माँ ब्रह्मचारिणी का वाहन क्या है?
image
downloadDownload
shareShare
ShareWhatsApp

माँ ब्रह्मचारिणी का वाहन क्या है?

क्या आप जानते हैं माँ ब्रह्मचारिणी का वाहन कौन सा है और यह भक्तों के जीवन में क्या संदेश देता है? यहाँ पढ़ें पूरी जानकारी सरल शब्दों में।

माँ ब्रह्मचारिणी के वाहन के बारे में

माँ ब्रह्मचारिणी का वाहन बैल (नंदी) माना जाता है। बैल धर्म, शक्ति और सहनशीलता का प्रतीक है। जिस प्रकार बैल धैर्यपूर्वक भार उठाता है, उसी प्रकार माँ ब्रह्मचारिणी साधना और धैर्य से सिद्धि प्रदान करती हैं। उनके वाहन से संयम और तपस्या का संदेश मिलता है।

माँ ब्रह्मचारिणी कौन हैं?: जानें उनके नाम का अर्थ

नवरात्रि पर्व के दूसरे दिन की अधिष्ठात्री देवी हैं माँ ब्रह्मचारिणी, जो तप, संयम और साधना की प्रतीक मानी जाती हैं। माँ ब्रह्मचारिणी देवी सती का ही रूप हैं, जिन्होंने पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लेकर भगवान शिव को पति स्वरूप पाने के लिए कठोर तपस्या की। खुले आकाश के नीचे वर्षा, धूप और ठंड सहती हुई, उन्होंने फल, फूल और पत्तों पर जीवन निर्वाह किया। अंततः वे पत्ते तक का भी त्यागकर निराहार तप में लीन हो गईं। उनके इस अडिग संकल्प और ब्रह्मचर्य पालन के कारण उन्हें “ब्रह्मचारिणी” कहा गया।

माँ ब्रह्मचारिणी का रूप एक साध्वी का और शांतिपूर्ण है। उनके दाहिने हाथ में जपमाला और बाएं हाथ में कमण्डल है, और वे श्वेत वस्त्रों से अलंकृत हैं।

माँ ब्रह्मचारिणी का वाहन क्या है?

माँ ब्रह्मचारिणी के वाहन को लेकर विभिन्न मान्यताएँ प्रचलित हैं। आमतौर पर उन्हें सिंह पर आरूढ़ दिखाया जाता है, क्योंकि सिंह शक्ति, साहस और धर्म की रक्षा का प्रतीक माना जाता है। इस रूप में वे अपने तप और संयम के साथ-साथ शक्ति और साहस का संदेश भी देती हैं।

वहीं कई स्थानों और शास्त्रीय चित्रों में उनकी प्रतिमा बिना किसी वाहन के चलते हुए दिखाई जाती है। इसका अर्थ यह है कि तपस्विनी को अपने मार्ग पर चलने के लिए किसी बाहरी साधन की आवश्यकता नहीं होती। उनका वास्तविक वाहन उनका अटल संकल्प, कठोर तप, जप, संयम और साधना ही है।

उनके वाहन का धार्मिक और पौराणिक महत्व

माँ ब्रह्मचारिणी के सिंह पर आरूढ़ स्वरूप का अर्थ है कि तप और संयम से प्राप्त शक्ति धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश कर सकती है। सिंह जैसे शक्तिशाली और पराक्रमी जीव की सवारी करने वाली माता दुष्टों का क्षणमात्र में ही संहार कर अपने भक्तों की रक्षा करती हैं, अर्थात सिंह वीरता का प्रतीक है।

वहीं माता के बिना वाहन के स्वरूप का अर्थ है कि एक तपस्विनी को किसी वाहन या बाहरी साधनों की आवश्यकता नहीं है, बल्कि वे अपनी साधना और तप की शक्ति से ही अपने जीवन की यात्रा कर सकती हैं। इस प्रकार, माँ ब्रह्मचारिणी का हर रूप हमें यह सिखाता है कि आंतरिक शक्ति ही साधक की सबसे बड़ी पूँजी है, और भक्ति, तप व अनुशासन से ही सच्ची शक्ति प्राप्त होती है।

नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा क्यों होती है?

नवरात्रि के दूसरे दिन, नौ दुर्गा के दूसरे स्वरूप ‘माँ ब्रह्मचारिणी’ की पूजा का विधान है। ऐसा माना जाता है कि नारद भगवान के उपदेश पर पार्वती जी ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या का मार्ग चुना था।

माँ पार्वती पिछले जन्म में सती थीं, जिन्होंने अपने पिता दक्ष के अपमान से आहत होकर यज्ञ में आत्मदाह कर लिया। पुनर्जन्म के बाद वे हिमालय की पुत्री पार्वती बनीं। उनका संकल्प था कि वे इस जन्म में भी भगवान शिव को ही पति रूप में प्राप्त करेंगी।

इसी संकल्प को पूरा करने के लिए देवी पार्वती ने कठोर तपस्या आरम्भ की। वे खुले आकाश के नीचे वर्षा, धूप और शीत सब कुछ सहते हुए, केवल फल-फूल और पत्तियों पर निर्भर रहीं। लंबे समय तक उन्होंने केवल बिल्वपत्र ही खाए। अंततः उन्होंने पत्तियाँ भी त्याग दीं और निराहार तपस्या करने लगीं। इसी कारण उन्हें “अपर्णा” नाम से भी जाना जाता है।

देवी पार्वती की यह कठिन साधना देखकर समस्त देवता भी स्तब्ध रह गए, और उनके इस तपस्विनी स्वरूप का नाम “ब्रह्मचारिणी” पड़ा । माँ ब्रह्मचारिणी की तपस्या इतनी कठिन थी कि स्वयं भगवान शिव भी उनकी परीक्षा लेने आए। उन्होंने साधु का वेश धारण किया और पार्वती जी को समझाने लगे कि शिव तो विरक्त योगी हैं, उनका कोई गृहस्थ जीवन नहीं है, वे आपके योग्य नहीं हैं।

किन्तु माँ ब्रह्मचारिणी अपने संकल्प से तनिक भी नहीं डगमगाईं। उन्होंने तपस्या को ही अपना पथ माना और अविचल भाव से भगवान शिव का स्मरण करती रहीं। उनकी अटूट निष्ठा और धैर्य को देखकर अंततः भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें पत्नी स्वरूप स्वीकार किया। इस प्रकार माँ ब्रह्मचारिणी की तपस्या ने शिव और शक्ति को पुनः एक कर दिया।

ये थी नवरात्रि के दूसरे दिन पूजी जाने वाले देवी ‘माँ ब्रह्मचारिणी’ के स्वरूप के बारे में विशेष जानकारी। देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना से साधक को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। उनकी उपासना से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन के कठिन संघर्षों में भी साधक अपने कर्तव्य से कभी विचलित नहीं होता।

divider
Published by Sri Mandir·September 26, 2025

Did you like this article?

आपके लिए लोकप्रिय लेख

और पढ़ेंright_arrow
Card Image

माँ चंद्रघंटा को क्या भोग लगाना चाहिए?

नवरात्रि के तीसरे दिन पूजित माँ चंद्रघंटा को भोग अर्पित करने का विशेष महत्व है। जानिए माँ चंद्रघंटा को कौन सा भोग प्रिय है, उसका महत्व और भक्तों को मिलने वाले लाभ।

right_arrow
Card Image

ब्रह्मचारिणी किसका प्रतीक हैं?

नवरात्रि के दूसरे दिन पूजित माँ ब्रह्मचारिणी तप, संयम और आत्मबल की प्रतीक मानी जाती हैं। जानिए ब्रह्मचारिणी माता का प्रतीकात्मक महत्व और उनकी उपासना से मिलने वाले लाभ।

right_arrow
Card Image

ब्रह्मचारिणी माता का पसंदीदा रंग कौन सा है?

नवरात्रि के दूसरे दिन पूजित ब्रह्मचारिणी माता का प्रिय रंग बहुत खास माना जाता है। जानिए ब्रह्मचारिणी माता का पसंदीदा रंग कौन सा है, उसका महत्व और पूजा में इसके प्रयोग का फल।

right_arrow
srimandir-logo

श्री मंदिर ने श्रध्दालुओ, पंडितों, और मंदिरों को जोड़कर भारत में धार्मिक सेवाओं को लोगों तक पहुँचाया है। 50 से अधिक प्रसिद्ध मंदिरों के साथ साझेदारी करके, हम विशेषज्ञ पंडितों द्वारा की गई विशेष पूजा और चढ़ावा सेवाएँ प्रदान करते हैं और पूर्ण की गई पूजा विधि का वीडियो शेयर करते हैं।

हमारा पता

फर्स्टप्रिंसिपल ऐप्सफॉरभारत प्रा. लि. 435, 1st फ्लोर 17वीं क्रॉस, 19वीं मेन रोड, एक्सिस बैंक के ऊपर, सेक्टर 4, एचएसआर लेआउट, बेंगलुरु, कर्नाटका 560102
YoutubeInstagramLinkedinWhatsappTwitterFacebook