क्या आप अपने जीवन में दैवीय सुरक्षा चाहते हैं? नारायण कवच भगवान विष्णु की कृपा से रक्षा, सुख और शांति प्रदान करता है। जानें इसकी पाठ विधि और चमत्कारी लाभ।
नारायण कवच एक दिव्य रक्षा कवच है जो भगवान विष्णु के परम तेज से ओतप्रोत है। यह कवच रोग, शत्रु, भय और दुष्ट शक्तियों से रक्षा करता है। चलिए इस आर्टिकल में हम जानते हैं नारायण कवच की उत्पत्ति, महिमा, शाब्दिक अर्थ, पाठ विधि और उससे प्राप्त होने वाले चमत्कारी लाभों के बारे में।
नारायण कवच भगवान विष्णु का एक शक्तिशाली रक्षण कवच है, जो विष्णु पुराण और श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित है। यह कवच व्यक्ति को नकारात्मक शक्तियों, शत्रुओं, भय, रोग, दुर्घटनाओं और अनिष्ट शक्तियों से बचाने में अत्यंत प्रभावी है। इसे पढ़ने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि, आत्मबल और विजय मिलती है।
यया गुप्तः सहस्राक्षः सवाहान्रिपुसैनिकान् ।
क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम् ॥ १॥
भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम् ।
यथाऽऽततायिनः शत्रून् येन गुप्तोऽजयन्मृधे ॥ २॥
श्रीशुक उवाच ।
वृतः पुरोहितस्त्वाष्ट्रो महेन्द्रायानुपृच्छते ।
नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः शृणु ॥ ३॥
विश्वरूप उवाच ।
धौताण्घ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदण्मुखः ।
कृतस्वाण्गकरन्यासो मन्त्राभ्यां वाग्यतः शुचिः ॥ ४॥
नारायणमयं वर्म सन्नह्येद्भय आगते ।
पादयोर्जानुनोरूर्वोरुदरे हृद्यथोरसि ॥ ५॥
मुखे शिरस्यानुपूर्व्यादोंकारादीनि विन्यसेत् ।
ॐ नमो नारायणायेति विपर्ययमथापि वा ॥ ६॥
करन्यासं ततः कुर्याद्द्वादशाक्षरविद्यया ।
प्रणवादियकारान्तमण्गुल्यण्गुष्ठपर्वसु ॥ ७॥
न्यसेद्धृदय ॐकारं विकारमनु मूर्धनि ।
षकारं तु भ्रुवोर्मध्ये णकारं शिखया दिशेत् ॥ ८॥
वेकारं नेत्रयोर्युJण्ज्यान्नकारं सर्वसन्धिषु ।
मकारमस्त्रमुद्दिश्य मन्त्रमूर्तिर्भवेद्बुधः ॥ ९॥
सविसर्गं फडन्तं तत् सर्वदिक्षु विनिर्दिशेत् ।
ॐ विष्णवे नम इति ॥ १०॥
आत्मानं परमं ध्यायेद्ध्येयं षट्शक्तिभिर्युतम् ।
विद्यातेजस्तपोमूर्तिमिमं मन्त्रमुदाहरेत् ॥ ११॥
ॐ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां
न्यस्ताण्घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे ।
दरारिचर्मासिगदेषुचाप-
पाशान्दधानोऽष्टगुणोऽष्टबाहुः ॥ १२॥
जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्ति-
र्यादोगणेभ्यो वरुणस्य पाशात् ।
स्थलेषु मायावटुवामनोऽव्यात्
त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः ॥ १३॥
दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः
पायान्नृसिंहोऽसुरयूथपारिः ।
विमुJण्चतो यस्य महाट्टहासं
दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः ॥ १४॥
रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः
स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः ।
रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे
सलक्ष्मणोऽव्याद्भरताग्रजोऽस्मान् ॥ १५॥
मामुग्रधर्मादखिलात्प्रमादा-
न्नारायणः पातु नरश्च हासात् ।
दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः
पायाद्गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ॥ १६॥
सनत्कुमारोऽवतु कामदेवा-
द्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात् ।
देवर्षिवर्यः पुरुषार्चनान्तरात्
कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् ॥ १७॥
धन्वन्तरिर्भगवान्पात्वपथ्या-
द्द्वन्द्वाद्भयादृषभो निर्जितात्मा ।
यज्ञश्च लोकादवताJण्जनान्ता-
द्बलो गणात्क्रोधवशादहीन्द्रः ॥ १८॥
द्वैपायनो भगवानप्रबोधा-
द्बुद्धस्तु पाखण्डगणप्रमादात् ।
कल्किः कलेः कालमलात्प्रपातु
धर्मावनायोरुकृतावतारः ॥ १९॥
मां केशवो गदया प्रातरव्या-
द्गोविन्द आसण्गवमात्तवेणुः ।
नारायणः प्राह्ण उदात्तशक्ति-
र्मध्यन्दिने विष्णुररीन्द्रपाणिः ॥ २०॥
देवोऽपराह्णे मधुहोग्रधन्वा
सायं त्रिधामावतु माधवो माम् ।
दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे
निशीथ एकोऽवतु पद्मनाभः ॥ २१॥
श्रीवत्सधामापररात्र ईशः
प्रत्युष ईशोऽसिधरो जनार्दनः ।
दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते
विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः ॥ २२॥
चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि
भ्रमत्समन्ताद्भगवत्प्रयुक्तम् ।
दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमाशु
कक्षं यथा वातसखो हुताशः ॥ २३॥
गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिण्गे
निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि ।
कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षो-
भूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन् ॥ २४॥
त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृ-
पिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन् ।
दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो
भीमस्वनोऽरेहृ।र्दयानि कम्पयन् ॥ २५॥
त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्य-
मीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि ।
चक्षूंषि चर्मJण्छतचन्द्र छादय
द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम् ॥ २६॥
यन्नो भयं ग्रहेभ्योऽभूत्केतुभ्यो नृभ्य एव च ।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य वा ॥ २७ ॥
सर्वाण्येतानि भगवन्नामरूपास्त्रकीर्तनात् ।
प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयःप्रतीपकाः ॥ २८॥
गरुडो भगवान् स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः ।
रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः ॥ २९ ॥
सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः ।
बुद्धीन्द्रियमनःप्राणान्पान्तु पार्षदभूषणाः ॥ ३०॥
यथा हि भगवानेव वस्तुतः सदसच्च यत् ।
सत्येनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपद्रवाः ॥ ३१॥
यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम् ।
भूषणायुधलिण्गाख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया ॥ ३२॥
तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः ।
पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्र सर्वगः ॥ ३३॥
विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः समन्ता-
दन्तर्बहिर्भगवान्नारसिंहः ।
प्रहापयं।cलोकभयं स्वनेन
स्वतेजसा ग्रस्तसमस्ततेजाः ॥ ३४॥
मघवन्निदमाख्यातं वर्म नारायणात्मकम् ।
विजेष्यस्यJण्जसा येन दंशितोऽसुरयूथपान् ॥ ३५॥
एतद्धारयमाणस्तु यं यं पश्यति चक्षुषा ।
पदा वा संस्पृशेत्सद्यः साध्वसात्स विमुच्यते ॥ ३६॥
न कुतश्चिद्भयं तस्य विद्यां धारयतो भवेत् ।
राजदस्युग्रहादिभ्यो व्याघ्रादिभ्यश्च कर्हिचित् ॥ ३७॥
इमां विद्यां पुरा कश्चित्कौशिको धारयन् द्विजः ।
योगधारणया स्वाण्गं जहौ स मरुधन्वनि ॥ ३८॥
तस्योपरि विमानेन गन्धर्वपतिरेकदा ।
ययौ चित्ररथः स्त्रीभिर्वृतो यत्र द्विजक्षयः ॥ ३९ ॥
गगनान्न्यपतत्सद्यः सविमानो ह्यवाक्षिराः ।
स वालखिल्यवचनादस्थीन्यादाय विस्मितः ।
प्रास्य प्राचीसरस्वत्यां स्नात्वा धाम स्वमन्वगात् ॥ ४०॥
श्रीशुक उवाच ।
य इदं शृणुयात्काले यो धारयति चादृतः ।
तं नमस्यन्ति भूतानि मुच्यते सर्वतो भयात् ॥ ४१॥
एतां विद्यामधिगतो विश्वरूपाच्छतक्रतुः ।
त्रैलोक्यलक्ष्मीं बुभुजे विनिर्जित्य मृधेऽसुरान् ॥ ४२॥
॥ इति श्रीमद्भागवतमहापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
षष्ठस्कन्धे नारायणवर्मकथनं नामाष्टमोऽध्यायः ॥
यह कवच व्यक्ति को शत्रुओं, ईर्ष्यालु लोगों और बुरी नजर से बचाता है। यदि कोई व्यक्ति काले जादू, टोटकों या नकारात्मक शक्तियों से परेशान है, तो यह कवच उसे तुरंत राहत देता है।
इसे पढ़ने से अकारण भय, चिंता और तनाव समाप्त होते हैं। यदि किसी को रात्रि में डर लगता है या बुरे सपने आते हैं, तो इस कवच का पाठ करने से सुरक्षा मिलती है।
यह कवच शारीरिक और मानसिक रोगों से बचाता है और रोगी को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, स्नायु रोग और मानसिक तनाव में विशेष रूप से लाभकारी है।
इस कवच के नियमित पाठ से व्यवसाय और नौकरी में उन्नति होती है। अचानक धन की हानि, कर्ज और आर्थिक तंगी से मुक्ति मिलती है।
इसे पढ़ने से व्यक्ति यात्रा के दौरान दुर्घटनाओं और आकस्मिक संकटों से बचा रहता है। जो लोग यात्रा, वाहन या जोखिम भरे व्यवसाय में कार्यरत हैं, उनके लिए यह कवच अत्यंत लाभकारी है।
यह कवच भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का उत्तम साधन है। यह साधकों को आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर करता है।
घर में कलह, विवाद, अशांति और पारिवारिक परेशानियों को दूर करता है। यदि घर में कोई ग्रह दोष (विशेषकर राहु, केतु और शनि दोष) है, तो इस कवच का पाठ करने से लाभ मिलता है।
यह कवच विद्यार्थियों और विद्वानों के लिए अत्यंत उपयोगी है। इसके पाठ से याददाश्त, एकाग्रता और निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है।
यह कवच भगवान विष्णु के परमधाम वैकुंठ धाम की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। जिनकी कुंडली में मोक्ष योग बना हो, वे इस कवच का नित्य पाठ करें।
इस कवच के पाठ से पिछले जन्मों और वर्तमान जीवन के पापों का नाश होता है। व्यक्ति के पुण्य कर्मों में वृद्धि होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
1. पाठ करने का सही समय
गुरुवार या एकादशी, पूर्णिमा और विष्णु से जुड़े विशेष पर्वों पर पाठ करना श्रेष्ठ होता है।
ब्राह्म मुहूर्त (सुबह 4:00 - 6:00 बजे) या संध्या समय (6:00 - 8:00 बजे) पाठ करने से अधिक लाभ होता है।
किसी विशेष संकट में परेशानी के समय 21, 51 या 108 दिनों तक इस कवच का नियमित पाठ करने से भी काफी फायदा होता है।
पाठ करने के लिए शांत और स्वच्छ स्थान चुनें।
घर के पूजा स्थल में या विष्णु मंदिर में पाठ करना अधिक शुभ होता है।
पाठ करते समय उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
विष्णु भगवान की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक और धूप जलाएं।
पीले फूल, चंदन, तुलसी पत्र और पीताम्बर वस्त्र अर्पित करें।
भोग के लिए खीर, पंचामृत, या गुड़-चना अर्पित करें।
पाठ से पहले गायत्री मंत्र और "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें।
हाथ में जल लेकर संकल्प लें : "ॐ विष्णवे नमः! मैं अपने जीवन की रक्षा, समृद्धि और आत्मबल प्राप्त करने के लिए श्री नारायण कवच का पाठ कर रहा/रही हूँ। कृपया मुझे आशीर्वाद दें।"
इसके बाद जल को जमीन पर छोड़ दें और पाठ प्रारंभ करें।
सबसे पहले गणपति वंदना करें – "ॐ गं गणपतये नमः" (3 बार)
उसके बाद गुरु वंदना करें – "गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः"
अब नारायण कवच का संपूर्ण पाठ करें।
पाठ के बाद विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु जी की स्तुति करें।
आखिर में भगवान विष्णु की आरती करें।
तुलसी जल चढ़ाएं और तुलसी पत्र ग्रहण करें।
पीले रंग की मिठाई या फल प्रसाद के रूप में ग्रहण करें और परिवार में बांटें।
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का 108 बार जप करें।
भगवान विष्णु से रक्षा, सुख-समृद्धि और शांति की प्रार्थना करें।
विष्णु मंदिर में दान करें, जैसे कि तुलसी माला, चंदन, पीले वस्त्र या अन्नदान।
गुरुवार के दिन व्रत रखकर यह पाठ करने से भगवान विष्णु की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
मांसाहार, नशा और क्रोध से बचें।
ध्यान रहे पाठ के दौरान शुद्धता का भी विशेष ध्यान रखें।
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