गणेश चतुर्थी वाराणसी 2025, जानें काशी में गणपति बप्पा की स्थापना, पूजा विधि, प्रसिद्ध मंदिरों में विशेष आयोजन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और भक्तों की आस्था से जुड़े भव्य उत्सव।
गणेश चतुर्थी वाराणसी में गंगा किनारे और मंदिरों में बड़े भक्तिभाव और उत्साह के साथ मनाई जाती है, जहाँ भगवान गणेश की प्रतिमाएं स्थापित कर विशेष पूजा-अर्चना की जाती हैं। इस दौरान शहर का वातावरण भक्ति, आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सराबोर हो उठता है। इस लेख में जानिए वाराणसी में गणेश चतुर्थी का महत्व, उत्सव की खास झलकियां और इससे जुड़ी परंपराएं।
वाराणसी में गणेश चतुर्थी बड़ी श्रद्धा और परंपरा के साथ मनाई जाती है। इस अवसर पर मंदिरों को सुंदर ढंग से सजाया जाता है और भक्त सुबह से ही गणपति बप्पा के दर्शन व पूजा के लिए कतार में खड़े रहते हैं।
घरों और पंडालों में गणेश प्रतिमाएं स्थापित कर मंत्रोच्चार, आरती और प्रसाद का वितरण किया जाता है। शहर के विभिन्न इलाकों में भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। पर्व का समापन प्रतिमा विसर्जन के साथ होता है, जो गंगा नदी में विधिपूर्वक संपन्न किया जाता है।
1. भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि की शुरुआत 26 अगस्त 2025 को दोपहर 1:54 बजे होगी। 2. यह तिथि 27 अगस्त 2025 को दोपहर 3:44 बजे समाप्त होगी। 3. परंपरा के अनुसार उत्सव की शुरुआत सूर्योदय से मानी जाती है। 4. गणेश चतुर्थी का त्योहार 27 अगस्त 2025 को सभी जगह मनाया जाएगा। 5. इस दिन शुभ मुहूर्त में घरों और पंडालों में गणपति बप्पा की स्थापना की जाएगी।
1. विघ्नों का निवारण: वाराणसी में गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की आराधना को अत्यंत शुभ माना जाता है। विश्वास है कि इस दिन की पूजा से जीवन की सभी रुकावटें दूर होकर सुख, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है।
2. मंदिरों में विशेष आयोजन: काशी के प्रसिद्ध मंदिरों में इस दिन खास आरती, जलाभिषेक और मंत्रोच्चार होते हैं। शहर के लोग और बाहर से आने वाले भक्त इन धार्मिक आयोजनों में शामिल होकर आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं।
3. प्रतिमा स्थापना और सजावट: घरों और मोहल्लों में गणपति की प्रतिमा स्थापित की जाती है। पंडालों को फूलों, दीपों और रंगोली से सजाया जाता है, जहां प्रतिदिन आरती, भजन-कीर्तन और प्रसाद वितरण किया जाता है।
4. सांस्कृतिक गतिविधियाँ: इस पर्व पर वाराणसी में भजन-संध्या, नृत्य-गान और धार्मिक नाटकों का आयोजन किया जाता है, जो लोगों में एकता और भाईचारे की भावना को मजबूत करता है।
5. गंगा में प्रतिमा विसर्जन: आखिरी दिन गणपति की प्रतिमाओं का विसर्जन गंगा नदी में किया जाता है। यह अनुष्ठान पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान से संपन्न होता है और वाराणसी की गहरी धार्मिक परंपराओं का प्रतीक है।
1. पूजा स्थल की सफाई: घर या पंडाल में पूजा के लिए शांत और साफ स्थान चुनें। झाड़ू-पोंछा कर साफ करें और गंगाजल से छिड़काव कर शुद्ध करें, ताकि माहौल पवित्र हो जाए।
2. सजावट की तैयारी: चौकी पर लाल, पीला या केसरिया कपड़ा बिछाएं। फूलों, तोरण, रंगोली और लाइट से सजाएं। चाहें तो कोई खास थीम भी चुन सकते हैं जिससे सजावट खास लगे।
3. पूजा सामग्री का प्रबंध: नारियल, पान, सुपारी, दूर्वा, मोदक, फूल, दीपक, अगरबत्ती, कपूर, अक्षत और कलश जैसी सभी चीजें पहले से जुटा लें, ताकि पूजा में कोई कमी न हो।
4. मूर्ति का चयन और स्थापना: पर्यावरण के लिए मिट्टी की प्रतिमा लेना सबसे अच्छा है। मुहूर्त में प्रतिमा को चौकी पर स्थापित करें और पीछे सुंदर पृष्ठभूमि लगाएं। मंत्रोच्चार के साथ स्थापना करें।
5. पूजा-विधि और कार्यक्रम: गणपति जी का पंचामृत स्नान कराएं और उन्हें फूल, दूर्वा तथा प्रसाद अर्पित करें। प्रतिदिन सुबह और शाम आरती के साथ भजन-कीर्तन करें। विसर्जन से पहले ‘उत्सर्जन पूजा’ पूरी करके बप्पा को अगले साल फिर से आने का आमंत्रण दें।
1. शुभ मुहूर्त और स्थान चुनना: गणेश स्थापना के लिए हमेशा शुभ समय का पालन करें। पंचांग देखकर मुहूर्त तय करें और घर या पंडाल में ऐसा स्थान चुनें जो साफ, शांत और पूजा के लिए उपयुक्त हो। प्रतिमा का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना शुभ माना जाता है।
2. स्थान की सफाई और पवित्रीकरण: चयनित स्थान को झाड़ू-पोंछा करके साफ करें और गंगाजल या पवित्र जल का छिड़काव करें। यह प्रक्रिया नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर वातावरण को पवित्र बनाती है।
3. चौकी और सजावट तैयार करना: लकड़ी की चौकी पर लाल, पीला या केसरिया कपड़ा बिछाएं। फूलों की मालाएं, तोरण, रंगोली और दीपक से सजावट करें। पीछे की ओर सुंदर पृष्ठभूमि लगाकर स्थल को आकर्षक और भक्तिमय बनाएं।
4. प्रतिमा की स्थापना: संभव हो तो मिट्टी की पर्यावरण-अनुकूल प्रतिमा चुनें। शुभ समय में प्रतिमा को चौकी पर रखें। स्थापना के समय दाहिने हाथ में अक्षत और फूल लेकर संकल्प करें कि पूरे नियम और श्रद्धा के साथ पूजा करेंगे।
5. अभिषेक और श्रृंगार: गणेश जी का पंचामृत स्नान (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) कराएं। फिर स्वच्छ जल से स्नान करवाकर वस्त्र, फूल, आभूषण और दूर्वा अर्पित करें।
6. पूजन प्रक्रिया
कलश स्थापित करें और दीपक जलाएं।
21 दूर्वा, 21 मोदक और फूल चढ़ाए।
शंख, घंटी और मंत्रोच्चार के साथ आरती करें।
प्रसाद सभी भक्तों में बांटें।
7. पूरे उत्सव के नियम: स्थापना से विसर्जन तक प्रतिदिन सुबह-शाम आरती, भजन-कीर्तन और प्रसाद अर्पण करें। वातावरण को पूरे समय भक्तिमय और सकारात्मक बनाए रखें।
गणेश चतुर्थी का समापन अनंत चतुर्दशी के अवसर पर होता है, जब श्रद्धालु गणपति की प्रतिमाओं का जल में विसर्जन करते हैं। यह उत्सव विघ्नहर्ता गणेश जी की कृपा प्राप्त करने और जीवन में खुशहाली व समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
Did you like this article?
जानें गणेश चतुर्थी पर क्या करना चाहिए, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, व्रत नियम और पूजन सामग्री की सूची। श्री गणेश की कृपा पाने के लिए सही मंत्र और अनुष्ठान पढ़ें।
Ganesh Chaturthi Pune 2025, जानिए पुणे में गणेश चतुर्थी की तिथि, पूजा विधि, कस्बा गणपति और दगडूशेठ हलवाई गणपति जैसे प्रमुख पंडाल, भव्य झांकियाँ और सांस्कृतिक उत्सव का महत्व।
Ganesh Chaturthi Mumbai 2025, जानिए मुंबई में गणेश चतुर्थी की तिथि, पूजा विधि, लालबागचा राजा जैसे प्रमुख पंडाल, भव्य झांकियाँ, विसर्जन स्थल और पर्यावरण-संवेदनशील मूर्तियों का महत्व।