क्या आप जानते हैं माँ कूष्माण्डा का प्रिय भोग कौन सा है और इसे अर्पित करने से भक्तों को क्या फल मिलता है?
नवरात्रि के नौ दिव्य रूपों में चौथा रूप है ‘माता कुष्मांडा’। देवी भागवत पुराण में उल्लेख है कि जब चारों ओर केवल अंधकार और शून्य था, तब माँ कुष्मांडा ने अपनी मधुर मुस्कान से संपूर्ण सृष्टि का निर्माण किया। वे ही वह शक्ति हैं जिनकी ऊर्जा से सूर्य, चंद्र और सभी ग्रह-नक्षत्र तेज प्राप्त करते हैं। इस कारण माँ कुष्मांडा को ब्रह्माण्ड की आदिशक्ति और ऊर्जा का मूल स्रोत माना जाता है। नवरात्रि का चौथा दिन इन्हीं माता को समर्पित है।
माँ कुष्मांडा का नाम ही उनके स्वरूप का वर्णन करता है। “कु” का अर्थ है थोड़ा, “उष्मा” का अर्थ है ऊर्जा और गर्माहट, और “अंड” का अर्थ है ब्रह्माण्ड। अर्थात वे देवी जिन्होंने मंद मुस्कान और अपनी दिव्य ऊर्जा से इस अनंत ब्रह्माण्ड की रचना कर दी।
पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में थे और उस समय सृष्टि का कोई आधार नहीं था, तब माता कुष्मांडा ने अपने तेज से सौरमंडल और संपूर्ण ब्रह्माण्ड की स्थापना की। उनका वास सूर्य मंडल में माना जाता है और उनकी ही शक्ति से सूर्य तथा समस्त ग्रह-नक्षत्र प्रकाशित होते हैं।
माँ कुष्मांडा का स्वरूप अत्यंत भव्य और तेजस्वी है। वे आठ भुजाओं वाली हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। उनके हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जप माला सुशोभित हैं। उनकी सवारी सिंह है, जो पराक्रम और निर्भयता का प्रतीक है।
संस्कृत में कद्दू (पेठा) को “कुष्मांड” कहा जाता है और यह फल माता कूष्मांडा को विशेष प्रिय है। इसीलिए नवरात्रि के चौथे दिन उन्हें कद्दू या उससे बने व्यंजन का भोग अर्पित किया जाता है।
माँ कुष्मांडा को सृष्टि की आदिशक्ति कहा जाता है। माना जाता है कि ब्रह्माण्ड की हर वस्तु, हर प्राणी और हर ऊर्जा में इन्हीं का तेज व्याप्त है। इनकी पूजा से अज्ञान और भय का नाश होता है तथा आत्मविश्वास बढ़ता है और जीवन में उत्साह का संचार होता है।
ज्योतिषीय दृष्टि से माँ कुष्मांडा सूर्य की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। अतः इनकी उपासना से नेत्र-ज्योति, बल, तेज और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि ऋण-मुक्ति, सामाजिक प्रतिष्ठा और आर्थिक समृद्धि के लिए माँ की आराधना अत्यंत फलदायी होती है।
नवरात्रि की चौथी तिथि पर माँ कूष्माण्डा की पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्रि हो या चैत्र नवरात्रि, दोनों ही अवसरों पर चौथे दिन भक्तजन विशेष विधि-विधान से इनकी आराधना करते हैं।
माँ कूष्माण्डा को अर्पित किए जाने वाले भोगों में ‘मालपुआ’ सबसे प्रमुख और शुभ माना जाता है । मान्यता है कि इस दिन देवी को मालपुए का भोग लगाने से ऋण से मुक्ति मिलती है और जीवन में समृद्धि आती है। आपको बता दें कि मालपुआ मीठा पकवान है जो आटे, दूध और शक्कर से बनाया जाता है।
भोग से जुड़े अन्य विकल्प
यदि किसी कारणवश मालपुआ बनाना संभव न हो तो अन्य विकल्प भी अपनाए जा सकते हैं। माँ कूष्माण्डा को कद्दू का भोग भी अर्पित करने का विधान है। ऐसे में कद्दू का हलवा, कद्दू से बनी खीर या मिठाई भी अर्पित की जा सकती है। इसके साथ ही फल व पंचामृत यानी दूध, दही, शहद, घी और शक्कर का मिश्रण भी माँ का प्रिय भोग माना जाता है।
भोग लगाने के नियम
भोग लगाने के कुछ नियम और विधियाँ भी बताई गई हैं जिनका पालन करने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
भक्त को प्रातःकाल स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना आवश्यक है। शास्त्रों में यह माना गया है कि शरीर की शुद्धता से मन भी शुद्ध होता है और तभी पूजा का फल संपूर्ण रूप से प्राप्त होता है।
जिस स्थान पर माँ की पूजा करनी हो, उसे सबसे पहले स्वच्छ करना चाहिए। उसके बाद आसान बिछाएं। पूजा के लिए आसान पर बैठते समय जातक को नारंगी या हरे रंग का वस्त्र पहनना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार, मंत्र-जप के बिना कोई भी पूजा पूर्ण नहीं होती। माँ कूष्माण्डा का बीज मंत्र है – “ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः”। इस मंत्र का कम से कम 108 बार जप करना चाहिए। इसके अतिरिक्त दुर्गा सप्तशती के श्लोकों और देवी स्तुति का पाठ करना भी अत्यंत शुभ माना गया है।
भोग को हमेशा स्वच्छ थाल में रखकर माँ के समक्ष अर्पित करना चाहिए। भोग अर्पण से पहले दीपक जलाना चाहिए और धूप-दीप से पूजा करनी चाहिए। इसके बाद माँ को भोग समर्पित करना श्रेष्ठ माना जाता है।
भोग लगाने के बाद उसी को प्रसाद के रूप में परिवार के सदस्यों और भक्तों में बाँटना चाहिए। यह प्रसाद घर में सुख, शांति और सकारात्मकता का वातावरण लाता है।
भोग लगाने के लाभ
माँ कुष्मांडा की पूजा करने वाले भक्त को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।
जीवन में सुख, समृद्धि और वैभव आता है।
ऋण और आर्थिक संकट से मुक्ति मिलती है।
शरीर में ऊर्जा आती है और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
भय, संशय और अज्ञान का नाश होता है।
भक्त के हृदय में आत्मविश्वास और सकारात्मकता का संचार होता है।
ये थी नवरात्रि के चौथे दिन पूजी जाने वाली देवी ‘माँ कूष्माण्डा’ के स्वरूप और उनके भोग के बारे में विशेष जानकारी। माँ कूष्माण्डा की आराधना से साधक को उत्तम स्वास्थ्य, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से से भय, रोग और दुखों का नाश होता है और घर-परिवार में सुख, शांति का वास होता है।
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