क्या आप जानते हैं गणपति की सूंड की दिशा का क्या महत्व है? जानें पूजा और वास्तु के अनुसार सूंड की सही दिशा और उसके लाभ।
हिन्दू धर्म में गणेश पूजा का विशेष महत्व है। गणेश जी के कई रूप है। गणेश जी की मूर्तियों में अक्सर उनकी सूंड बाईं या दाईं दिशा में मुड़ी हुई दिखाई देती है। आमतौर पर दाईं ओर मुड़ी हुई सूंड वाला स्वरूप बहुत कम देखने को मिलता है। चूँकि उनकी सूंड एक दिशा में टेढ़ी होती है, इसलिए उन्हें ‘वक्रतुण्ड’ भी कहा जाता है।
हिंदू धर्म में भगवान गणेश को सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता माना गया है। किसी भी पूजा या मंगल कार्य की शुरुआत उनके नाम के स्मरण और पूजा से की जाती है। श्री गणेश को सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, और उनकी कृपा से जीवन के कार्य निर्विघ्न पूरे होते हैं। इसी कारण लोग अपने घरों के मंदिरों में उनकी मूर्ति स्थापित करते हैं। गणेश जी की सूंड को लेकर अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं, लेकिन आमतौर पर घरों में उनकी बाईं ओर मुड़ी हुई सूंड वाली मूर्ति ही देखी जाती
1. वाममुखी गणेश (बाईं ओर मुड़ी सूंड)
कैसा रूप है: यह गणेश जी का सबसे सामान्य रूप होता है, जो अधिकतर घरों में देखा जाता है।
महत्व: यह स्वरूप सौम्यता, शांति और घर की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
पूजन विधि: इसे सामान्य पूजा-पाठ में शामिल किया जा सकता है और यह गृहस्थ जीवन के लिए शुभ होता है।
फल: इससे मानसिक सुकून, प्रेम और पारिवारिक सौहार्द में वृद्धि होती है।
2. दक्षिणमुखी गणेश (दाईं ओर मुड़ी सूंड)
कैसा रूप है: यह स्वरूप कम ही देखने को मिलता है और विशेष माना जाता है।
महत्व: यह शक्ति, आत्मबल और तपस्या का प्रतीक होता है।
पूजन की विधि: इस रूप की पूजा विशेष नियमों और विधानों के अनुसार ही करनी चाहिए।
फल: इससे जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं और शीघ्र फल प्राप्त होता है, परंतु पूजा में अनुशासन बहुत जरूरी होता है।
3. सीधी सूंड वाले गणेश (सामने की ओर सूंड)
कैसा रूप है: यह स्वरूप दुर्लभ होता है और कम ही देखने को मिलता है।
महत्व: यह आध्यात्मिक स्थिरता और संतुलन का संकेत देता है।
पूजन की विधि: ध्यान, साधना और आत्मिक विकास के लिए इसे उपयुक्त माना जाता है।
फल: इससे साधक की आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है और आंतरिक शुद्धि होती है।
सूंड़ की दिशा: बाईं ओर हो तो शुभ मानी जाती है
घर में ऐसी गणेश मूर्ति रखना शुभ होता है जिसकी सूंड़ बाईं तरफ मुड़ी हुई हो। मान्यता है कि यह स्वरूप चंद्रमा और इड़ा नाड़ी से जुड़ा होता है, जो मानसिक शांति, भावनात्मक संतुलन और सौम्यता को दर्शाता है।
बाईं ओर सूंड़ वाली मूर्ति घर के माहौल को सकारात्मक बनाकर उसमें शांति और समृद्धि का संचार करती है। इस स्वरूप की पूजा विशेष विधियों की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए इसे घर के मंदिर में आसानी से स्थापित किया जा सकता है। इससे शिक्षा, पारिवारिक सामंजस्य और संतान संबंधी सुख भी प्राप्त होते हैं।
मूर्ति की मुद्रा: बैठे हुए गणेश अधिक शुभ माने जाते हैं
घर के लिए बैठी मुद्रा में बनी गणेश जी की प्रतिमा को सबसे उपयुक्त माना गया है। यह मुद्रा स्थायित्व, संतुलन और घर में सुख-शांति का प्रतीक मानी जाती है। जबकि खड़ी मूर्ति तेज गति
मूर्ति का रंग और सामग्री भी रखते हैं महत्व
यदि गणेश जी की मूर्ति सफेद, पीली या सुनहरी रंग की हो तो उसे विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
सफेद रंग मानसिक शांति का प्रतीक है, पीला बुद्धि और विकास का तथा सुनहरा धन और ऐश्वर्य का सूचक होता है।
साथ ही, गणेश जी की मूर्तियाँ यदि मिट्टी, संगमरमर, तांबे या पीतल जैसी पारंपरिक सामग्रियों से बनी हों, तो उन्हें अधिक शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन सामग्रियों से बनी प्रतिमाएं बेहतर ऊर्जा उत्पन्न करती हैं और धार्मिक रूप से भी अधिक उपयुक्त होती हैं।
सूंड़ की दिशा: बाईं ओर हो तो उत्तम
व्यवसायिक स्थान जैसे ऑफिस या दुकान के लिए भी गणेश जी की बाईं ओर सूंड़ वाली मूर्ति को ही प्राथमिकता दी जाती है। यह सूंड़ स्थिरता, धैर्य और विवेकशील निर्णयों का प्रतीक होती है। यह रूप धीरे-धीरे लेकिन स्थायी सफलता की ओर ले जाता है।
मूर्ति की मुद्रा: खड़ी मूर्ति बढ़ाती है कार्यक्षमता
ऑफिस या व्यापारिक स्थल पर गणेश जी की खड़ी मुद्रा वाली मूर्ति रखने की परंपरा है क्योंकि यह गतिविधि, जोश और कार्यक्षमता का प्रतीक होती है। इससे कर्मचारियों में ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है और कार्य में प्रगति होती है।
विशेष मूर्ति: लक्ष्मी-गणेश या त्रिदेव स्वरूप
ऑफिस के लिए लक्ष्मी-गणेश या सरस्वती-लक्ष्मी-गणेश की त्रिमूर्ति को शुभ माना जाता है। यह त्रय धन, ज्ञान और बुद्धिमत्ता तीनों क्षेत्रों में संतुलन बनाकर व्यावसायिक उन्नति सुनिश्चित करता है। ऐसे स्वरूप व्यापारिक सफलता और सौभाग्य को आमंत्रित करते हैं।
गलत दिशा की सूंड से क्या हानि हो सकती है?
पूजन में लापरवाही से अप्रसन्नता का खतरा: यदि गणेश जी की मूर्ति की सूंड़ दाईं ओर हो और पूजा में सही विधि न अपनाई जाए, तो इसे भगवान की नाराज़गी का कारण माना जाता है।
घर के माहौल में तनाव और अशांति: गलत दिशा की मूर्ति से घर का वातावरण प्रभावित हो सकता है। पारिवारिक संबंधों में खटास, मानसिक बेचैनी और अस्थिरता बढ़ सकती है।
रोजमर्रा के कामों में बार-बार रुकावट: ऐसी मूर्ति यदि बिना उचित नियमों के रख दी जाए, तो जीवन में अनचाही अड़चनों और विघ्नों का सामना करना पड़ सकता है।
आर्थिक पक्ष पर नकारात्मक असर: व्यापार या नौकरी से जुड़े निर्णयों में असफलता, धन का नुकसान और तरक्की में रुकावट जैसी समस्याएं सामने आ सकती हैं।
मूर्ति का स्वयं टूट जाना: अशुभ संकेत: मान्यता है कि यदि दक्षिणवर्ती मूर्ति की पूजा विधिपूर्वक न की जाए, तो मूर्ति टूट सकती है, जो शास्त्रों में अशुभ माना जाता है।
भगवान गणेश को वह देवता माना जाता है जो सभी बाधाओं को दूर करते हैं और सफलता प्रदान करते हैं। हिंदू परंपरा में हर शुभ कार्य की शुरुआत सबसे पहले गणेश जी की पूजा से होती है। इस कारण घर, मंदिर, कार्यालय या व्यापारिक स्थान पर उनकी मूर्ति स्थापित करना विशेष रूप से शुभ माना गया है।
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