क्या आप जानते हैं माँ स्कंदमाता का प्रिय भोग कौन सा है और इसे अर्पित करने से भक्तों को क्या फल प्राप्त होता है? यहाँ पढ़ें पूरी जानकारी सरल शब्दों में।
नवदुर्गा की पाँचवीं शक्ति मां स्कंदमाता को भोग अर्पित करने का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यता है कि श्रद्धा और भक्ति से चढ़ाया गया भोग भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और संतान सुख का आशीर्वाद लाता है। इस लेख में जानिए मां स्कंदमाता के भोग से जुड़ी मान्यताएँ और इसके धार्मिक महत्व।
पर्वतों की ऊंचाइयों में विराजमान, सांसारिक जीवों के हृदय में नवचेतना का संचार करने वाली देवी स्कंदमाता की महिमा अपरंपार है। कहा जाता है कि उनकी कृपा से मूढ़ से ज्ञानी तक का रूपांतरण संभव होता है। मां का नाम ही उनके दिव्य संबंध को दर्शाता है। जानकारी के अनुसार, कार्तिकेय, जिन्हें स्कंद कुमार भी कहा जाता है, की माता होने के कारण उन्हें स्कंदमाता कहा गया। नवरात्रि के पांचवें दिन पूजित मां का स्वरूप अत्यंत सुन्दर और प्रभावशाली है। चार भुजाओं वाली ये माता, दाईं ओर ऊपर की भुजा में अपने पुत्र स्कंद को बालरूप में रखती हैं। उनकी चमकदार शुभ्र देह और कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। मां के आशीर्वाद से मनुष्य अज्ञानता के अंधकार से निकलकर प्रकाश की ओर बढ़ता है।
मां स्कंदमाता मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में पाँचवां रूप हैं। उन्हें स्कंदमाता इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे भगवान स्कंद या कार्तिकेय की माता हैं। वे ज्ञान, विज्ञान और धर्म की देवी मानी जाती हैं। मां स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत शुभ और दिव्य है। वे सिंह नामक शक्तिशाली वाहन पर विराजमान होती हैं और अपने दोनों हाथों में कमल धारण करती हैं। धार्मिक मान्यता है कि मां स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिए उनके चारों ओर सूर्य जैसा तेज फैलता है। उनकी पूजा से भक्तों को सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है। मां स्कंदमाता के पूजन में धनुष-बाण अर्पित करना शुभ माना जाता है, जो भक्तों की हर मनोकामना पूरी करता है। वे दुर्गा की कल्याणकारी शक्ति का प्रतीक हैं और अपने भक्तों को संकटों से मुक्ति दिलाने वाली दयालु माता हैं।
मां स्कंदमाता को पीले रंग की चीजें अत्यंत प्रिय हैं। इसलिए उनकी पूजा में केसर वाली खीर का भोग लगाना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह रंग और स्वाद दोनों में उनकी रुचि को दर्शाता है। इसके साथ ही केले का भोग भी विशेष रूप से अर्पित किया जाता है, जो मां के प्रिय खाद्य पदार्थों में शामिल है। इसके अलावा मां को इलायची और कमल का फूल चढ़ाना अत्यंत शुभ और प्रिय है, क्योंकि यह उनके दिव्य स्वरूप का प्रतीक है।
पूजा विधी
मां स्कंदमाता को भोग लगाते समय ध्यान रखें कि
भोग सात्विक, स्वच्छ और पवित्र होना चाहिए।
भोग के लिए हमेशा सोने, चांदी, तांबे या पीतल के पात्रों का उपयोग करें
भोग अर्पित करते समय पहले देवी का ध्यान और ध्यानपूर्वक प्रार्थना करें।
भोग को देवी के सामने स्थापित करें
कमल के फूल या अन्य शुभ सामग्री से सजाएं।
लाभ
भोग अर्पित करने से मां स्कंदमाता की कृपा प्राप्त होती है,
जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और बुद्धि की वृद्धि होती है।
भक्त के मन को भी शुद्ध करती है और देवी के प्रति विश्वास बढ़ाती है।
नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सफलता के द्वार खुलते हैं।
मां स्कंदमाता की पूजा में कुछ विशेष नियम और सावधानियां होती हैं, जिनका पालन करने से देवी की कृपा प्राप्त होती है और पूजा सिद्ध होती है.
पौराणिक कथा के अनुसार, राक्षस तारकासुर की मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र से ही संभव थी। इस संकट के समय मां पार्वती ने स्कंद माता का रूप धारण किया और अपने पुत्र कार्तिकेय (भगवान स्कंद) को युद्ध की शिक्षा दी। मां स्कंदमाता ने अपने पुत्र को युद्ध कौशल में निपुण बनाया, जिससे भगवान स्कंद ने तारकासुर का वध कर सभी देवताओं और लोकों को संकट से मुक्त किया। भगवान स्कंद को देवताओं का सेनापति भी कहा जाता है और पुराणों में उन्हें सनतकुमार, स्कंद कुमार जैसे नामों से जाना जाता है। वहीं, मां स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पाँचवें दिन विधिपूर्वक की जाती है। इस दिन भक्त उनकी आराधना कर सुख, समृद्धि और बुद्धि की प्राप्ति करते हैं।
मां स्कंदमाता का दिव्य स्वरूप और उनकी पौराणिक कथा भक्तों को साहस, ज्ञान और शक्ति का संदेश प्रदान करती है। उनकी पूजा से न केवल जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, बल्कि अज्ञान और अंधकार भी दूर हो जाते हैं।
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