क्या आप जानना चाहते हैं कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा बेंगलुरु में 2025 में कब और कहाँ निकलेगी? जानिए यात्रा की तारीख, रूट और दर्शनों की सभी अहम बातें।
बेंगलुरु की जगन्नाथ रथ यात्रा भव्यता और श्रद्धा का प्रतीक है। इस यात्रा का आयोजन इस्कॉन मंदिर द्वारा किया जाता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की दिव्य झांकी आकर्षण का केंद्र होती है। हज़ारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
भगवान जगन्नाथ की प्रसिद्ध रथ यात्रा देशभर में उत्साह के साथ मनाई जाती है। इसी कड़ी में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में भी यह पर्व बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाएगा। इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून, शुक्रवार से शुरू होगी। जगन्नाथ रथ यात्रा को रथ उत्सव या गुंडीचा यात्रा भी कहा जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। मान्यता है कि इस यात्रा में शामिल होने और रथ खींचने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
बेंगलुरु में इस्कॉन मंदिर और जगन्नाथ मंदिर (उलसूर) में भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। हजारों भक्त इस अवसर पर इकट्ठा होते हैं और भगवान के दर्शन करते हैं। रथ को सजाया जाता है और भक्त इसे खींचकर यात्रा को आगे बढ़ाते हैं। आइए जानतें हैं जगन्नाथ यात्रा का महत्व क्या है और इसका समय क्या है...
मान्यता है कि जो भक्त इस रथ यात्रा में शामिल होते हैं और रथ को खींचते हैं, उन्हें मोक्ष (मुक्ति) की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार, इस यात्रा के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा के साथ निकाली जाती है, जो पारिवारिक एकता और प्रेम का संदेश देती है। जगन्नाथ भगवान सभी को समान दृष्टि से देखते हैं। इस यात्रा में हर वर्ग, जाति और धर्म के लोग बिना किसी भेदभाव के शामिल हो सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ इस दिन साक्षात् रूप में लोगों को दर्शन देते हैं। स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण में इस यात्रा का विशेष वर्णन मिलता है।
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पूरे भारत में मनाई जाती है, लेकिन पुरी (ओडिशा) की यात्रा और बैंगलोर (कर्नाटक) की यात्रा में कुछ खास अंतर होते हैं। आइए इसके बारे में जानते हैं।
यह सबसे प्राचीन और मूल जगन्नाथ यात्रा है, जिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। पुरी का जगन्नाथ मंदिर चार धामों में से एक है और यहां की यात्रा को सबसे पवित्र माना जाता है। यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का विशालकाय रथ (नंदीघोष, तालध्वज और देवदलन) बनाया जाता है, जिसे लाखों लोग खींचते हैं। यहां छप्पन भोग (56 प्रकार के भोग) की परंपरा प्रसिद्ध है।
यहां की यात्रा अन्य शहरों की तरह पुरी की परंपरा को फॉलो करती है, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व पुरी जितना नहीं है। बैंगलोर में मुख्य रूप से इस्कॉन मंदिर और जगन्नाथ मंदिर (उलसूर) में यह आयोजन होता है। रथ आकार में छोटे होते हैं और इसमें स्थानीय भक्तों की भागीदारी अधिक होती है। प्रसाद में दक्षिण भारतीय व्यंजन भी शामिल होते हैं।
बैंगलोर में रथ यात्रा, जिसे श्री कृष्ण बलराम रथ यात्रा के नाम से भी जाना जाता है, एक वार्षिक उत्सव है जो भगवान कृष्ण और बलराम को समर्पित है। बैंगलोर में पहली रथ यात्रा 1985 में आयोजित की गई थी। शुरुआत में, भगवान कृष्ण और बलराम के लिए अलग-अलग रथ थे, लेकिन बाद में दोनों को एक ही रथ पर सवार किया गया। यह उत्सव हर साल राजाजीनगर की सड़कों पर निकाला जाता है।
बैंगलोर में रथ यात्रा 27 जून 2025 को प्रेस्टीज टेक्नोस्टार से शुरू होकर ब्रिगेड लेकफ्रंट और एसएपी ऑफिस के रास्ते होते हुए केटीपीओ ग्राउंड पर समाप्त होगी। इस उत्सव में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथों को खींचा जाता है और भक्त कीर्तन करते हैं।
रथों को खींचा जाएगा, भक्त कीर्तन करेंगे, महाप्रसाद वितरित किया जाएगा, सुरक्षा के व्यापक इंतजाम होंगे, ध्वनि प्रणाली की व्यवस्था की जाएगी।
बैंगलोर की जगन्नाथ रथ यात्रा दिल को छू लेने वाला एक पावन अवसर है। यहां भक्तों की आस्था, रंग-बिरंगे रथ और मीठे प्रसाद का अनोखा मेल देखने को मिलता है। छोटा सा यह उत्सव बड़ी खुशी देता है - भगवान के दर्शन का सुख, सबको साथ लेकर चलने का संदेश और मन को शांति। जरूर जाएं, आनंद लें! जय जगन्नाथ!
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