नाग पंचमी के दिन इन मंत्रों का जाप करने से मिलती है नाग देवता की कृपा। जानिए नाग पंचमी में बोले जाने वाले शक्तिशाली मंत्र और उनकी महिमा
नाग पंचमी के दिन बोले जाने वाले मंत्र, नाग देवताओं की पूजा और उनके सम्मान में बोले जाते हैं। इन मंत्रों का जाप करने से सर्प दोष से राहत मिलती है, संतान से जुड़ी परेशानियाँ दूर होती हैं और डर से रक्षा होती है।
नाग पंचमी के अवसर पर जो मंत्र बोले जाते हैं, वे विशेष रूप से सर्पों की पूजा और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। हिन्दू परंपरा में यह दिन नाग देवताओं को समर्पित होता है और इसे आस्था, श्रद्धा और धार्मिक भावना से मनाया जाता है। इन पावन मंत्रों का जाप करते हुए नागों की विधिपूर्वक पूजा की जाती है।
ॐ श्री भीलट देवाय नम:।।
ॐ भुजंगेशाय विद्महे, सर्पराजाय धीमहि, तन्नो नाग: प्रचोदयात्।। ॐ नवकुलाय विद्महे, विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प प्रचोदयात्।।
अर्थ:
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले। ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।। ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:। ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।
अर्थ:
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्। शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।। एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्। सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात: काले विशेषत:। तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
अर्थ:
1. स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें: जाप करने से पहले शरीर की सफाई और साफ कपड़े पहनना आवश्यक होता है ताकि मन भी शुद्ध बना रहे।
2. एक शांत और साफ जगह चुनें: ऐसा स्थान चुनें जहाँ ध्यान आसानी से केंद्रित हो सके, जैसे घर का पूजा स्थान या कोई एकांत कोना।
3. आसन का उपयोग करें: जमीन पर सीधे न बैठें। कुश, ऊन या सूती आसन पर बैठकर जाप करना श्रेष्ठ माना जाता है।
4. दिशा का ध्यान रखें: उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें, क्योंकि ये दिशाएँ सकारात्मक ऊर्जा देने वाली मानी जाती हैं।
5. मंत्र उच्चारण साफ और सही हो: मंत्र को जल्दी न बोलें। उसे श्रद्धा और एकाग्रता के साथ स्पष्ट रूप से दोहराएं।
6. जाप के लिए माला का प्रयोग करें: तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या क्रिस्टल जैसी पवित्र मालाओं का उपयोग करें। प्रत्येक मंत्र 108 बार जपें।
7. सुमेरु (माला की मुख्य गाँठ) पर मंत्र न जपें: जाप की शुरुआत सुमेरु के एक ओर से करें और पूरा होने पर माला पलट लें, लेकिन सुमेरु को पार न करें।
8. धीरे या मौन रूप से जाप करें: मंत्रों का उच्चारण धीमी आवाज़ में या मन ही मन करना अधिक फलदायी होता है।
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