पुरी में रथ यात्रा के दौरान बंटता है वो प्रसाद जो खुद भगवान को अर्पित होता है। जानिए महाप्रसाद की शक्ति, पवित्रता और इसके पीछे की परंपरा
जगन्नाथ रथ यात्रा का महाप्रसाद सिर्फ भोजन नहीं, भक्ति और समानता का प्रतीक है। इसे कोई भी जाति या वर्ग का व्यक्ति ग्रहण कर सकता है। मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी की आग पर पकाया गया यह प्रसाद, स्वाद से अधिक आध्यात्मिक लाभ और मोक्ष की कामना से ग्रहण किया जाता है, इसलिए रथ यात्रा में लाखों श्रद्धालु इसे पाने के लिए जुटते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा का प्रसाद, जिसे ‘महाप्रसाद’ कहा जाता है, इसलिए खास माना जाता है क्योंकि यह केवल भगवान को अर्पित किया गया भोजन नहीं होता, बल्कि यह समानता और भक्ति का प्रतीक होता है। इस प्रसाद की एक विशेष बात यह है कि इसे बिना जाति-भेद के कोई भी ग्रहण कर सकता है। चाहे वह राजा हो या सामान्य व्यक्ति, ब्राह्मण हो या शूद्र सभी के लिए महाप्रसाद समान होता है। इसे मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी की आग पर पकाया जाता है, और यह माना जाता है कि ऊपर रखा बर्तन सबसे पहले पक जाता है, जो एक चमत्कार की तरह देखा जाता है।
इसलिए आज के इस लेख में हम जानेंगे जगन्नाथ रथ यात्रा प्रसाद से जुड़े कई सवालों के जवाब जैसे:-
जगन्नाथ मंदिर में अर्पित भोजन ‘महाप्रसाद’ कहलाता है और इसे दो मुख्य प्रकारों में बाँटा जाता है:
संकुदी महाप्रसाद: इसे मंदिर परिसर के भीतर ही ग्रहण किया जा सकता है। इसमें चावल, दाल, सब्जियाँ और अन्य ताज़ा व्यंजन शामिल होते हैं।
सुखिला महाप्रसाद: यह सूखे प्रसाद का प्रकार है। लड्डू, खस्ता, सूखी मिठाइयाँ। जिसे भक्त घर ले जाकर बाँट सकते हैं। एक और प्रकार है निर्मला प्रसाद, जो मरणासन्न व्यक्ति यानी की जो भक्त मृत्यु के करीब है, सिर्फ़ सुर सिर्फ़ उसे ही दिया जाता है। इसे मोक्षदायक माना जाता है।
जगन्नाथ मंदिर का महाप्रसाद न केवल स्वाद और भक्ति से जुड़ा होता है, बल्कि इसकी रसोई और निर्माण प्रक्रिया अपने आप में चमत्कारी और रहस्यमयी मानी जाती है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से पारंपरिक होती है और हर चरण में दिव्यता समाई होती है।
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में स्थित रसोई को दुनिया की सबसे बड़ी मंदिर रसोई माना जाता है। यहाँ प्रतिदिन लगभग 500 रसोइए और 300 सहायक काम करते हैं। रथ यात्रा जैसे पर्वों पर यह रसोई लाखों भक्तों के लिए महाप्रसाद तैयार करती है।
यहां प्रसाद पकाने के लिए सात मिट्टी के बर्तनों को एक के ऊपर एक रखा जाता है। विशेष बात यह है कि सबसे ऊपर रखा हुआ बर्तन पहले पकता है और उसके बाद क्रमशः नीचे के बर्तन। यह प्रक्रिया आज तक वैज्ञानिक रूप से स्पष्ट नहीं की जा सकी है और इसे चमत्कार माना जाता है।
जब तक प्रसाद भगवान को अर्पित नहीं किया जाता, तब तक उसमें से कोई सुगंध नहीं आती। लेकिन जैसे ही अर्पण होता है और प्रसाद बाहर लाया जाता है, उसकी दिव्य महक फैल जाती है। मान्यता है कि यह देवी लक्ष्मी की स्वीकृति का संकेत होता है।
इस रसोई की एक अनोखी विशेषता यह भी है कि प्रसाद कभी कम नहीं होता। लाखों भक्तों के बीच वितरित होने के बावजूद यह न तो कभी खत्म होता है, न ही बर्बाद होता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान मिलने वाला महाप्रसाद सिर्फ एक भोज्य पदार्थ नहीं, बल्कि यह समानता, श्रद्धा और सनातन परंपरा का जीवंत प्रतीक है। इसकी पवित्रता, निर्माण विधि और धार्मिक महत्व इसे ‘ईश्वर का भोजन’ बनाते हैं, जो हर भक्त के लिए आशीर्वाद स्वरूप होता है। यदि कभी पुरी जाएं, तो महाप्रसाद का अनुभव जरूर करें। यह केवल स्वाद नहीं, बल्कि आत्मा का भोजन है।
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