क्या आप जानते हैं माता कूष्माण्डा का बीज मंत्र कौन सा है और इसके जाप से भक्तों को क्या लाभ प्राप्त होते हैं? यहाँ पढ़ें पूरी जानकारी सरल शब्दों में।
माता कूष्माण्डा नवदुर्गा का चौथा स्वरूप हैं, जिन्हें जगत की रचना और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा देने वाली देवी माना जाता है। उनकी कृपा से भक्तों को स्वास्थ्य, समृद्धि और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है। इस लेख में जानिए माता कूष्माण्डा का महत्व, उनके पूजन का तरीका और उनसे मिलने वाले विशेष लाभ।
नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा-अर्चना की जाती है। इन्हें ब्रह्माण्ड की सृजक और जीवन ऊर्जा की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि अपनी मुस्कान और तेज से इन्होंने सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की। मां कूष्माण्डा को कद्दू (कूष्माण्ड) विशेष रूप से प्रिय है और इसी कारण इनका नाम पड़ा। भक्तजन उनकी आराधना कर स्वास्थ्य, बल, ऐश्वर्य और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उनकी पूजा से भय, रोग और नकारात्मकता दूर होती है।
माँ कूष्माण्डा नवरात्रि के चौथे दिन पूजित होती हैं। इनके स्वरूप में आठ भुजाएँ होती हैं, इस कारण इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। उनके हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जपमाला सुशोभित रहते हैं, जबकि आठवें हाथ में वरमुद्रा है। माँ कूष्माण्डा सिंह पर सवार रहती हैं और उनके तेज से चारों ओर प्रकाश फैलता है।
माँ कूष्माण्डा का महत्व यह है कि इन्हीं की दिव्य मुस्कान और उष्मा से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई। इन्हें सृष्टि की आदिशक्ति और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। माँ की उपासना से जीवन में आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है तथा भय और बाधाएँ दूर होती हैं।
बीज मंत्र एक एकाक्षरी या संक्षिप्त ध्वनि है (जैसे – ॐ, ह्रीं, श्रीं, क्लीं), जिसमें किसी देवता या आध्यात्मिक शक्ति का सार निहित होता है। इन्हें 'बीज' इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये किसी भी बड़े मंत्र या शक्ति के मूल होते हैं और सही उच्चारण व भक्तिभाव से जाप करने पर आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक लाभ मिलते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। उदाहरण के लिए, भगवान गणेश का बीज मंत्र 'गं' है, जबकि 'ॐ' को सभी मंत्रों की जननी माना जाता है।
मां कूष्मांडा का बीज मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:’ है, जिसका जाप करने से भक्त रोग-दोष, कष्ट और शोक से मुक्त होते हैं और यश, बल व आयु की प्राप्ति होती है। यह नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की आराधना में उपयोग किया जाता है।
इस मंत्र का महत्व
इस बीज मंत्र के जप से साधक को ऊर्जा, आरोग्य, ऐश्वर्य और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही भय और नकारात्मकता दूर होकर जीवन में संतोष और सुख की वृद्धि होती है।
माता कूष्माण्डा के प्रमुख मंत्र हैं ‘या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥’, जो उनकी स्तुति के लिए है और ‘ऐं ह्री देव्यै नम:’, जो उनका स्वयं सिद्ध बीज मंत्र है। इन मंत्रों के जाप से भक्तों को रोग, शोक, भय और कष्टों से मुक्ति मिलती है और उन्हें सुख, समृद्धि, यश, बल और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है।
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्माण्डायै महालक्ष्म्यै नमः’
यह मंत्र मां कूष्माण्डा और मां लक्ष्मी दोनों के आशीर्वाद के लिए उपयुक्त है। लाभ: ऐश्वर्य, समृद्धि और मानसिक स्थिरता।
‘ॐ कूष्माण्डायै नमः’
इसका जाप साधारण पूजा और नवरात्रि में सबसे अधिक किया जाता है। लाभ: घर में सुख-शांति, रोगों का नाश और ऊर्जा की वृद्धि।
माँ कूष्माण्डा के मंत्र और बीज मंत्र का जप जीवन में ऊर्जा, साहस, स्वास्थ्य और समृद्धि लाता है। इनके नियमित जाप से मनोबल बढ़ता है, भय और नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं, और मानसिक शांति मिलती है। सरलता, सकारात्मकता और संतुलन का संदेश हमें उनके मंत्रों से मिलता है। आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ ये मंत्र जीवन में सुख-शांति, ऐश्वर्य और सफलता के मार्ग खोलते हैं।
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