क्या आप जानते हैं माँ शैलपुत्री का वाहन कौन सा है और यह भक्तों के लिए क्या संदेश देता है? यहाँ पढ़ें पूरी जानकारी आसान भाषा में।
माँ शैलपुत्री का वाहन वृषभ (सफेद बैल) है। यह वाहन शक्ति, धैर्य और कर्मशीलता का प्रतीक माना जाता है। वृषभ वाहन यह दर्शाता है कि माँ अपने भक्तों को सादगी, स्थिरता और जीवन में संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देती हैं।
नवरात्रि के पहले दिन जिस दिव्य रूप की आराधना की जाती है, वह हैं मां शैलपुत्री, लेकिन कौन है माता शैलपुत्री, क्या है इनकी जन्मकथा औऱ इनका स्वरूप जानते हैं। जानकारी के अुसार, मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इसलिए इन्हें यह नाम मिला। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां शैलपुत्री पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की पुत्री सती थीं, जिन्होंने भगवान शिव से विवाह किया था, लेकिन पिता दक्ष के अपमान के कारण सती ने योगाग्नि में अपने प्राण त्याग दिए।
उसके बाद उन्होंने पुनः हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और इस कारण वे शैलपुत्री के नाम से विख्यात हुई। वहीं संस्कृत में शैल का अर्थ पर्वत होता है। वहीं, नवरात्रि के पहले दिन माता का पृथ्वी पर स्वागत हुआ, इसी कारण इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है। देवी पुराण के अनुसार, मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल, बाएं हाथ में कमल है। धार्मिक मान्यता है कि मां शैलपुत्री के पूजन से जीवन की समस्त बाधाएं और क्लेश दूर हो जाते हैं। साधक नवरात्रि के पहले दिन अपने मूलाधार चक्र पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे योग साधना का द्वार खुलता है। उनका स्वरूप साहस, संयम, भक्ति और शक्ति का प्रतीक है। मां शैलपुत्री की उपासना से न केवल आध्यात्मिक उन्नति होती है, बल्कि जीवन में स्थिरता, सुख और समृद्धि भी प्राप्त होती है।
मां शैलपुत्री, जो देवी दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं। उनका वाहन वृषभ (बैल) है। मां शैलपुत्री को वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। देवी शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल सुशोभित है, जो शक्ति, साहस और सुरक्षा का प्रतीक है, जबकि बाएं हाथ में कमल पुष्प है, जो पवित्रता, भक्ति और आत्मज्ञान का द्योतक माना जाता है।
नवरात्रि के प्रथम दिन पूजित मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत दिव्य, शक्तिशाली और पवित्र माना जाता है। उनका वाहन नंदी (बैल) है, जो साहस, स्थिरता, अटूट भक्ति और सहनशीलता का प्रतीक है। नंदी भगवान शिव का वाहन भी है, जिससे मां शैलपुत्री के स्वरूप और शिवत्व के बीच गहरा आध्यात्मिक संबंध दिखाई देता है। बैल पर सवार होकर मां शैलपुत्री न केवल पर्वतराज हिमालय पर विराजमान हैं, बल्कि समस्त जीव-जंतुओं की रक्षक और प्रकृति की संरक्षिका भी मानी जाती हैं। इसके अलावा मां के वाहन की अनेक महत्वता है।
मां शैलपुत्री का वाहन अपनी दृढ़ता, सहनशीलता और असीम शक्ति के लिए जाना जाता है। यह मां शैलपुत्री के स्थिर और अडिग स्वरूप का प्रतीक है।
नंदी भगवान शिव के परम भक्त हैं। मां शैलपुत्री के वाहन के रूप में नंदी भक्तों की सच्ची निष्ठा, समर्पण और भक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। मां शैलपुत्री के वाहन को सकारात्मकता और ऊर्जा का भी प्रतीक माना जाता है। मां शैलपुत्री का इस पर सवार होना शक्ति, उत्साह और आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रसार का संकेत है।
मां शैलपुत्री का संबंध पर्वत और प्रकृति से है। उनका वाहन बैल होना इस बात को दर्शाता है कि वे संतुलन, संरक्षण और पर्यावरणीय सामंजस्य की अधिष्ठात्री हैं। इस प्रकार मां शैलपुत्री के वाहन नंदी का यह गहन महत्व भक्तों को जीवन में धैर्य, भक्ति, साहस और सकारात्मक ऊर्जा अपनाने की प्रेरणा देता है।
नवरात्रि केवल देवी शक्ति की उपासना का पर्व नहीं है, बल्कि यह भगवान शिव और उनके वाहन नंदी महाराज की भक्ति से भी गहराई से जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, नंदी भगवान शिव के वाहन, परम भक्त और शिवलोक के द्वारपाल हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई भक्त अपनी मनोकामना नंदी के कान में कहता है, तो वे उसे सीधे भगवान शिव तक पहुंचाते हैं। इसलिए नवरात्रि के दौरान नंदी की पूजा का विशेष महत्व होता है।
नवरात्रि का पावन पर्व देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का विशेष समय है, जिसमें प्रथम दिवस पर मां शैलपुत्री की पूजा का अत्यंत महत्व होता है। मान्यता है कि नवरात्रि के पावन दिनों में नंदी के कानों में अपनी प्रार्थना कहने से शिव और देवी दुर्गा दोनों की विशेष कृपा प्राप्त होती है। नवरात्रि में नंदी की पूजा के साथ मां शैलपुत्री की उपासना भक्त के जीवन से नकारात्मक ऊर्जा, भय और बाधाओं को दूर करती है और उसे आत्मबल, शांति और समृद्धि प्रदान करती है। नवरात्रि में शैलपुत्री और नंदी की भक्ति से जीवन पूर्णतः मंगलमय हो जाता है।
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