क्या आप जानते हैं पितृ अष्टक का पाठ क्यों श्राद्ध पक्ष में सबसे प्रभावशाली माना जाता है? जानें इसका महत्व, विधि और अद्भुत लाभ।
पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए लोग कई प्रकार के कर्म-कांड और नियमों का पालन करते हैं, फिर भी पूर्ण समाधान नहीं मिल पाता। इसका एक प्रभावी उपाय पितृ अष्टक है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। तो आइए जानें पितृ अष्टक क्या है, इसका महत्व, विधि और इससे मिलने वाले लाभों के बारे में।
पितृ अष्टक एक स्तोत्र है जिसका पाठ पितृ पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने और पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। इसमें आठ श्लोक हैं, जिनमें पितरों की महिमा का वर्णन है और उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना की गई है।
जयांच्या कृपेने या कुळी जन्म झाला
पुढे वारसा हा सदा वाढविला
अशा नम्र स्मरतो त्या पितरांना
नमस्कार साष्टांग त्या पूर्वजांना || १ ||
अर्थ: जिनकी कृपा से इस कुल में जन्म हुआ और जिनके कारण वंश परंपरा आगे बढ़ती रही, उन विनम्र पितरों को स्मरण कर मैं साष्टांग प्रणाम करता हूँ।
इथे मान सन्मान सारा मिळाला
पुढे मार्ग तो सदा दाखविला
कृपा हीच सारी केली तयांना
नमस्कार साष्टांग त्या पूर्वजांना || २ ||
अर्थ: मुझे जीवन में जो भी मान-सम्मान मिला, वह पितरों की कृपा से ही है। उन्होंने हमेशा सही मार्ग दिखाया, इसलिए उन पूर्वजों को साष्टांग प्रणाम।
मिळो सद् गती मज पितरांना
विनती हीच माझी त्रिदेवतांना
कृती कर्म माझ्या मिळो मोक्ष त्यांना
नमस्कार साष्टांग त्या पूर्वजांना || ३ ||
अर्थ: मेरे पितरों को सद्गति मिले, यही मेरी त्रिदेवों से प्रार्थना है। मेरी ओर से किए गए शुभ कर्मों से उन्हें मोक्ष प्राप्त हो। ऐसे पितरों को मैं साष्टांग प्रणाम करता हूँ।
जोडून कर हे विनती तयांना
अग्नि वरूण वायु आदी देवतांना
सदा साह्य देवोनी उध्दरी पितरांन
नमस्कार साष्टांग त्या पूर्वजांना || ४ ||
अर्थ: मैं हाथ जोड़कर अग्नि, वरुण, वायु आदि देवताओं से विनती करता हूँ कि वे सदा पितरों की सहायता करें और उन्हें उध्दार दें। उन पितरों को साष्टांग प्रणाम।
वसुरूद्रदित्य स्वरूप पितरांना
सप्तगोत्रे एकोत्तरशतादी कुलांना
मुक्तीमार्ग द्यावा ऊध्दरून त्यांना
नमस्कार साष्टांग त्या पूर्वजांना || ५ ||
अर्थ: वसुओं, रूद्रों और आदित्यों के स्वरूप में स्थित पितरों को, सप्तगोत्रों और एक सौ से अधिक कुलों के पूर्वजों को मुक्ति का मार्ग प्रदान हो। उन सभी पूर्वजों को साष्टांग प्रणाम।
करूनी सिध्दता भोजनाची तयांना
पक्वान्ने आवडीनें बनवून नाना
सदा तृप्ती होवो जोडी करांना
नमस्कार साष्टांग त्या पूर्वजांना || ६ ||
अर्थ: पूर्वजों के लिए विधिपूर्वक भोजन बनाकर, उनके प्रिय पकवान श्रद्धापूर्वक तैयार करके अर्पित किए जाएं, ताकि वे सदा तृप्त रहें। ऐसे पितरों को साष्टांग प्रणाम।
मनोभावे पुजूनी तिला, यवाने
विप्रास देऊन दक्षिणा त्वरेने
आशिष द्याहो आम्हा सकलांना
नमस्कार साष्टांग त्या पूर्वजांना || ७ ||
अर्थ: पूर्ण मनोभाव से पूजा करके, यव (जौ) अर्पित कर ब्राह्मणों को यथाशक्ति दक्षिणा दें, ताकि वे सब हमें आशीर्वाद दें। उन पितरों को साष्टांग प्रणाम।
सदा स्मृती राहो आपुलीच आम्हा
न्यून काही राहाता माफी कराना
गोड मानुनी घ्यावे सेवा व्रतांना
नमस्कार साष्टांग त्या पूर्वजांना || ८ ||
अर्थ: हमेशा आपकी स्मृति हमारे मन में बनी रहे। यदि किसी पूजा या सेवा में कोई कमी रह जाए तो हमें क्षमा करें और हमारी श्रद्धा को स्नेहपूर्वक स्वीकार करें। उन पितरों को साष्टांग प्रणाम।
पितृ अष्टक एक विशेष स्तोत्र है, जिसे पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति और कृपा प्राप्ति के लिए पढ़ा जाता है। इसका पाठ करने से व्यक्ति को पितरों का आशीर्वाद मिलता है और पितृ दोष से मुक्ति भी संभव होती है। ऐसा माना जाता है कि पितृ दोष के कारण जीवन में रुकावटें, पारिवारिक कलह, संतान संबंधी समस्याएं और आर्थिक संकट उत्पन्न हो सकते हैं। पितृ अष्टक का नियमित पाठ करने से पितर प्रसन्न होते हैं, जिससे घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह स्तोत्र न केवल पूर्वजों को श्रद्धा पूर्वक स्मरण करने का माध्यम है, बल्कि पारिवारिक कल्याण के लिए एक आध्यात्मिक उपाय भी माना गया है। पितरों की प्रसन्नता से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और उन्नति के मार्ग खुलते हैं। अतः पितृ अष्टक का पाठ आस्था और नियमपूर्वक करना बहुत फलदायी होता है।
पितृ अष्टक का पाठ करने का सर्वश्रेष्ठ समय पितृ पक्ष होता है, जो भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक चलता है। यह सोलह दिन पूर्वजों को समर्पित होते हैं, जिनमें श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के साथ पितृ अष्टक का पाठ करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
वहीं, अमावस्या तिथि, विशेष रूप से पितृ अमावस्या, पितरों को श्रद्धांजलि देने का अत्यंत पावन दिन माना जाता है। इस दिन पितृ अष्टक का पाठ करना विशेष पुण्यदायी होता है। इसके अलावा श्राद्ध कर्म के समय भी पितृ अष्टक पढ़ा जा सकता है, विशेष रूप से जब किसी पितर की पुण्यतिथि पर तर्पण किया जाता है। इससे उन्हें तृप्ति मिलती है और वंशजों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। यदि किसी को पितृ दोष हो, तो उसे पितृ पक्ष या किसी शुभ तिथि पर विधिपूर्वक यह पाठ करना चाहिए। पाठ करते समय स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, मन में श्रद्धा रखें और शांत चित्त से पितरों का स्मरण करें।
पितृ अष्टक पाठ के कई महत्वपूर्ण लाभ होते हैं, जो परिवार और जीवन में सुख-शांति एवं समृद्धि लाते हैं।
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