नवरात्रि घटस्थापना 2024 की तिथि, शुभ मुहूर्त और विधि की पूरी जानकारी प्राप्त करें।
नवरात्रि में घटस्थापना बेहद शुभ होती है, हमारे शास्त्रों में कलश को संपूर्ण देवी-देवताओं का निवास स्थान माना गया है। घटस्थापना से आप अपने पूजन स्थल पर सभी देवी-देवताओं का आवाहन कर सकते हैं। जिससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। इसलिए आज नवरात्रि के शुभ अवसर पर हम आपको घटस्थापना से जुड़े सभी प्रश्नों का उत्तर बताने जा रहे हैं।
वास्तव में जो घट या कलश है, उसमें सभी देवी- देवताओं का आवाहन किया जाता है। इसे 33 कोटियों के देवी-देवताओं का निवास स्थान भी माना गया है। देवी-देवताओं के अतिरिक्त कलश में चारों वेदों और पवित्र नदियों का भी आवाहन किया जाता है। शास्त्रों में, कलश के मुख पर भगवान विष्णु, कंठ पर भगवान शंकर और जड़ यानी कलश के निचले स्थान में ब्रह्मा जी का स्थान बताया गया है। साथ ही कलश के ऊपर जो नारियल रखा जाता है, वह देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।
अगर बात करें घटस्थापना में जौ के पात्र की तो जौ का भी अपना धार्मिक महत्व है, हिंदू धर्म में इसे धरती पर उपजने वाली पहली फसल माना गया है। मान्यता है कि यह फसल देवी जी के द्वारा ही धरती पर प्रकट हुई थी इसलिए देवी जी के साथ जौ बो कर उसकी भी पूजा की जाती है।
पूजन स्थल पर इसको स्थापित करने से आपको और आपके पूरे परिवार को सभी देवी-देवताओं का आशीष मिलता है और घर में सुख समृद्धि का वास होता है।
इसलिए घटस्थापना को बेहद शुभ एवं लाभदायक माना गया है।
आपको बता दें, कुछ लोग नवरात्रि में केवल कलश स्थापना करते हैं और जौ नहीं बोते।
घटस्थापना के दो भाग होते हैं, पहले में एक मिट्टी के पात्र में जौ बोए जाते हैं और दूसरे में कलश स्थापना की जाती है। यह कलश मिट्टी, तांबे या पीतल का हो सकता है। जहां कुछ लोग, जौ वाले पात्र के ऊपर ही कलश को स्थापित कर देते हैं, वहीं कुछ लोग कलश और जौ के पात्र को पूजा में अलग-अलग रखते हैं। आप दोनों प्रकार से घटस्थापना कर सकते हैं।
घटस्थापना का महत्व तो आप लोगों ने जान लिया लेकिन यह बेहद ज़रूरी है कि आपको इससे जुड़े नियमों के बारे में पता हो। इस बात को ध्यान में रखते हुए घटस्थापना के नियमों को भी जान लेते हैं।
शारदीय नवरात्रि घटस्थापना- 03 अक्टूबर, गुरुवार (शुक्लपक्ष, प्रतिपदा) घटस्थापना मुहूर्त- 03 अक्टूबर, गुरुवार, 05:51 AM से 06:56 AM तक अभिजित घटस्थापना मुहूर्त- 03 अक्टूबर 11:23 AM से 12:10 PM तक प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 03 अक्टूबर, गुरुवार, 12:18 PM प्रतिपदा तिथि समापन- 04 अक्टूबर, शुक्रवार, 02:58 AM कन्या लग्न प्रारम्भ - 03 अक्टूबर, 05:51 AM कन्या लग्न समाप्त - 03 अक्टूबर, 06:56 AM
मिट्टी का बड़ा कटोरा, छानी हुई उपजाऊ मिट्टी, जौं के दानें, तांबे, मिट्टी या पीतल का कलश, जटा वाला नारियल, लाल चुनरी, मौली, आम के पत्ते या अशोक के पत्ते, रोली, पुष्प, अक्षत से भरा एक पात्र, यज्ञोपवित या जनैऊ, फल, मेवे।
कलश के अंदर डालने के लिए आपको अक्षत, हल्दी , कुमकुम, गंगाजल, शुद्धजल, सिक्का, दूर्वा, सुपारी, हल्दी की गांठ, मीठा बताशा या मिश्री की आवश्यकता होगी।
आपको बता दें, नवरात्रि में अलग-अलग दिनों पर आपको जिस भी सामग्री की आवश्यकता होगी, उसकी लिस्ट से जुड़ी हुई, सारी जानकारी श्रीमंदिर पर उपलब्ध है, आप उसे ज़रूर देखें।
कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिता: मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृता:। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामवेदो अथर्वणा: अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिता:।
सबसे पहले तो आप इस बात पर ध्यान दें कि अगर आप मिट्टी का कलश ला रहे हैं तो उसे पूजा में रखने से पहले 1-2 दिन के लिए पानी में डुबो कर रख लें। इस प्रकार जब आप इसमें पानी भरकर रखेंगे तो वह नहीं सूखेगा, इसके अलावा जौ के पात्र में मिट्टी के बीच में एक छोटा गड्ढा बनाकर इसमें कलश रखें, यह भी जल को सूखने से बचाएगा। अगर आपको फिर भी लगता है कि जल सूख रहा है तो आप कलश के बगल से धीरे-धीरे पानी डाल सकते हैं। हम उम्मीद करते हैं यह उपाय आपके काम आएगा।
अब आगे की विधि जान लेते हैं। घटस्थापना के बाद आप माता की प्रतिमा के दाएं तरफ अखंड दीपक रखें और उसे प्रज्वलित करें।
अखंड दीप प्रज्वलित करने से संबंधित संपूर्ण जानकारी ऐप पर उपलब्ध है, आप उसे ज़रूर देखें।
घटस्थापना के बाद, इसकी पूजा भी की जाती है। आप घट के समक्ष धूप, दीप अवश्य दिखाएं और भोग में मेवे व फल अर्पित करें।
तो इस प्रकार आप नवरात्रि में घटस्थापना विधिपूर्वक कर सकते हैं, हम आशा करते हैं कि आपकी पूजा फलदायी हो। जय माता दी
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