क्या आप जानते हैं कि कृष्ण ब्रह्माण्ड कवच के पाठ से साधक को ब्रह्मांडीय शक्तियों की कृपा मिलती है? जानें इसकी पाठ विधि और दिव्य लाभ।
कृष्ण ब्रह्माण्ड कवच एक अद्भुत दिव्य कवच है, जो भगवान श्रीकृष्ण की अपार शक्ति से रक्षित करता है। इसका पाठ साधक को नकारात्मक शक्तियों से बचाता है और जीवन में अपार सुख, शांति और समृद्धि लाता है। श्रीकृष्ण की कृपा से साधक अजेय बनता है।
।। ब्रह्मोवाच ।।
राधाकान्त महाभाग ! कवचं यत् प्रकाशितं।
ब्रह्माण्ड-पावनं नाम, कृपया कथय प्रभो।। 1
मां महेशं च धर्म च, भक्तं च भक्त-वत्सल।
त्वत्-प्रसादेन पुत्रेभ्यो, दास्यामि भक्ति-संयुतः।। 2
ब्रह्माजी बोले - हे महाभाग! राधा-वल्लभ! प्रभो! 'ब्रह्माण्ड-पावन' नामक जो कवच आपने प्रकाशित किया है, उसका उपदेश कृपा-पूर्वक मुझको, महादेव जी को तथा धर्म को दीजिए। हे भक्त-वत्सल! हम तीनों आपके भक्त हैं। आपकी कृपा से मैं अपने पुत्रों को भक्ति-पूर्वक इसका उपदेश दूँगा।।
।। श्रीकृष्ण उवाच ।।
श्रृणु वक्ष्यामि ब्रह्मेश! धर्मेदं कवचं परं।
अहं दास्यामि युष्मभ्यं, गोपनीयं सुदुर्लभम्।। 1
यस्मै कस्मै न दातव्यं, प्राण-तुल्यं ममैव हि।
यत्-तेजो मम देहेऽस्ति, तत्-तेजः कवचेऽपि च।। 2
श्रीकृष्ण ने कहा - हे ब्रह्मन्! महेश्वर! धर्म! तुम लोग सुनो! मैं इस उत्तम 'कवच' का वर्णन कर रहा हूँ। यह परम दुर्लभ और गोपनीय है। इसे जिस किसी को भी न देना, यह मेरे लिए प्राणों के समान है। जो तेज मेरे शरीर में है, वही इस कवच में भी है।
कुरु सृष्टिमिमं धृत्या, धाता त्रि-जगतां भव।
संहर्त्ता भव हे शम्भो! मम तुल्यो भवे भव।। 3
हे धर्म! त्वमिमं धृत्वा, भव साक्षी च कर्मणां।
तपसां फल-दाता च, यूयं भक्त मद्-वरात।। 4
हे ब्रह्मन्! तुम इस कवच को धारण करके सृष्टि करो और तीनों लोकों के विधाता के पद पर प्रतिष्ठित रहो। हे शम्भो! तुम भी इस कवच को ग्रहण कर, संहार का कार्य सम्पन्न करो और संसार में मेरे समान शक्ति-शाली हो जाओ। हे धर्म! तुम इस कवच को धारण कर कर्मों के साक्षी बने रहो। तुम सब लोग मेरे वर से तपस्या के फल-दाता हो जाओ।
ब्रह्माण्ड-पावनस्यास्य
कवचस्य हरिः स्वयं।
ऋषिश्छन्दश्च गायत्री, देवोऽहं जगदीश्वर।। 5
धर्मार्थ-काम-मोक्षेषु, विनियोगः प्रकीर्तितः।
त्रि-लक्ष-वार-पठनात्, सिद्धिदं कवचं विधे।। 6
इस 'ब्रह्माण्ड-पावन' कवच के ऋषि स्वयं हरि हैं, छन्द गायत्री है, देवता मैं जगदीश्वर श्रीकृष्ण हूँ तथा इसका विनियोग धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हेतु है। हे विधे! 3 लाख बार 'पाठ' करने पर यह 'कवच' सिद्ध हो जाता है।
यो भवेत् सिद्ध-कवचो, मम तुल्यो भवेत्तु सः।
तेजसा सिद्धि-योगेन, ज्ञानेन विक्रमेण च।। 7
जो इस कवच को सिद्ध कर लेता है, वह तेज, सिद्धियों, योग, ज्ञान और बल-पराक्रम में मेरे समान हो जाता है।
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दें।
ॐ अस्य श्रीब्रह्माण्ड-पावन-कवचस्य श्रीहरिः ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्रीकृष्णो देवता, धर्म-अर्थ-काम-मोक्षेषु विनियोगः।
श्रीहरिः ऋषये नमः शिरसि,
गायत्री छन्दसे नमः मुखे,
श्रीकृष्णो देवतायै नमः हृदि,
धर्म-अर्थ-काम-मोक्षेषु विनियोगाय नमः सर्वांगे।
प्रणवो मे शिरः पातु, नमो रासेश्वराय च।
भालं पायान् नेत्र-युग्मं, नमो राधेश्वराय च।। 1
कृष्णः पायात् श्रोत्र-युग्मं, हे हरे घ्राणमेव च।
जिहिकां वह्निजाया तु, कृष्णायेति च सर्वतः।। 2
श्रीकृष्णाय स्वाहेति च, कण्ठं पातु षडक्षरः।
हीं कृष्णाय नमो वक्त्रं, क्लीं पूर्वश्च भुज-द्वयम्।। 3
नमो गोपांगनेशाय, स्कन्धावष्टाक्षरोऽवतु।
दन्त-पंक्तिमोष्ठ-युग्मं, नमो गोपीश्वराय च।। 4
ॐ नमो भगवते रास-मण्डलेशाय स्वाहा।
स्वयं वक्षः-स्थलं पातु, मन्त्रोऽयं षोडशाक्षरः।। 5
ऐं कृष्णाय स्वाहेति च, कर्ण-युग्मं सदाऽवतु।
ॐ विष्णवे स्वाहेति च, कंकालं सर्वतोऽवतु।। 6
ॐ हरये नमः इति, पृष्ठं पादं सदऽवतु।
ॐ गोवर्द्धन-धारिणे, स्वाहा सर्व-शरीरकम्।। 7
प्राच्यां मां पातु श्रीकृष्णः, आग्नेय्यां पातु माधवः।
दक्षिणे पातु गोपीशो, नैऋत्यां नन्द-नन्दनः।। 8
वारुण्यां पातु गोविन्दो, वायव्यां राधिकेश्वरः।
उत्तरे पातु रासेशः, ऐशान्यामच्युतः स्वयम्।
सन्ततं सर्वतः पातु, परो नारायणः स्वयं।। 9
इति ते कथितं ब्रह्मन्! कवचं परमाद्भुतं।
मम जीवन-तुल्यं च, युष्मभ्यं दत्तमेव च।
भगवान श्री कृष्ण को भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में सम्मानित किया जाता है। श्री कृष्ण कोमलता और प्रेम के देवता हैं। कृष्ण ब्रह्मांड कवच का सच्चे मन से पाठ करने से साधक का क्रोध शांत और मन निर्मल होने लगता है, जिससे साधक सभी लोगों से नम्रतापूर्वक व्यवहार करने लगता है। साधक के सभी शत्रु मित्र बनने लगते हैं तथा परिवार के सदस्यों के बीच सकारात्मक वातावरण बनने लगता है। कृष्ण ब्रह्मांड कवच का पाठ करने के साथ यदि राधा-कृष्ण कवच धारण किया जाए, तो पति-पत्नी के बीच प्रेम, आकर्षण और सौंदर्य बढ़ने लगता है, जिससे तलाक और गृह क्लेश जैसी समस्याएँ दूर होने लगती हैं। संतान प्राप्ति में भी लाभ मिलने लगता है।
यदि कृष्ण माला को धारण करके श्री कृष्ण ब्रह्मांड कवच का पाठ किया जाए, तो साधक को साहस और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। साधक स्वयं को सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ महसूस करने लगता है। जो साधक हमेशा क्रोध करता है, उसे कृष्ण ब्रह्मांड कवच का नियमित पाठ करना चाहिए, जिससे वह सुखी जीवन जी सके। यदि कोई साधक अपने जीवन में पूर्ण प्रेम पाना चाहता है या प्रेम विवाह करना चाहता है, तो वह शुक्रवार से 27 दिन तक अपने शरीर में गुलाब का इत्र लगाकर कृष्ण ब्रह्मांड कवच का पाठ करे।
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