तुलसी मंत्र

तुलसी मंत्र

इस मंत्र से प्रसन्न होते है त्रिदेव


तुलसी मंत्र (Tulsi Mantra)

हिंदू धर्म में तुलसी को मां का दर्जा दिया जाता है। तुलसी के पौधे को लक्ष्मी जी का प्रतीक माना गया है। घरों में जितने भी छोटे-बड़े धार्मिक आयोजन होते हैं, उस दौरान तुलसी के पौधे की विशेष रूप से पूजा की जाती है। तुलसी जी का पौधा बड़ी ही आसानी से घरों में पाया जाता है। बहु गुणकारी तुलसी औषधीय गुणों से परिपूर्ण हैं। पौराणिक कथाओं की माने तो भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय है।

पौरणिक मान्यता के अनुसार घर के आँगन में तुलसी का पौधा जरूर लगाना चाहिए। तुलसी के पौधे की नियमित रूप से पूजा करने से घर में खुशहाली आती है। शाम को तुलसी के आगे दीपक जलाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर से दरिद्रता और दुर्भाग्य दूर भाग जाता है। तुलसी माता की पूजा करते समय तुलसी मंत्र का जाप करना बहुत शुभ और कल्याणकारी बताया गया है। तुलसी मंत्र का जाप करने से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों ही जल्दी प्रसन्न होते हैं।

तुलसी मंत्र जाप का महत्व (Importance of Tulsi Mantra)

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार नियमित रूप से तुलसी मंत्र का जाप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यता है कि घर में जहां तुलसी का पौधा लगा होता है, वहां त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव का निवास होता है। तुलसी मंत्र का जाप करने से त्रिदेव प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। तुलसी मंत्र के जाप से घर में नकारात्मकता दूर होती है। तुलसी के पौधे को छूकर तुलसी मंत्र का जाप करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।

तुलसी माता के शक्तिशाली 5 मंत्र (5 Powerful Tulsi Mantra)

1. महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी। आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते..

तुलसी जी के इस मंत्र का जाप तुलसी के पौधे को छूते हुए करना चाहिए। इससे जातक की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

2. तुलसी गायत्री मंत्र है

ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।।

विष्णु प्रिय तुलसी मैं आपको नमन करता हूं। आप मुझे उच्च बुद्धि दो। हे वृंदा आप मेरे मन को रोशन करो।

3. वृंदा देवी-अष्टक: गाङ्गेयचाम्पेयतडिद्विनिन्दिरोचिःप्रवाहस्नपितात्मवृन्दे । बन्धूकबन्धुद्युतिदिव्यवासोवृन्दे नुमस्ते चरणारविन्दम् ॥ १॥

अर्थ - प्रिय वृंदा देवी, मैं आपके चरण कमलों को श्रद्धा से नमन करता हूं। आपके नाम पर मोती की चमक है और बिंबा फल की तरह होंठों पर प्यारी सी मुस्कान है, यह आपके चेहरे की चमक को रोशन करते हैं। आपने चमकील हीरे के साथ जो आभूषण धारण किए हैं, वे आपकी चमक को और बढ़ाते हैं।

4. समस्तवैकुण्ठशिरोमणौ श्रीकृष्णस्य वृन्दावनधन्यधामिन् । दत्ताधिकारे वृषभानुपुत्र्या वृन्दे नुमस्ते चरणारविन्दम् ॥ ३॥

अर्थ - हे वृंदा देवी, मैं आपके चरण कमलों को श्रद्धा से प्रणाम करता हूं। राजा वृषभानु की बेटी श्रीमती राधारानी ने आपको भगवान कृष्ण के धनी और भाग्यशाली घर वृंदावन का शासक नियुक्त किया है, जो सभी वैकुंठ ग्रहों का मुकुट रत्न है।

5. ॐ सुप्रभाय नमः अर्थ – हे माता मैं आपको शीश झुकाकर प्रणाम करता हूँ, मुझे आशीर्वाद दें।

तुलसी मंत्र का जाप कैसे करें (How to chant Tulsi Mantra)

  1. तुलसी मंत्र का जाप करने से पहले स्नान करके साफ कपड़े पहने और ईष्टदेव की पूजा करें।
  2. इसके बाद मां तुलसी को प्रणाम करें, और उन्हें शुद्ध जल अर्पित करें।
  3. फिर मां तुलसी के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं और धूप दिखाएं।
  4. इसके बाद मां तुलसी को श्रृंगार का समान चढ़ाएं और सिन्दूर-हल्दी अर्पित करें।
  5. फिर मां तुलसी की आराधना करते हुए 7 परिक्रमा करें।
  6. इसके बाद तुलसी मंत्र का जाप शुरू करें।

तुलसी मंत्र जाप के लाभ (Benefits of chanting Tulsi Mantra)

  1. तुलसी मंत्र का नियमित जाप करने से अप्रिय सपने नहीं आते और ये मंत्र चिंता, दुर्घटना से भी रक्षा करते हैं।
  2. तुलसी मंत्र का नियमित जाप करने से जातक की काले जादू, बुरी नजर और अन्य प्रकार की नकारात्मकता शक्तियों से रक्षा होती है।
  3. तुलसी मंत्र का नियमित जाप करने से व्यक्ति का मन, शरीर और आत्मा शुद्ध रहती है।
  4. तुलसी मंत्र का नियमित जाप करने से जातक सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से दूर रहता है।
  5. तुलसी मंत्रों का जाप करने से जातक को स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से छुटकारा मिलता है।

तुलसी मंत्र जाप में किन बातों का रखें ध्यान (Keep In Mind Before Chanting Tulsi Mantra)

  1. तुलसी मंत्र का जाप करने से पहले ईष्टदेव की पूजा जरूर करनी चाहिए।
  2. तुलसी मंत्र का जाप करते समय मंत्रों का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए।
  3. तुलसी मंत्र का जाप करते समय तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए।
  4. तुलसी मंत्र का जाप करते समय 7 बार परिक्रमा लगानी चाहिए।
  5. तुलसी मंत्र का जाप करते समय तामसिक भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।

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