क्या आप जानते हैं गणेश जी की पीठ पर क्या दर्शाया जाता है और इसका क्या महत्व है? जानें इस रहस्य के पीछे की धार्मिक मान्यता।
गणेश जी को विघ्नहर्ता, शुभकर्ता और प्रथम पूज्य देवता के रूप में पूजा जाता है। उनके दर्शन मात्र से ही बाधाएँ दूर होती हैं और कार्यों में सफलता मिलती है। हम सबने कई बार उनके मुखमंडल के दिव्य रूप को निहारा है, उनकी बड़ी सूंड, प्यारा पेट, और करुणामयी आंखें… लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गणेश जी की पीठ के पीछे क्या होता है? आइए जानते हैं...........
गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि के दाता और सर्व बाधाओं को हरने वाले देवता के रूप में जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जहां गणेश जी का मुखमंडल सभी शुभ शक्तियों और सौभाग्य का केंद्र माना जाता है, वहीं उनकी पीठ को दरिद्रता और विघ्नों का प्रतीक माना गया है। ऐसी मान्यता है कि गणेश जी की पीठ पर दरिद्रता का निवास होता है। यह भी कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति अनजाने में भी गणेश जी की पीठ की ओर से दर्शन करता है, तो उसके जीवन में विघ्न, कष्ट और वित्तीय समस्याएँ बढ़ सकती हैं।
इसके साथ ही गणेश जी के विभिन्न अंगों में देव शक्तियों का वास होता है, उनकी सूंड पर धर्म, कानों पर ऋचाएं, और शरीर के अन्य भागों पर विभिन्न दिव्य तत्वों का प्रतीकात्मक वास है। यही कारण है कि सामने से दर्शन करना न केवल धार्मिक रूप से श्रेष्ठ माना गया है, बल्कि यह आध्यात्मिक उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत भी है। इसलिए मूर्ति स्थापना या पूजा के समय सदैव ध्यान रखा जाता है कि गणेश जी का मुख घर या प्रतिष्ठान के अंदर की ओर हो और पीठ दीवार की ओर ताकि दरिद्रता बाहर ही रहे और समृद्धि भीतर बनी रहे।
जब घर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है, तो केवल उनकी उपासना या सजावट भर नहीं की जाती बल्कि यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया होती है जिसमें वास्तु सिद्धांतों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस प्रक्रिया में मूर्ति की स्थिति और दिशा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
गणेश जी की मूर्ति को हमेशा इस तरह स्थापित करना चाहिए कि उनकी पीठ दीवार की ओर हो और मुख घर के अंदर की ओर। दीवार की ओर पीठ होने से ऐसा प्रतीत होता है कि गणेश जी घर के भीतर प्रवेश कर रहे हैं, और अपने साथ सुख, समृद्धि व शुभता ला रहे हैं।
यदि गणेश जी की पीठ खुले स्थान की ओर हो, तो इसे अशुभ माना जाता है। यह स्थिति घर से शुभ ऊर्जा और समृद्धि के बाहर जाने का संकेत मानी जाती है। मूर्ति की पीठ को दरिद्रता से जोड़ा गया है। इसलिए जब गणेश जी की पीठ बाहर की ओर खुली होती है, तो माना जाता है कि इससे घर की संपत्ति और शुभता बाहर चली जाती है।
जब गणेश जी की पीठ दीवार से सटी होती है, तो यह संकेत देती है कि दरिद्रता और विघ्न दीवार के बाहर रह जाएं, और घर के भीतर केवल आशीर्वाद और शुभता का वास हो।
जब गणेश जी की मूर्ति को इस प्रकार स्थापित किया जाता है कि पीठ दीवार की ओर और मुख घर के भीतर हो, तो यह न केवल घर में संपत्ति, शांति और सौभाग्य को बनाए रखने में सहायक होता है, बल्कि विघ्न और दरिद्रता को भी प्रवेश करने से रोकता है। इस शुभ स्थापना से गणपति बप्पा का आशीर्वाद घर पर सदा बना रहता है, और परिवार में खुशहाली, सफलता और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
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