क्या आप जानते हैं गणेश चतुर्थी के पीछे की पौराणिक कथा और इसका महत्व? जानें क्यों यह पर्व हर साल धूमधाम से मनाया जाता है और इससे मिलने वाले आशीर्वाद।
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में हर्षोल्लास से मनाई जाती है। इस दिन घरों और पंडालों में गणपति की प्रतिमा स्थापित कर पूजा, भजन-कीर्तन और मिठाई का भोग लगाया जाता है, तथा विसर्जन के साथ समापन होता है।
गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म का एक अत्यंत पावन और लोकप्रिय पर्व है, जिसे पूरे भारत में बड़े ही श्रद्धा, भक्ति और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व भगवान गणेश जी के जन्म दिवस के रूप में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। खासकर महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उत्तर भारत के कई हिस्सों में इसकी धूम विशेष देखने को मिलती है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, सिद्धिदाता, और बुद्धि का देवता माना जाता है। यही कारण है कि इस दिन भक्तगण उन्हें प्रसन्न करने के लिए विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं और उन्हें मोदक, दूर्वा और लड्डुओं का भोग लगाते हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि गणेश चतुर्थी का धार्मिक महत्व क्या है और यह पर्व क्यों मनाया जाता है।
हिन्दू धर्म में गणेश जी का स्थान सर्वोच्च माना गया है क्योंकि वे ही हर कार्य में पहली पूजा के अधिकारी माने जाते हैं। चाहे कोई नया व्यवसाय हो, विवाह, गृह प्रवेश, परीक्षा, या कोई भी शुभ कार्य, गणेश पूजन के बिना वह अधूरा माना जाता है।
भगवान गणेश को विघ्नहर्ता यानी बाधाओं को दूर करने वाला देवता माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि जो व्यक्ति इस दिन सच्चे मन से भगवान गणेश की पूजा करता है, उसके जीवन की सभी परेशानियाँ और अड़चनें दूर हो जाती हैं।
गणेश जी को ज्ञान और बुद्धि का देवता भी माना गया है। इसलिए छात्र, लेखक, व्यापारी और अधिकारी इस दिन विशेष रूप से भगवान गणेश की पूजा करते हैं ताकि उन्हें अपने कामों में सफलता और सही निर्णय लेने की शक्ति मिले।
‘अग्नि पुराण’ के अनुसार, गणेश चतुर्थी के दिन व्रत रखने और पूजा करने से जन्मों-जन्मों के पाप खत्म हो जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष यानी आत्मा की शांति और मुक्ति मिलती है।
यह भी मान्यता है कि यदि कोई नवविवाहित जोड़ा इस दिन भगवान गणेश की पूजा करता है, तो उन्हें जल्दी ही संतान सुख की प्राप्ति होती है।
यह पर्व पूरे परिवार को एक साथ लाने का अवसर देता है। सभी मिलकर पूजा करते हैं, भजन गाते हैं, प्रसाद बांटते हैं और सेवा करते हैं। इससे घर में प्रेम, आपसी समझ और एकता बढ़ती है।
गणेश चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा को घरों और पंडालों में स्थापित कर दस दिनों तक पूजन, आरती, हवन, कीर्तन और संस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से उनकी आराधना की जाती है। दसवें दिन अनंत चतुर्दशी को गणेश विसर्जन के साथ इस महापर्व का समापन होता है।
गणेश चतुर्थी मनाने के पीछे पौराणिक और ऐतिहासिक दोनों ही कारण हैं। यह दिन भगवान गणेश के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके जन्म की सबसे प्रसिद्ध कथा इस प्रकार है:
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने अपने उबटन (चंदन के लेप) से एक बालक की मूर्ति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए। वह बालक थे गणेश। जब माता पार्वती स्नान कर रही थीं, तब उन्होंने बाल गणेश को द्वार पर पहरा देने को कहा और किसी को भी अंदर न आने देने की आज्ञा दी।
उसी समय भगवान शिव वहाँ आए और भीतर जाना चाहा। बाल गणेश ने उन्हें रोक दिया क्योंकि वे अपनी माता की आज्ञा का पालन कर रहे थे। जब शिव जी ने कई प्रयासों के बाद भी प्रवेश नहीं किया तो उन्होंने क्रोधित होकर त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट दिया। जब पार्वती जी को यह बात पता चली तो उन्होंने काली रूप धारण कर लिया और पूरी सृष्टि को विनाश की चेतावनी दे दी।
भगवान शिव ने तब सभी देवताओं को आदेश दिया कि जो भी प्राणी सबसे पहले उत्तर दिशा की ओर मिले, उसका सिर लेकर आएं। देवताओं को एक हाथी मिला, और उसका सिर लाकर बाल गणेश के धड़ पर जोड़ दिया गया। इस तरह गणेश जी पुनर्जीवित हुए और उन्हें "गजानन" नाम मिला। उसी समय भगवान शिव ने यह घोषणा की कि अब से गणेश जी को सबसे पहले पूजा जाएगा और वे ‘विघ्नहर्ता’ कहलाएंगे। इस कथा के कारण ही गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश के पुनर्जन्म का दिन माना जाता है, और इस दिन उनकी पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है।
इतना ही नहीं, इस दिन को मनाने का एक ऐतिहासिक पक्ष भी है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोकमान्य तिलक ने इस पर्व को सामाजिक एकता और राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए एक सार्वजनिक पर्व के रूप में प्रचलित किया। इसके माध्यम से देशवासियों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संगठित करने का प्रयास किया गया था, जो आज भी सामूहिक पूजन और सार्वजनिक पंडालों के रूप में जारी है।
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