणः ॥ 7॥

अर्थात - गजवक्त्र कटिप्रदेश की, एकदन्त नितम्ब की तथा लंबोदर और अरुण मेरे गुप्तांगों की सदा रक्षा करें।

व्यालयज्ञोपवीती मां पातु पादयुगे सदा । जापकः सर्वदा पातु जानुजङ्घे गणाधिपः ॥ 8॥

अर्थात - व्यालयज्ञोपवीती मेरे दोनों पैरों की तथा जापक गणाधिप मेरे घुटनों और जांघों की रक्षा करें।

हारिद्रः सर्वदा पातु सर्वाङ्गे गणनायकः । य इदं प्रपठेन्नित्यं गणेशस्य महेश्वरि ॥ 9 कवचं सर्वसिद्धाख्यं सर्वविघ्नविनाशनम् । सर्वसिद्धिकरं साक्षात्सर्वपापविमोचनम् ॥ 10॥

अर्थात - गणनायक हरिद्रा गणपति मेरे सर्वांग की सदैव रक्षा करें। हे महेश्वरी, यह सर्व सिद्ध नामक कवच सभी विघ्नों का नाशक और सर्व सिद्धि दायक है। जो इसका नित्य पाठ करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

सर्वसम्पत्प्रदं साक्षात्सर्वदुःखविमोक्षणम् । सर्वापत्तिप्रशमनं सर्वशत्रुक्षयङ्करम् ॥ 11॥

ग्रहपीडा ज्वरा रोगा ये चान्ये गुह्यकादयः । पठनाद्धारणादेव नाशमायन्ति तत्क्षणात् ॥ 12॥

धनधान्यकरं देवि कवचं सुरपूजितम् । समं नास्ति महेशानि त्रैलोक्ये कवचस्य च ॥ 13॥

हारिद्रस्य महादेवि विघ्नराजस्य भूतले । किमन्यैरसदालापैर्यत्रायुर्व्ययतामियात् ॥ 14॥

॥ इति विश्वसारतन्त्रे हरिद्रागणेशकवचं सम्पूर्णम् ॥

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