क्या आप जानते हैं गणेश चतुर्थी 10 दिन तक क्यों मनाई जाती है? जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा, धार्मिक कारण और परंपराओं का महत्व।
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू पर्व है। यह उत्सव भक्ति और आनंद का प्रतीक है, जिसमें भक्त गणेश जी की स्थापना कर पूजा-अर्चना करते हैं। इस लेख में जानिए गणेश चतुर्थी का महत्व, इतिहास और इसे मनाने की खास परंपराएं।
सनातन धर्म में भगवान गणेश को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। किसी भी शुभ काम की शुरुआत उनसे ही की जाती है, इसलिए उन्हें प्रथम पूज्य कहा जाता है। माना जाता है कि उनकी पूजा करने से सारे काम बिना किसी रुकावट के पूरे हो जाते हैं। हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। इस दिन से पूरे देश में गणपति बप्पा की स्थापना घर-घर और पंडालों में बड़े धूमधाम से की जाती है। इस साल यह पर्व 27 अगस्त से शुरू हो रहा है, जो 10 दिनों तक चलेगा। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह पर्व 10 दिनों तक ही क्यों मनाया जाता है?
एक कथा के अनुसार, जब महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की, तो उन्होंने भगवान गणेश से उसे लिखने की प्रार्थना की। गणेश जी ने बिना रुके लगातार 10 दिन तक महाभारत लिखी। इस दौरान उनका शरीर बहुत गर्म हो गया। 10वें दिन उन्हें नदी में स्नान कराया गया, जिससे उनका ताप शांत हुआ। तभी से यह परंपरा बन गई कि गणेश जी को 10 दिन बाद विदा किया जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान गणेश का सिर काटकर भगवान शिव ने क्रोधित होकर उन्हें पुनः जीवन दिया, तब समस्त देवताओं ने उनसे आशीर्वाद लिया कि वे प्रथम पूज्य बनेंगे। तभी से दस दिनों तक उनका विशेष पूजन करने की परंपरा शुरू हुई, जिससे वे भक्तों के जीवन से विघ्न दूर करें और बुद्धि व समृद्धि प्रदान करें।
ऐसा भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन मिट्टी से भगवान गणेश की मूर्ति बनाकर उसमें प्राण प्रतिष्ठित किए थे। दस दिनों तक उन्होंने अपने पुत्र गणेश की आराधना की और फिर उन्हें गंगा में प्रवाहित कर दिया। इस घटना को ही गणेश चतुर्थी और गणेश विसर्जन से जोड़ा गया है।
भगवान श्री गणेश का जन्म माता पार्वती के शरीर के मैल से हुआ था। माता पार्वती ने उस मैल से एक सुंदर बालक की मूर्ति बनाई और उसमें प्राण फूंक दिए। इस तरह गणेश जी का जन्म हुआ। माता पार्वती ने गणेश जी को आदेश दिया कि जब तक वे स्नान कर रही हैं, तब तक कोई भी उनके कक्ष में प्रवेश न करे। तभी वहां भगवान शिव पहुंचे और अंदर जाने लगे। लेकिन बाल गणेश ने उन्हें रोक दिया, क्योंकि वे भगवान शिव को पहचानते नहीं थे।
गणेश जी के इस व्यवहार से भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने क्रोध में आकर उनका सिर काट दिया। जब माता पार्वती बाहर आईं और यह देखा, तो उन्हें बहुत दुख हुआ। माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने गणेश जी को फिर से जीवन देने का वचन दिया। उन्होंने एक हाथी का सिर लाकर गणेश जी के धड़ से जोड़ा और उन्हें नया जीवन दिया। तब से गणेश जी को गजानन और गणपति के नाम से पूजा जाने लगा।
अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। हालांकि, आप चाहे तो 1 दिन, डेढ़ दिन, 3, 5, या 7 दिन तक भी गणपति जी को घर में रख सकते हैं। हर अवधि में पूजा करने का उतना ही पुण्य फल मिलता है।
इस तरह, गणेश उत्सव सिर्फ भक्ति नहीं, बल्कि परंपरा और पौराणिक कहानियों से जुड़ा हुआ पर्व है, जिसे हर साल बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
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