गणेश चतुर्थी केरल 2025, जानें केरल में गणपति बप्पा की स्थापना, पूजा विधि, प्रसिद्ध मंदिरों के विशेष उत्सव, विसर्जन परंपरा और पर्यावरण के प्रति जागरूक आयोजन।
गणेश चतुर्थी पर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को बड़े हर्ष और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। भले ही इसकी लोकप्रियता महाराष्ट्र में अधिक हो, लेकिन केरल में भी इस पर्व का विशेष महत्व है। यहाँ भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और बुद्धि, समृद्धि तथा सौभाग्य के प्रदाता के रूप में पूजा जाता है। इस दिन घरों और मंदिरों में गणेश जी की विशेष प्रतिमा स्थापित की जाती है, मंत्रोच्चार और भजन-कीर्तन से वातावरण को पवित्र किया जाता है। केरल में गणेश चतुर्थी का उद्देश्य केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह घर और समाज से सभी बाधाओं को दूर करने तथा नए कार्यों में सफलता प्राप्त करने का प्रतीक भी है।
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। केरल में इसे विनायक चतुर्थी कहा जाता है और यहाँ के लोग गणपति बप्पा को विघ्नहर्ता तथा परम शक्ति का प्रतीक मानकर गहरी आस्था से पूजा करते हैं। केरल में इस पर्व की तिथि अन्य राज्यों से कुछ अलग हो सकती है। इसका कारण यह है कि यहाँ यह चिंगम मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है, जबकि अधिकांश राज्यों में यह भाद्रपद शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। चूँकि मलयालम कैलेंडर सौर आधारित है, इसमें अधिक मास नहीं आता और हर तीन साल में तिथि का अंतर हो सकता है।
पर्व का भारतीय सांस्कृतिक सुमेल: केरल में समृद्धि के देवता गणेश जी को गहराई से पूजा जाता है। वे विघ्नहर्ता और बुद्धि के प्रतीक हैं, जो नए आरंभों में सफलता और बाधाओं के निवारण के प्रतीक हैं।
स्थानीय परंपरा: यह पारंपरिक अनुष्ठान थ्रिस्सूर (Thrissur) में वड़क्कुंनाथन मंदिर के परिसर में आयोजित होता है, जहां हाथियों की पूजा की जाती है और उन्हें भोजन (जिसे धन और इच्छापूर्ति के प्रतीक के रूप में माना जाता है) करा कर गणेशजी की भक्ति का भाव प्रकट किया जाता है।
सामुदायिक एकता: यह पर्व विशेषकर पारिवारिक और स्थानीय मंदिरों में मनाया जाता है। हालांकि बड़े सार्वजनिक पंडालों जैसी महाराष्ट्रीय परंपराएँ केरल में कम हैं, फिर भी पूजा, कीर्तन और विविध सांस्कृतिक रस्मों के माध्यम से समुदाय में गहरी एकता एवं आस्था बनी रहती है।
केरल में इस त्योहार को लंबूधरा पिरानालु कहा जाता है, जो चिंगम महीने में आता है। तिरुवनंतपुरम में पझावंगडी गणपति मंदिर से शंकुमुघम समुद्र तट तक एक भव्य जुलूस निकाला जाता है, जिसमें जैविक वस्तुओं और दूध से बनी ऊँची गणेश प्रतिमा का समुद्र में विसर्जन किया जाता है।
गणेश प्रतिमा का चयन: गणेश चतुर्थी की तैयारी करते समय सबसे पहले गणेश जी की प्रतिमा का चयन करें। पारंपरिक और इको-फ्रेंडली प्रतिमा चुनें, जो मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से बनी हो, और प्रतिमा लाने से पहले घर की पूरी सफाई अवश्य करें।
पूजा स्थल की तैयारी: घर में पूजा के लिए उत्तर-पूर्व दिशा को सर्वोत्तम माना जाता है, इसलिए पूजा स्थल को केले के पत्तों, फूलों की माला, रंगोली और दीपक से सुंदर रूप से सजाएँ।
पूजा सामग्री की खरीदारी: गणेश चतुर्थी की पूजा के लिए दूर्वा (21 पत्तियाँ), शुद्ध जल, फल, मोदक, नारियल, सुपारी, लाल फूल, अगरबत्ती, दीपक और पंचामृत जैसी सामग्री तैयार रखें।
प्रसाद और भोग की तैयारी: मोदक गणेश जी का सबसे प्रिय भोग माना जाता है और इसे विशेष रूप से गणेश चतुर्थी पर अर्पित किया जाता है। दक्षिण भारतीय घरों में मोदक के साथ-साथ कोझुकट्टई (जो मोदक जैसा ही व्यंजन है), सुंडल (उबले हुए दाल या चने से बना नमकीन व्यंजन), पायसम (मीठा खीर जैसा पकवान) और वड़ा भी प्रेम और श्रद्धा से प्रसाद के रूप में तैयार किए जाते हैं, जिन्हें परिवार और भक्त मिलकर बांटते हैं।
गणपति की स्थापना और पूजा की प्रक्रिया शास्त्रों के अनुसार अत्यंत महत्व रखती है। इस विधि में स्थानीय परंपराओं, पवित्रता तथा प्राकृतिक सामग्रियों का विशेष स्थान होता है। वर्ष 2025 में गणेश चतुर्थी का पर्व बुधवार, 27 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन मध्याह्न गणेश पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 10:43 बजे से दोपहर 1:16 बजे तक रहेगा, जिसे पूजा और गणपति मूर्ति स्थापना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
पूजा स्थान की तैयारी
घर के पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख वाला स्वच्छ स्थान चुनें।
एक लकड़ी या पीतल का पाटा रखें, उस पर स्वच्छ कपड़ा बिछाएँ।
चारों ओर ताजे केले के पत्तों और नारियल के पत्तों से सजावट करें।
मूर्ति स्थापना
मूर्ति मिट्टी या पर्यावरण-हितैषी सामग्री की होनी चाहिए।
मूर्ति को इस तरह रखें कि पीठ दीवार की ओर और मुख घर के अंदर की ओर रहे।
स्थापना से पहले हल्दी, चंदन और कुमकुम से मूर्ति को अलंकृत करें।
पूजन सामग्री
21 दूर्वा पत्तियाँ
ताजे लाल फूल या चंपा/जैस्मीन के फूल
नारियल, सुपारी, केले और अन्य मौसमी फल
मोदक (या केरल में प्रचलित Kozhukattai)
सुंडल, पायसम और वड़ा (विशेष प्रसाद के रूप में)
अगरबत्ती, दीपक, पंचामृत
पूजा विधि
आवाहन मंत्र से गणेश जी का आमंत्रण करें
गणपति को स्नान (अभिषेक) कराएँ — दूध, दही, शहद, नारियल जल और गंगाजल से।
दूर्वा, फूल और प्रसाद अर्पित करें।
गणेश जी को नारियल और मोदक का भोग लगाएँ।
दीप और अगरबत्ती जलाकर आरती करें।
परिवार के सभी सदस्य मिलकर गणपति के भजन गाएँ।
विसर्जन
केरल में अक्सर मूर्ति का विसर्जन पास के तालाब, नदी या समुद्र में किया जाता है या घर में ही प्रतीकात्मक रूप से पानी में मूर्ति को विलीन किया जाता है।
विसर्जन के समय “गणपति बप्पा मोरया” और विनायका के जयघोष किए जाते हैं।
ये थी केरल में गणेश चतुर्थी के महत्व और गणेश स्थापना विधि से जुड़ी जानकारी। हमारी शुभकामनाएँ हैं कि आपकी पूजा-अर्चना पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ सम्पन्न हो, और विघ्नहर्ता भगवान गणेश सदैव आपके जीवन में सुख, समृद्धि और मंगल का संचार करें।
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