क्या आप जानते हैं एकदंत स्तोत्र का पाठ करने से कैसे दूर होते हैं जीवन के संकट? जानें इसके श्लोक, अर्थ और सही पाठ विधि।
एकदंत स्तोत्र भगवान श्रीगणेश की स्तुति के लिए रचित एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है। इसमें गणपति के विभिन्न स्वरूपों, गुणों और लीलाओं का वर्णन किया गया है। इस स्तोत्र के पाठ से विघ्नों का नाश होता है, मन को शांति मिलती है और साधक को ज्ञान, बुद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है।
एकदंत स्तोत्र भगवान गणेश को समर्पित एक अत्यंत शक्तिशाली और पवित्र स्तोत्र है। ‘स्तोत्र’ का अर्थ होता है ‘स्तुति’ या ‘प्रशंसा’। यह स्तोत्र भगवान गणेश के एकदंत स्वरूप का वर्णन करता है, जो उनकी विशिष्ट पहचान है (एक टूटा हुआ दांत)। एकदंत स्तोत्र का पाठ करने से भगवान गणेश शीघ्र प्रसन्न होते हैं, भक्तों के सभी विघ्न दूर करते हैं, और उन्हें बुद्धि, ज्ञान, धन तथा सौभाग्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस स्तोत्र की रचना नारद मुनि ने की है, और यह गणेश पुराण के उपासना खंड में वर्णित है।
यह स्तोत्र भगवान गणेश के विभिन्न नामों और गुणों का वर्णन करता है। इसका प्रत्येक श्लोक गहरा अर्थ लिए हुए है:
नारद उवाच ॥
अर्थ: नारद मुनि ने कहा - सिर झुकाकर गौरी पुत्र विनायक देव को प्रणाम करें। भक्तों के आश्रयदाता भगवान गणेश का प्रतिदिन स्मरण करें, ताकि आयु, कामनाएं और अर्थ (धन) की सिद्धि हो।
अर्थ: पहला नाम वक्रतुंड (घुमावदार सूंड वाले), दूसरा एकदंत (एक दांत वाले)। तीसरा कृष्णपिङ्गाक्ष (काली और भूरी आँखों वाले), और चौथा गजवक्त्र (हाथी के मुख वाले)।
अर्थ: पाँचवाँ लम्बोदर (बड़े पेट वाले), और छठा विकट (विशाल या भयानक)। सातवाँ विघ्नराजेन्द्र (विघ्नों के राजा), और आठवाँ धूम्रवर्ण (धुएँ जैसे रंग वाले)।
अर्थ: नौवाँ भालचंद्र (मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाले), और दसवाँ विनायक (विघ्नहर्ता)। ग्यारहवाँ गणपति (गणों के स्वामी), और बारहवाँ गजानन (हाथी के मुख वाले)।
अर्थ: जो व्यक्ति भगवान गणेश के इन बारह नामों का सुबह, दोपहर और शाम को नियमित रूप से जाप करता है, उसे जीवन में कभी किसी बाधा का भय नहीं होता। यह स्तोत्र सभी प्रकार की सफलता और सिद्धि प्रदान करने की शक्ति रखता है।
अर्थ: विद्यार्थी विद्या प्राप्त करता है, धन चाहने वाला धन प्राप्त करता है। पुत्र की इच्छा रखने वाला पुत्र प्राप्त करता है, और मोक्ष चाहने वाला मोक्ष प्राप्त करता है।
अर्थ: जो गणपति स्तोत्र का जाप करता है, उसे छह महीनों में फल प्राप्त होता है। एक वर्ष में सिद्धि प्राप्त होती है, इसमें कोई संदेह नहीं है।
अर्थ: जो व्यक्ति इस स्तोत्र को लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पित करता है, उसे गणेश जी की कृपा से सभी प्रकार की विद्याएं प्राप्त होती हैं।
॥ इति श्रीनारदपुराणे संकटनाशनं नाम एकदंत स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
अर्थ: इस प्रकार श्री नारद पुराण में वर्णित संकटनाशन नामक एकदंत स्तोत्र संपूर्ण हुआ।
एकदंत स्तोत्र का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए इसे सही विधि और भक्तिभाव से पढ़ना चाहिए:
पवित्रता: पाठ से पूर्व स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को साफ-सुथरा रखें। आसन: कुशा या ऊन के स्वच्छ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। संकल्प: विशेष कामना हो तो जल, फूल और चावल हाथ में लेकर मनोकामना बोलते हुए संकल्प लें। गणेश जी का ध्यान और आह्वान: भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीपक और धूप जलाकर उनका ध्यान करें। ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का जाप करें। स्तोत्र पाठ: एकाग्रचित्त होकर स्पष्ट उच्चारण में पाठ करें। यह सुबह, दोपहर या शाम किसी भी समय किया जा सकता है। नियमपूर्वक प्रतिदिन पाठ करना श्रेष्ठ माना गया है। भोग और आरती: मोदक, लड्डू या फल अर्पित कर आरती करें और मनोकामना दोहराएँ। क्षमा याचना: अंत में, अनजाने में हुई किसी भी गलती के लिए भगवान से क्षमा याचना करें।
नारद मुनि द्वारा रचित यह स्तोत्र भगवान गणेश की कृपा प्राप्ति का सशक्त माध्यम है, जो जीवन में सुख, शांति और सिद्धि प्रदान करता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है और उसे आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाता है।
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