महा भरणी श्राद्ध क्या है
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महा भरणी श्राद्ध क्या है

जानिए महा भरणी श्राद्ध कैसे करें और इसका धार्मिक महत्व

महा भरणी श्राद्ध के बारे में

महा भरणी श्राद्ध पितृ पक्ष में आने वाली भरणी नक्षत्र की तिथि पर किया जाता है। इसे अत्यंत शुभ और विशेष श्राद्ध माना गया है। इस दिन पिंडदान, तर्पण और दान से पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

महा भरणी श्राद्ध क्या होता है?

महा भरणी श्राद्ध, हिंदू कैलेंडर के आश्विन महीने में पितृ पक्ष के दौरान भरणी नक्षत्र शुरू होते ही किया जाने वाला एक श्राद्ध है। यह श्राद्ध आम तौर पर चतुर्थी या पंचमी को किया जाता है। भरणी नक्षत्र में किए गए श्राद्ध से यम प्रसन्न होते हैं और पितरों पर उनकी कृपा बनी रहती है।

ऐसा माना जाता है कि भरणी श्राद्ध से वही लाभ मिलते हैं जो बिहार के बोधगया में अनुष्ठान करने के बाद मिलते हैं।

महा भरणी श्राद्ध कैसे करें?

  • श्राद्ध के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके शरीर को शुद्ध किया जाता है। स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • श्राद्ध के लिए एक पवित्र और शांत स्थान का चयन करें। यह स्थान साफ-सुथरा और स्वच्छ होना चाहिए।
  • कुश, जल, तिल, गंगाजल, दूध, घी, शहद की जलांजलि देने के बाद दीपक, अगरबत्ती, धूप जलाएं।
  • श्राद्ध से पहले पितरों का स्मरण करें और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।
  • तिल के पिंड बनाकर पितरों को अर्पित किए जाते हैं।
  • ब्राह्मण को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा दें। इसके साथ ही गरीबों को दान देना शुभ माना जाता है।
  • श्राद्ध में कढ़ी, भात, खीर, पुरी और सब्जी का भोग लगाता जाता है।
  • इसके बाद भोजन को गाय, कौवे, कुत्ते और फिर चीटियों को खिलाएं।
  • श्राद्ध के दौरान मांगलिक कार्य करना, शराब पीना, मांस खाना, झूठ बोलना और ब्याज का धंधा करने से पितृ नाराज हो जाते हैं।
  • श्राद्ध में मांसाहार, बैंगन, प्याज, लहसुन, बासी भोजन, मूली, लौकी, काला नमक, सत्तू, मसूर की दाल, सरसों का साग, चना आदि वर्जित माना गया है।

महा भरणी श्राद्ध का महत्व

परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु के एक वर्ष बाद भरणी श्राद्ध करना जरूरी होता है। जो लोग अविवाहित मरते हैं उनका श्राद्ध पंचमी तिथि को किया जाता है और उस दिन भरणी नक्षत्र हो तो और भी अच्छा होता है। इसके अलावा जो व्यक्ति अपने जीवनकाल में तीर्थ यात्रा नहीं करता है उसे गया, पुष्कर आदि स्थानों पर भरणी श्राद्ध करना पड़ता है, ताकि उसे मोक्ष की प्राप्ति हो सके।

वेदों और पुराणों में भरणी नक्षत्र को विशेष महत्व दिया गया है। माना जाता है कि इस नक्षत्र में किए गए श्राद्ध का फल बहुत अधिक होता है। हिंदू धर्म में पितृ ऋण का बहुत महत्व होता है। महा भरणी श्राद्ध के माध्यम से हम अपने पितरों के ऋण से मुक्त होने का प्रयास करते हैं। महा भरणी श्राद्ध के माध्यम से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है

भरणी श्राद्ध से जुड़ी खास बातें

  • भरणी नक्षत्र के स्वामी यम हैं।
  • यमराज को भरणी का देवता माना जाता है।
  • अग्नि और गरुड़ पुराण के मुताबिक, इस दिन पितरों के लिए श्राद्ध करने से उन्हें तीर्थ श्राद्ध का फल और सद्गति मिलती है।
  • व्यक्ति की मृत्यु के बाद एक साल तक भरणी श्राद्ध नहीं किया जाता।
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Published by Sri Mandir·August 27, 2025

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