
नवरात्रि के सातवें दिन पूजी जाने वाली माँ कालरात्रि की पावन कथा, स्वरूप और पूजन विधि जानें। उनकी कृपा से भक्तों को मिलता है निर्भयता, सुरक्षा और सफलता।
नवरात्रि में देवी दुर्गा की नौ शक्तियों की पूजा की जाती है, जिनमें से सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है। मां कालरात्रि दुर्गा का सबसे भयावह और शक्तिशाली रूप है, जो अंधकार और बुराई का नाश करती हैं। उनकी पूजा से भय और संकट दूर होते हैं, लेकिन क्या देवी दुर्गा के इस रूप के कहानी-कथा के बारे में जानते हैं। अगर नहीं तो जानिए इस लेख में मां कालरात्रि की कथा।
मां दुर्गा की सातवीं शक्ति, कालरात्रि देवी, अपने तीन नेत्रों के साथ अद्भुत शक्ति का प्रतीक हैं। मां ने अपने बाएँ हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग धारण किया हुआ है। काली का स्वरूप भले ही भयंकर हो, लेकिन वे हमेशा अपने भक्तों को शुभ फल प्रदान करती हैं। इसलिए उन्हें शुभंकरी के नाम से भी जाना जाता है। कालरात्रि देवी को गुड़ का भोग, लाल वस्त्र, रातरानी के फूल और दीपों से की गई पूजा अत्यंत प्रिय है। उनकी उपासना से ब्रह्मांड की सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और असुरी शक्तियाँ भयभीत होकर दूर भाग जाती हैं। इसके अलावा दानव, राक्षस और भूत-प्रेत उनके नाम से ही भगाए जाते हैं। वे ग्रह बाधाओं, अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि के भय को दूर करती हैं। उनकी कृपा से भक्त हर प्रकार के भय और संकट से मुक्त हो जाता है।
पौरणिक कथा के अनुसार, मां कालरात्रि का जन्म तब हुआ जब दानवों का आतंक तीनों लोकों में फैल गया था। शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज जैसे राक्षसों ने देवताओं को परेशान कर रखा था। इस संकट से त्रस्त होकर सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे सहायता की गुहार लगाई। भगवान शिव ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए, अपने समीप बैठीं माता पार्वती से राक्षसों के वध का अनुरोध किया।
मां पार्वती ने भगवान शिव से आज्ञा ली और दैत्यों का संहार करने के लिए अपना रूप बदलकर मां दुर्गा का तेजस्वी अवतार लिया। यह रूप अत्यंत मनोहारी और शक्तिशाली था। देवी को देखकर सभी दानव अचंभित रह गए, लेकिन वे हार मानने वाले नहीं थे। फिर एक भीषण युद्ध शुरू हुआ।
मां दुर्गा ने पहले शुंभ और निशुंभ का वध किया। इसके बाद सबसे शक्तिशाली दानव रक्तबीज से युद्ध आरंभ हुआ। यह दानव ब्रह्मा जी से एक विशेष वरदान प्राप्त कर चुका था। वरदान के अनुसार, जब भी उसके शरीर से खून की कोई बूंद धरती पर गिरती, वहां एक और रक्तबीज उत्पन्न हो जाता। यानी जितना अधिक उसे मारा जाए, उतने ही नए रक्तबीज पैदा हो जाते। जब मां दुर्गा ने रक्तबीज पर प्रहार किया, तो उसकी रक्त बूंदों से धरती पर अनगिनत रक्तबीज पैदा हो गए।
यह देखकर देवी चिंतित हुईं और तभी उन्होंने अपने भीतर की प्रचंड शक्ति को जाग्रत किया। तभी उनके शरीर से एक अग्निस्वरूप, भयंकर और रौद्र रूप प्रकट हुआ और जो रूप प्रकारट हुआ वह था मां कालरात्रि। मां कालरात्रि ने युद्ध में प्रवेश करते ही अपनी प्रचंड शक्ति का प्रदर्शन किया। जैसे ही रक्तबीज को उन्होंने घायल किया और उसके शरीर से रक्त बहा, मां कालरात्रि ने वह रक्त पी लिया, जिससे कोई नया रक्तबीज उत्पन्न न हो सके। इस प्रकार उन्होंने अंततः रक्तबीज का संहार कर पूरे ब्रह्मांड को उस राक्षसी शक्ति से मुक्त कर दिया।
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