Maa Kalratri Puja Vidhi  | माँ कालरात्रि पूजा विधि

माँ कालरात्रि पूजा विधि

इस विशेष पूजा के माध्यम से मां का आशीर्वाद प्राप्त करें।


**माँ कालरात्रि पूजा विधि | Maa Kalratri Puja Vidhi **

माँ दुर्गा के सातवें शक्ति स्वरूप को कालरात्रि के नाम से जाना जाता है, और शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन माँ कालरात्रि को समर्पित है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन अर्थात 09 अक्टूबर, बुधवार को माँ कालरात्रि की साधना की जाएगी।

आइये सबसे पहले बात करते हैं कि सप्तमी तिथि का प्रारंभ और समापन कब होगा-

09 अक्टूबर, सातवां दिन- सप्तमी तिथि, मां कालरात्रि पूजा

सप्तमी तिथि का प्रारंभ: 09 अक्टूबर, बुधवार 12:14 PM सप्तमी तिथि का समापन: 10 अक्टूबर, गुरुवार 12:31 PM

शास्त्रों में मां दुर्गा के नौ रूपों का उल्लेख किया गया है। नवरात्र के सातवें दिन, माता के नौ रूपों में से एक स्वरूप माता कालरात्रि की पूजा का विधान है। मान्यता है कि नवरात्र के सभी नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है।

माँ कालरात्रि की छवि अत्यंत उग्र है। किंतु माँ का यह रूप केवल असुरों और दुष्‍टों का संहार करने वाला है। अपने भक्तों के प्रति माँ अत्यंत स्नेहमयी हैं। इस स्वरूप में माता का रंग घने अंधकार की तरह गहरा काला है। माँ के केश बिखरे हुए हैं। गले में बिजली के समान चमकने वाली माला है।

इनके तीन नेत्र हैं, ये तीनों नेत्र पृथ्वी के समान गोल हैं। साथ ही माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ अर्थात गधा है।

ये अपने ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरद मुद्रा से सभी को आशीष प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का अंकुश तथा नीचे वाले हाथ में कटार है।

माँ कात्यायनी की पूजा से होने वाले लाभ :

मान्यता है कि इस दिन मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है और आकस्मिक संकटों से रक्षा होती है। भयंकर रूप वाली मां कालरात्रि सदैव अपने भक्‍तों पर कृपा करती हैं और शुभ फल देती है। इसलिए मां का एक नाम ‘शुभंकरी’ भी पड़ा।

माँ कालरात्रि पूजा विधि

  • सर्वप्रथम सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • चौकी को साफ करके, वहां गंगाजल का छिड़काव करें, चौकी पर आपने एक दिन पहले जो पुष्प चढ़ाए थे, उन्हें हटा दें।
  • आपको बता दें, चूंकि चौकी की स्थापना प्रथम दिन ही की जाती है, इसलिए पूजन स्थल पर विसर्जन से पहले झाड़ू न लगाएं।
  • इसके बाद आप पूजन स्थल पर आसन ग्रहण कर लें।
  • इसके बाद माता की आराधना शुरू करें- सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें।
  • अब ॐ गं गणपतये नमः का 11 बार जाप करके भगवान गणेश को नमन करें।
  • इसके बाद अब मन्त्र ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥ के द्वारा माँ कालरात्रि का आह्वान करें।
  • साथ ही माता को नमन करके निम्नलिखित स्तोत्र का पाठ करें।

करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम्॥
दिव्यम् लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयम् वरदाम् चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम्॥
महामेघ प्रभाम् श्यामाम् तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवम् सचियन्तयेत् कालरात्रिम् सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

  • अब प्रथम पूज्य गणेश जी और देवी माँ को कुमकुम का तिलक लगाएं।
  • कलश, घट, चौकी को भी हल्दी-कुमकुम-अक्षत से तिलक करके नमन करें।
  • इसके बाद धुप- सुगन्धि जलाकर माता जी को फूल-माला अर्पित करें। आप देवी जी को लाल और पीले पुष्प अर्पित कर सकते हैं।
  • नर्वाण मन्त्र ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाऐ विच्चे’ का यथाशक्ति अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार जप करें।
  • एक धुपदान में उपला जलाकर इस पर लोबान, गुग्गल, कर्पूर या घी डालकर माता को धुप दें, और इसके बाद इस धुप को पूरे घर में दिखाएँ। आपको बता दें कि कई साधक केवल अष्टमी या नवमी पर हवन करते हैं, वहीं कई साधक इस विधि से धुप जलाकर पूरे नौ दिनों तक साधना करते हैं। आप अपने घर की परंपरा या अपनी इच्छा के अनुसार यह क्रिया कर सकते हैं।
  • अब भोग के रूप में मिठाई या फल माता को अर्पित करें।
  • इसके बाद माँ कालरात्रि की आरती गाएं।

माँ कालरात्रि की आरती

कालरात्रि जय जय महाकाली। काल के मुंह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतारा॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा॥
खड्ग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदन्ता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे ना बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवे। महाकाली माँ जिसे बचावे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि माँ तेरी जय॥

अब माँ दुर्गा की आरती करें।

इस तरह आपकी पूजा का समापन करें सबको प्रसाद वितरित करके स्वयं प्रसाद ग्रहण करें।

तो यह थी नवरात्र के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा की विधि। शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा के साथ ही माता के नौ रूपों को उनके दिन के अनुसार पूजने से माता आपकी हर मनोकामना पूरी करती हैं। और पूरे वर्ष आपको माँ आदिशक्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

श्रीमंदिर पर आपके लिए नवरात्र के नौ दिनों की पूजा विधि उपलब्ध है। इन्हें जानने के लिए जुड़े रहिये श्रीमंदिर से।

जय माता की!

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