महाकाली कवच
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महाकाली कवच

क्या आप जीवन की नकारात्मक शक्तियों और भय से मुक्ति चाहते हैं? महाकाली कवच देवी की कृपा से आपकी रक्षा करता है और अद्भुत आत्मबल प्रदान करता है। जानें पाठ विधि और लाभ।

महाकाली कवच के बारे में

महाकाली शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं, जो राक्षसों और अधर्म का नाश करने के लिए जानी जाती हैं। उनका कवच एक सुरक्षा कवच की भांति कार्य करता है और जीवन में आने वाली नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा प्रदान करता है। जो साधक नियमित रूप से महाकाली कवच का पाठ करते हैं, वे न केवल भौतिक बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त करते हैं। तो चलिए जानते हैं महाकाली कवच श्लोक, पाठ करने का तरीका और उसके लाभ के बारे में।

महाकाली कवच क्या है?

महाकाली कवच देवी महाकाली का अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसका नियमित रूप से पाठ करने से व्यक्ति को नकारात्मक शक्तियों से रक्षा मिलती है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है। यह कवच महाकाली के अनुग्रह को प्राप्त करने का माध्यम है और साधकों को भय, शत्रुओं, संकटों एवं अकाल मृत्यु से बचाने में सहायक सिद्ध होता है। इस लेख में हम महाकाली कवच के श्लोक, इसके लाभ एवं पाठ विधि के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

महाकाली कवच श्लोक

काली पूजा श्रुता नाथ भावाश्च विविधाः प्रभो ।

इदानीं श्रोतु मिच्छामि कवचं पूर्व सूचितम् ॥

त्वमेव शरणं नाथ त्राहि माम् दुःख संकटात् ।

सर्व दुःख प्रशमनं सर्व पाप प्रणाशनम् ॥

सर्व सिद्धि प्रदं पुण्यं कवचं परमाद्भुतम् ।

अतो वै श्रोतुमिच्छामि वद मे करुणानिधे ॥

रहस्यं श्रृणु वक्ष्यामि भैरवि प्राण वल्लभे ।

श्री जगन्मङ्गलं नाम कवचं मंत्र विग्रहम् ॥

पाठयित्वा धारयित्वा त्रौलोक्यं मोहयेत्क्षणात् ।

नारायणोऽपि यद्धत्वा नारी भूत्वा महेश्वरम् ॥

योगिनं क्षोभमनयत् यद्धृत्वा च रघूद्वहः ।

वरदीप्तां जघानैव रावणादि निशाचरान् ॥

यस्य प्रसादादीशोऽपि त्रैलोक्य विजयी प्रभुः ।

धनाधिपः कुबेरोऽपि सुरेशोऽभूच्छचीपतिः ।

एवं च सकला देवाः सर्वसिद्धिश्वराः प्रिये ॥

ॐ श्री जगन्मङ्गलस्याय कवचस्य ऋषिः शिवः ।

छ्न्दोऽनुष्टुप् देवता च कालिका दक्षिणेरिता ॥

जगतां मोहने दुष्ट विजये भुक्तिमुक्तिषु ।

यो विदाकर्षणे चैव विनियोगः प्रकीर्तितः ॥

|| अथ कवचम् ||

शिरो मे कालिकां पातु क्रींकारैकाक्षरीपर ।

क्रीं क्रीं क्रीं मे ललाटं च कालिका खड्‌गधारिणी ॥

हूं हूं पातु नेत्रयुग्मं ह्नीं ह्नीं पातु श्रुति द्वयम् ।

दक्षिणे कालिके पातु घ्राणयुग्मं महेश्वरि ॥

क्रीं क्रीं क्रीं रसनां पातु हूं हूं पातु कपोलकम् ।

वदनं सकलं पातु ह्णीं ह्नीं स्वाहा स्वरूपिणी ॥

द्वाविंशत्यक्षरी स्कन्धौ महाविद्यासुखप्रदा ।

खड्‌गमुण्डधरा काली सर्वाङ्गभितोऽवतु ॥

क्रीं हूं ह्नीं त्र्यक्षरी पातु चामुण्डा ह्रदयं मम ।

ऐं हूं ऊं ऐं स्तन द्वन्द्वं ह्नीं फट् स्वाहा ककुत्स्थलम् ॥

अष्टाक्षरी महाविद्या भुजौ पातु सकर्तुका ।

क्रीं क्रीं हूं हूं ह्नीं ह्नीं पातु करौ षडक्षरी मम ॥

क्रीं नाभिं मध्यदेशं च दक्षिणे कालिकेऽवतु ।

क्रीं स्वाहा पातु पृष्ठं च कालिका सा दशाक्षरी ॥

क्रीं मे गुह्नं सदा पातु कालिकायै नमस्ततः ।

सप्ताक्षरी महाविद्या सर्वतंत्रेषु गोपिता ॥

ह्नीं ह्नीं दक्षिणे कालिके हूं हूं पातु कटिद्वयम् ।

काली दशाक्षरी विद्या स्वाहान्ता चोरुयुग्मकम् ॥

ॐ ह्नीं क्रींमे स्वाहा पातु जानुनी कालिका सदा ।

काली ह्रन्नामविधेयं चतुवर्ग फलप्रदा ॥

क्रीं ह्नीं ह्नीं पातु सा गुल्फं दक्षिणे कालिकेऽवतु ।

क्रीं हूं ह्नीं स्वाहा पदं पातु चतुर्दशाक्षरी मम ॥

खड्‌गमुण्डधरा काली वरदाभयधारिणी ।

विद्याभिः सकलाभिः सा सर्वाङ्गमभितोऽवतु ॥

काली कपालिनी कुल्ला कुरुकुल्ला विरोधिनी ।

विपचित्ता तथोग्रोग्रप्रभा दीप्ता घनत्विषः ॥

नीला घना वलाका च मात्रा मुद्रा मिता च माम् ।

एताः सर्वाः खड्‌गधरा मुण्डमाला विभूषणाः ॥

रक्षन्तु मां दिग्निदिक्षु ब्राह्मी नारायणी तथा ।

माहेश्वरी च चामुण्डा कौमारी चापराजिता ॥

वाराही नारसिंही च सर्वाश्रयऽति भूषणाः ।

रक्षन्तु स्वायुधेर्दिक्षुः दशकं मां यथा तथा ॥

इति ते कथित दिव्य कवचं परमाद्भुतम् ।

श्री जगन्मङ्गलं नाम महामंत्रौघ विग्रहम् ॥

त्रैलोक्याकर्षणं ब्रह्मकवचं मन्मुखोदितम् ।

गुरु पूजां विधायाथ विधिवत्प्रपठेत्ततः ॥

कवचं त्रिःसकृद्वापि यावज्ज्ञानं च वा पुनः ।

एतच्छतार्धमावृत्य त्रैलोक्य विजयी भवेत् ॥

त्रैलोक्यं क्षोभयत्येव कवचस्य प्रसादतः ।

महाकविर्भवेन्मासात् सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ॥

पुष्पाञ्जलीन् कालिका यै मुलेनैव पठेत्सकृत् ।

शतवर्ष सहस्त्राणाम पूजायाः फलमाप्नुयात् ॥

भूर्जे विलिखितं चैतत् स्वर्णस्थं धारयेद्यदि ।

शिखायां दक्षिणे बाहौ कण्ठे वा धारणाद् बुधः ॥

त्रैलोक्यं मोहयेत्क्रोधात् त्रैलोक्यं चूर्णयेत्क्षणात् ।

पुत्रवान् धनवान् श्रीमान् नानाविद्या निधिर्भवेत् ॥

ब्रह्मास्त्रादीनि शस्त्राणि तद् गात्र स्पर्शवात्ततः ।

नाशमायान्ति सर्वत्र कवचस्यास्य कीर्तनात् ॥

मृतवत्सा च या नारी वन्ध्या वा मृतपुत्रिणी ।

कण्ठे वा वामबाहौ वा कवचस्यास्य धारणात् ॥

वह्वपत्या जीववत्सा भवत्येव न संशयः ।

न देयं परशिष्येभ्यो ह्यभक्तेभ्यो विशेषतः ॥

शिष्येभ्यो भक्तियुक्तेभ्यो ह्यन्यथा मृत्युमाप्नुयात् ।

स्पर्शामुद्‌धूय कमला वाग्देवी मन्दिरे मुखे ।

पौत्रान्तं स्थैर्यमास्थाय निवसत्येव निश्चितम् ॥

इदं कवचं न ज्ञात्वा यो जपेद्दक्षकालिकाम् ।

शतलक्षं प्रजप्त्वापि तस्य विद्या न सिद्धयति ।

शस्त्रघातमाप्नोति सोचिरान्मृत्युमाप्नुयात् ॥

इन श्लोकों का नियमित रूप से पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में अद्भुत परिवर्तन देखने को मिलते हैं।

महाकाली कवच का पाठ करने के लाभ

1. शत्रु नाश और आत्मरक्षा

महाकाली कवच का पाठ करने से व्यक्ति को शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है। देवी महाकाली स्वयं साधक की रक्षा करती हैं और उसे किसी भी बुरी शक्ति, जादू-टोना या तांत्रिक प्रभाव से बचाती हैं।

2. भय, तनाव और नकारात्मकता से मुक्ति

महाकाली का आश्रय लेने से साधक को मानसिक शांति मिलती है। जो लोग भय, तनाव, डिप्रेशन या अनिद्रा से ग्रस्त हैं, उनके लिए यह कवच अत्यंत लाभकारी है।

3. व्यवसाय एवं आर्थिक उन्नति

व्यवसाय या नौकरी में बार-बार असफलता का सामना करने वालों को महाकाली कवच का नित्य पाठ करना चाहिए। यह बाधाओं को दूर करता है और आर्थिक समृद्धि दिलाने में मदद करता है।

4. तंत्र-मंत्र से सुरक्षा 

महाकाली कवच का पाठ करने से किसी भी प्रकार के तांत्रिक प्रहार, काले जादू, नजर दोष एवं भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है।

5. आत्मबल एवं आध्यात्मिक उन्नति 

यह कवच साधक को आत्मबल, साहस और दृढ़ निश्चय प्रदान करता है। आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी इसका पाठ अत्यंत उपयोगी माना जाता है।

महाकाली कवच पाठ विधि

1. पाठ के लिए आवश्यक सामग्री

  • लाल वस्त्र पहनें

  • देवी महाकाली की प्रतिमा या चित्र

  • लाल पुष्प एवं दीपक

  • काले तिल एवं सरसों का तेल

  • काली हल्दी एवं नारियल

2. पाठ करने की विधि

  1. प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

  2. घर के पूजन स्थल पर या किसी मंदिर में पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।

  3. महाकाली का ध्यान करें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें: "ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हुम् फट् स्वाहा"

  4. इसके बाद महाकाली कवच का पाठ करें।

  5. पाठ समाप्त होने के बाद देवी को नारियल एवं काले तिल अर्पित करें और अपनी मनोकामना प्रकट करें।

विशेष सावधानियाँ

  • पाठ हमेशा शुद्ध उच्चारण के साथ करें।

  • माहवारी के दौरान स्त्रियों को इसका पाठ नहीं करना चाहिए।

  • पाठ के समय शुद्ध और सात्त्विक भोजन ग्रहण करें।

  • यदि किसी को पाठ करने में कठिनाई हो तो किसी अनुभवी व्यक्ति से मार्गदर्शन लें।

महाकाली कवच का पाठ शत्रु नाश, भय मुक्त जीवन, आर्थिक उन्नति और आत्मरक्षा के लिए किया जाता है। जो साधक नियमपूर्वक इस कवच का पाठ करते हैं, उन्हें देवी महाकाली की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में आने वाली बाधाएँ स्वतः ही दूर हो जाती हैं। यदि आप भी अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और महाकाली की कृपा चाहते हैं, तो महाकाली कवच का नित्य पाठ करें और इसके चमत्कारी प्रभावों का अनुभव करें।

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Published by Sri Mandir·April 10, 2025

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